पर प्रकाश डाला गया
- भारत ने कहा है कि रेनॉल्ड्स में रसेल बदलावों की समीक्षा जरूरी है
- नदियों के जल वितरण हेतु सहायता हेतु 19 सितम्बर 1960 को संस्तुति हुई
- 30 अगस्त के नोटिस का पाकिस्तान की तरफ से अब तक कोई जवाब नहीं
एजेंसी, नई दिल्ली/इस्लामाबाद (सिंधु जल संधि)। भारत और पाकिस्तान के बीच 64 साल पहले सिंधु जल संधि हुई थी। संधि के कारण भारत को अपनी ज़रूरतों के अनुसार पाकिस्तान के लिए हिमालय की नदियों का जल संकट झेलना पड़ा, लेकिन शायद अब ऐसा नहीं होगा।
भारत ने पाकिस्तान को नोटिस भेजने के लिए साझीदार की समीक्षा की है। कहा गया है कि बदलाव की स्थिति में शांति के स्मारकों की समीक्षा होनी चाहिए। नोटिस में सीमा पार का भी जिक्र है।
किस तरह से पाकिस्तान के लिए बम-बूंद
- नोटिस में भारत सरकार ने कहा है कि बेंचमार्क में स्टॉक और रिजर्वेशन बदलाव हुए हैं, जिससे इस एकांकी का पुनर्मूल्यांकन जरूरी हो गया है।
- सरकारी आधिकारिक विज्ञप्ति में बताया गया है कि यह नोटिस 30 अगस्त को सिंधु जल रिकॉर्ड के तहत 12 (3) के तहत भेजा गया है।
- 9 साल के मन्थ के बाद भारत-पाक ने 19 सितंबर 1960 को इस संधि पर हस्ताक्षर किये थे। संधि में विश्व बैंक भी हस्ताक्षरकर्ता था।
- इस संधि का उद्देश्य दोनों देशों के बीच विभिन्न नदियों के जल वितरण पर सहयोग और जानकारी का जुड़ाव-सहायक करना है।
- भारत अब पाकिस्तान के लिए पानी छूट के लिए अपने उपयोग की छूट चाहता है। इस कारण से युवाओं में बदलाव की मांग है।
पाकिस्तान की ओर से प्रतिक्रिया नहीं
नोटिस में भारत ने लिखा है कि जनसंख्या में परिवर्तन, उपभोक्ता मुद्दे और आर्थिक लक्ष्य को पूरा करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा के विकास में तेजी लाना आवश्यक है।
नोटिस के बाद अब तक पाकिस्तान की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालाँकि, पाकिस्तान यूसाइओसी सहित अन्य मोर्चों पर यह स्टॉक उठाया जा रहा है। इस रिश्ते में विश्व बैंक का रुख भी अहम रहेगा। विश्व बैंक ने एक ही मुद्दा न्यूट्रल एक्सपर्ट और आर्बिट रिजर्वेशन कोर्ट दोनों को एक साथ सक्रिय किया है। इसे देखते हुए भारत ने संधि के तहत विवाद समाधान तंत्र पर शोध करने का भी प्रस्ताव रखा है।