अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से कई देशों पर लगाए गए नए टैरिफ को लेकर डर है कि कोर्ट इसके खिलाफ फैसला सुना सकता है. कोर्ट को आगाह करते हुए ट्रंप ने चेतावनी दी कि अगर टैरिफ पर कोई फैसला लिया गया तो हालात खराब हो जाएंगे और अमेरिका 1929 जैसी महामंदी में जा सकता है. ट्रंप ने 96 साल पुरानी जिस मंदी का जिक्र किया है, आखिर वो क्या थी और अमेरिका और उसके लोगों को इसकी कितनी कीमत चुकानी पड़ी थी, जानते हैं.
1929 की महामंदी, जिसे ‘द ग्रेट डिप्रेशन’ के नाम से भी जाना जाता है. इस दौर में दुनिया के अधिकतर हिस्सों में उत्पादन और आय तो गिरी ही, साथ में व्यापार और रोजगार में भी भारी गिरावट आई. मंदी के कारण दुनिया की बड़ी आबादी भुखमरी और गरीबी के चंगुल में फंस गई थी. उद्योगों पर भी बुरा असर पड़ा, कई उद्योग बंद हो गए और बड़े उद्योगपति भी कर्जदार हो गए.
1929 की महामंदी कैसे आई?
1929 की महामंदी कैसे शुरू हुई? यह प्रथम विश्व युद्ध के एक दशक बाद शुरू हुई, जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शक्ति संतुलन को बिगाड़ दिया था, साथ ही वैश्विक वित्तीय प्रणाली को भी हिला दिया था. युद्ध के अंत में अमेरिका और जापान में बड़ी फैक्ट्रियां खुलीं, जिससे उत्पादन बढ़ा. युद्ध के समय जितना उत्पादन हो रहा था, वह जारी रहा, जिससे बाजार में माल की अधिकता हो गई और उसे खरीदने वाला कोई नहीं था, जिससे उत्पादकों को भारी नुकसान हुआ.
कृषि क्षेत्र में भी घाटा
उत्पादन के अलावा कृषि क्षेत्र में भी यही स्थिति बनी. युद्ध खत्म होते ही कृषि क्षेत्र में सुधार आया और पैदावार बढ़ी. फसलों की अधिकता से अनाजों की कीमत गिर गई, जिससे किसानों को लागत मूल्य भी नहीं मिला. किसानों ने आय बनाए रखने के लिए अधिक पैदावार की, जिससे कीमतें और गिरीं. खरीदार नहीं मिले और अनाज खराब होने लगा, जिससे यह वर्ग भी बर्बाद हो गया.
‘ब्लैक ट्यूसडे’ से महामंदी की शुरुआत
अमेरिकी शेयर मार्केट में गिरावट ने दुनिया को महामंदी की ओर धकेल दिया. 24 अक्टूबर 1929 को न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में करीब 50% की गिरावट आई, जबकि कॉर्पोरेट मुनाफे में 90% से अधिक की गिरावट देखी गई. शेयर मार्केट 50 अरब डॉलर नीचे गिर गया, जिसे “ब्लैक ट्यूसडे” के नाम से जाना गया. सरकार और पूंजीपतियों की कोशिशों से मार्केट में सुधार आया, लेकिन नवंबर में फिर गिरावट आई, जिससे निवेशकों को भारी नुकसान हुआ.
अमेरिका ने युद्ध के दौरान यूरोप को भारी कर्ज दिया था. बाजार में अस्थिरता की आशंका के कारण अमेरिका ने 1929 में घोषणा की कि वह अब किसी को कर्ज नहीं देगा. कर्ज न मिलने से कई देशों पर संकट आया और यूरोप के बड़े बैंक बर्बाद हो गए. ब्रिटेन समेत कई देशों की मुद्राओं की कीमत गिर गई और लैटिन अमेरिका भी इससे प्रभावित हुआ.
मंदी के कारण कर्ज देना बंद
महामंदी का असर पूरी दुनिया में दिखने लगा. अमेरिका सबसे अधिक प्रभावित हुआ. अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, जर्मनी और कई यूरोपीय देश भी इसकी चपेट में आ गए. अमेरिकी अर्थव्यवस्था तेजी से गिर रही थी.
अमेरिकी बैंकों ने घरेलू स्तर पर कर्ज देना बंद कर दिया और जिन्हें कर्ज दिया था, उनसे जबरन वसूली की. डॉलर की कीमत में गिरावट और संकट के कारण किसान, मध्यम वर्ग और उद्योगपति आर्थिक संकट में फंस गए. कई परिवार कर्ज नहीं चुका पाए, जिससे बैंकों ने उनके मकान और कारें जब्त कर लीं.
हजारों बैंक और कंपनियां बंद
अमेरिका में तबाही मची हुई थी. सख्ती के बाद भी बैंक लोगों से कर्ज वसूल नहीं कर पाए. ग्राहकों को जमा पूंजी वापस नहीं कर पाने और निवेश से लाभ न मिलने के कारण बैंक दिवालिया हो गए और बंद हो गए. 1929 से 1933 तक 4000 से ज्यादा बैंक बंद हो गए, जबकि 1,10,000 कंपनियां बंद हो गईं.
बैंकों और कंपनियों के बंद होने से नौकरियां गईं और बेरोजगारी बढ़ी. 1929 में बेरोजगारों की संख्या 16 लाख थी, जो 1933 में 25% बढ़कर 1.4 करोड़ हो गई.
कुपोषण से मौतें
रोजगार और उत्पादन घटने से अमेरिका में भुखमरी बढ़ी. 1931 में न्यूयॉर्क के अस्पतालों में 100 लोग भूख से मरे. कुपोषण से जुड़ी बीमारियों से भी मौतें हुईं. न्यूयॉर्क में एक तिहाई बच्चे कुपोषित थे.
कर्ज में फंसे अमेरिकी बेघर होने लगे. 1932 तक 2,50,000 से ज्यादा लोग मॉर्गेज नहीं चुका पा रहे थे. जो किराए का भुगतान नहीं कर सके, उन्हें बेदखल कर दिया गया. ज्यादातर लोग सड़कों या पार्कों में सोने को मजबूर थे. उनके पास खाने तक के पैसे नहीं थे.
शहरों में झुग्गियां
अमेरिका के कई शहरों में कार्डबोर्ड और नालीदार लोहे की झुग्गियां बनने लगीं. लोग तत्कालीन राष्ट्रपति हर्बर्ट हूवर से नाराज थे, और सरकार से पर्याप्त मदद न मिलने के कारण झुग्गियों को हूवरविले कहा जाने लगा.
खाने के लिए गिरफ्तारियां
काम न मिलने से कई लोग इधर-उधर घूमने लगे. वे रेल पटरियों या मालगाड़ियों में रहते थे. कई लोग जेल में रात बिताने के लिए जानबूझकर गिरफ्तार होते थे, क्योंकि जेल में गर्मी, बिस्तर और खाना मिलता था.
दूसरे विश्व युद्ध ने खत्म किया महामंदी का दौर
महामंदी कई वर्षों तक चली. 1939 तक स्थिति में सुधार शुरू हुआ. दूसरे विश्व युद्ध के शुरू होने से उत्पादन बढ़ा, महिलाओं को नौकरियां मिलीं और युवाओं को सेना में भर्ती किया गया, जिससे महामंदी का दौर खत्म हुआ.