हिरोशिमा को 80 साल पहले एक ऐसा दर्द मिला था, जिसका घाव आज भी गहरा है। आज ही के दिन, 1945 में, अमेरिका ने जापान के शहर हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया था। यह हमला इतना भीषण था कि दिसंबर 1945 तक 1 लाख 40 हजार लोगों की मौत हो गई थी। बम का नाम ‘लिटिल बॉय’ था और इसे वायुसेना के B-29 बॉम्बर से गिराया गया था। हालांकि यह सुनने में सामान्य हमलों जैसा लग सकता है, लेकिन परमाणु हमला इतना आसान नहीं होता।
दरअसल, परमाणु बम को सबसे विनाशकारी हथियार माना जाता है, और किसी भी देश पर इसे यूं ही नहीं दागा जा सकता। इसके लिए एक पूरी प्रक्रिया का पालन किया जाता है, जिसमें परमाणु हमले की आवश्यकता को भी बताना होता है। अमेरिका ने भी जब हिरोशिमा और तीन दिन बाद नागासाकी पर परमाणु हमला किया था, तो इसका तर्क युद्ध को जल्द खत्म करने और लाखों सैनिकों की जान बचाने का दिया था। अमेरिका का कहना था कि जापान बिना शर्त आत्मसमर्पण नहीं कर रहा था, इसलिए यह जरूरी था। हालांकि, पूरी दुनिया ने इसे क्रूरता की संज्ञा दी थी। अच्छी बात यह है कि तब से लेकर अब तक परमाणु हथियारों का प्रयोग नहीं किया गया है। अगर ऐसा किया जाता है, तो संबंधित देश को एक पूरी प्रक्रिया से गुजरना होता है।
परमाणु हमले की प्रक्रिया:
1. निर्णय
परमाणु हमले के संबंध में प्रत्येक देश की अपनी नीतियां होती हैं। उदाहरण के लिए, भारत की परमाणु नीति ‘नो फर्स्ट यूज’ है, यानी भारत तब तक किसी भी देश पर परमाणु हमला नहीं करेगा जब तक उस पर हमला न किया जाए। जबकि अमेरिका की नीति उसे पहले परमाणु हमले की अनुमति देती है, और आवश्यकता पड़ने पर अपने सहयोगियों को परमाणु सुरक्षा की गारंटी भी देता है। ऐसे में, अमेरिका अपने लिए खतरे की स्थिति में परमाणु हमला कर सकता है, लेकिन तब जब वह पूरी तरह से आश्वस्त हो जाए कि उस पर परमाणु हमला होने वाला है।
2. सलाहकारों की सहमति
परमाणु हमले का फैसला लेने और उसे क्रियान्वित करने की शक्ति किसी भी देश के सर्वोच्च नेता में निहित होती है, जो प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका में यह शक्ति राष्ट्रपति के पास है, जबकि भारत में प्रधानमंत्री के पास इस पर अंतिम निर्णय लेने का अधिकार है। इससे पहले, न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी (NCA) की एक बैठक होती है, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं। लगभग सभी देशों में यही व्यवस्था है। इस बैठक में सहमति बनाने से पहले, खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट पर विचार किया जाता है, और सैन्य एवं रणनीतिक सलाहकार ब्रीफिंग देते हैं।
3. फायर ऑर्डर का प्रेषण
परमाणु हमले पर अंतिम निर्णय लेने के बाद, परमाणु हथियारों की तैनाती वाले स्थान से एक उच्च और सुरक्षित संचार स्थापित किया जाता है। संबंधित देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति फायर ऑर्डर भेजते हैं, जो पूरी तरह से एन्क्रिप्टेड कोड से सुरक्षित होता है। यह मिसाइल बेस, वायु सेना इकाइयों और पनडुब्बियों तक भेजा जाता है। संबंधित इकाई को पहले यह सत्यापित करना होता है कि यह आदेश सही व्यक्ति द्वारा भेजा गया है या नहीं।
4. हथियारों का सक्रियण
फायर ऑर्डर सत्यापित होते ही, हथियार सक्रिय कर दिए जाते हैं। उदाहरण के लिए, यदि जमीन से हमला करना है, तो बैलिस्टिक या हाइपरसोनिक मिसाइलें सक्रिय हो जाती हैं, हवा से हमला करने के लिए बॉम्बर विमान या लड़ाकू जेट रनवे पर उतर जाते हैं, और समुद्र से हमला करने के लिए पनडुब्बियों या युद्धपोतों को फायर मोड पर लाया जाता है। इसके बाद लक्ष्य निर्धारित किया जाता है और मिसाइल दाग दी जाती है।
विनाश की मात्रा
परमाणु बम से कितना नुकसान हो सकता है, इसका कोई सटीक आंकड़ा फिलहाल नहीं है। हालांकि, हिरोशिमा और नागासाकी में हुई तबाही के अनुसार, परमाणु हमला 2 से 5 किलोमीटर के दायरे में सब कुछ नष्ट कर देता है। हमले के केंद्र का तापमान कुछ सेकंड के लिए 5 से 6 हजार डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है, जो लोहे को भी गलाने की क्षमता रखता है। हवा में रेडियोएक्टिव कण फैल जाते हैं, और इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम फेल हो जाता है।