
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा से ठीक पहले, रूस ने दोनों देशों के संबंधों को लेकर एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पेश किया है। रूस ने स्पष्ट कर दिया है कि वह भारत के साथ अपने संबंधों को “पारंपरिक सीमाओं से परे” ले जाने के लिए तैयार है, बशर्ते भारत भी ऐसा चाहता हो। मॉस्को की ओर से यह प्रस्ताव राष्ट्रपति पुतिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने Sputnik न्यूज एजेंसी द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन ब्रीफिंग में दिया।
पेस्कोव ने कहा, “चीन हमारा विशेष रणनीतिक भागीदार है। चीन के साथ हमारा सहयोग बहुत उच्च स्तर का है, जैसा कि भारत के साथ भी है। हम चीन के साथ सहयोग को सीमाओं से परे विस्तारित करने के लिए तैयार हैं। भारत के साथ हमारा दृष्टिकोण भी यही है।” उन्होंने आगे कहा, “भारत जितनी दूर जाना चाहेगा, हम उतने ही दूर जाने के लिए तैयार हैं। यदि भारत सहयोग का विस्तार करता है, तो हम इसके लिए पूरी तरह तैयार हैं।”
यह बयान उस समय आया है जब भारत पर पश्चिमी देशों द्वारा रूस के साथ संबंधों को लेकर दबाव है। पेस्कोव ने स्वीकार किया कि भारत इस दबाव को महसूस कर रहा है और इसलिए दोनों देशों को अपने व्यापारिक संबंधों को सुरक्षित रखने और बाहरी हस्तक्षेप से बचाने की आवश्यकता है। उन्होंने जोर देकर कहा, “हमारे संबंध किसी भी तीसरे देश के प्रभाव से मुक्त रहने चाहिए। हमें अपने संबंधों और दोनों पक्षों को लाभ पहुंचाने वाले व्यापार की रक्षा करनी चाहिए।”
राष्ट्रपति पुतिन ने भी यात्रा से पहले भारत और चीन के साथ संबंधों को “नई ऊंचाई” पर ले जाने की इच्छा व्यक्त की थी। भू-राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि रूस, चीन पर अपनी बढ़ती निर्भरता को संतुलित करने के लिए भारत को एक बड़े रणनीतिक साझेदारी का प्रस्ताव दे रहा है। यह कदम भारत को एशियाई भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थिति में ला सकता है, खासकर पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच रूस के लिए।
हालांकि, भारत के लिए यह एक जटिल निर्णय है। एक ओर रूस के साथ ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र में संबंध महत्वपूर्ण हैं, वहीं दूसरी ओर अमेरिका के साथ आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी भी आवश्यक है। भारत पश्चिमी देशों के दबाव के आगे झुकते हुए रूस को अलग-थलग नहीं करना चाहता, लेकिन साथ ही वह अमेरिका के साथ अपने बहुआयामी संबंधों को भी दांव पर नहीं लगा सकता।
भारत और रूस के बीच व्यापार वर्तमान में लगभग $63 बिलियन है, जिसके 2030 तक $100 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है। लेकिन इस व्यापार में एक बड़ा असंतुलन है, जिसमें भारत का निर्यात बहुत कम है जबकि आयात, विशेष रूप से रूसी तेल, बहुत अधिक है। हाल के महीनों में, अमेरिकी प्रतिबंधों के डर से भारत द्वारा रूसी तेल का आयात कम हुआ है, जिससे यह प्रस्ताव भारत के लिए और भी कूटनीतिक चुनौती पेश कर रहा है।






