Lakhimpur Kheri जमीन विवाद: डीएम दुर्गा शक्ति नागपाल और पूर्व डीएम महेंद्र बहादुर सिंह को नोटिस, छह साल की लापरवाही पर सरकार का कड़ा रुख

उत्तर प्रदेश के Lakhimpur Kheri में जमीन पैमाइश के मामले में गहरी अनियमितताएं सामने आई हैं। इस मामले में डीएम दुर्गा शक्ति नागपाल और पूर्व डीएम महेंद्र बहादुर सिंह को नियुक्ति विभाग ने नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा है। छह वर्षों तक लंबित पड़े इस जमीन पैमाइश विवाद ने अब तूल पकड़ लिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशों के बाद इस मामले में तेजी आई है और कई अधिकारियों पर गाज गिर चुकी है।

छह साल से लटकी पैमाइश, घूस के आरोप

यह मामला करीब छह साल पुराना है, जब लखीमपुर खीरी जिले में जमीन पैमाइश के दौरान घूस मांगे जाने की शिकायतें आई थीं। सरकारी स्तर पर इस प्रक्रिया को जल्द निपटाने के बजाय लगातार टाला जाता रहा। जांच में पता चला कि इस दौरान संबंधित अधिकारियों ने अपने कर्तव्यों में गंभीर लापरवाही बरती।

इस मुद्दे ने और गंभीर तबियत तब ले ली, जब पीड़ितों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक अपनी शिकायतें पहुंचाईं। इसके बाद मुख्यमंत्री ने तत्काल जांच के आदेश दिए और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करने को कहा।

आईएएस और पीसीएस अधिकारियों पर गिरी गाज

प्रारंभिक जांच के बाद चार अधिकारियों को दोषी पाया गया, जिनमें एक आईएएस और तीन पीसीएस अधिकारी शामिल हैं। बुधवार को राज्य सरकार ने इन्हें निलंबित कर दिया। इस कार्रवाई ने प्रशासनिक महकमे में खलबली मचा दी है।

डीएम दुर्गा शक्ति नागपाल और पूर्व डीएम महेंद्र बहादुर सिंह से पूछा गया है कि जब वे समीक्षा प्रक्रिया का हिस्सा थे, तो इस मामले को क्यों नजरअंदाज किया गया? क्या यह लापरवाही जानबूझकर की गई थी या इसमें कोई और कारण था?

योगी सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार भ्रष्टाचार और लापरवाही के मामलों में जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम कर रही है। यह मामला भी इसी नीति का उदाहरण है। राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि जमीन से जुड़े मामलों में पारदर्शिता और निष्पक्षता सर्वोपरि है।

यह पहला मौका नहीं है जब योगी सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ इतनी सख्त कार्रवाई की हो। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे कई मामलों में दोषी अधिकारियों को या तो निलंबित किया गया है या उनके खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई है।

अधिकारियों की जिम्मेदारी पर उठे सवाल

यह मामला प्रशासनिक अधिकारियों की जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े करता है। जमीन पैमाइश जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया को इतनी लापरवाही से क्यों टाला गया? क्या इसमें अन्य लाभकारी तत्व शामिल थे?

सरकारी जमीन विवादों में पारदर्शिता की कमी अक्सर प्रशासन और आम जनता के बीच अविश्वास पैदा करती है। लखीमपुर खीरी का मामला इस बात का सबूत है कि समय पर कार्रवाई न होने के कारण यह मुद्दा राज्य सरकार के उच्च स्तर तक पहुंच गया।

भ्रष्टाचार के खिलाफ बढ़ती कार्रवाई

उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई लगातार तेज हो रही है। लखीमपुर खीरी के इस विवाद ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि सरकारी व्यवस्था में सुधार की कितनी जरूरत है। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को साफ निर्देश दिए हैं कि वे जनता की शिकायतों को गंभीरता से लें और समय पर समाधान करें।

इसके साथ ही सरकार ने नियुक्ति विभाग को निर्देश दिया है कि वह ऐसे मामलों में दोषियों की पहचान करके उनकी जिम्मेदारियां तय करे।

लखीमपुर खीरी मामला: एक सबक

Lakhimpur Kheri का मामला सिर्फ एक प्रशासनिक गलती नहीं, बल्कि एक सबक है। यह दिखाता है कि कैसे एक छोटी-सी लापरवाही बड़े विवाद का रूप ले सकती है। सरकार और प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसी लापरवाही न हो।

यह घटना उन अधिकारियों के लिए भी चेतावनी है, जो अपने पद का दुरुपयोग करते हैं या अपने कर्तव्यों को हल्के में लेते हैं।

लखीमपुर खीरी जमीन विवाद में सरकार की कड़ी कार्रवाई ने यह संदेश दिया है कि भ्रष्टाचार और लापरवाही को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। दोषी अधिकारियों के खिलाफ निलंबन और नोटिस जैसी कार्रवाई न केवल प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार लाएगी, बल्कि जनता के विश्वास को भी मजबूत करेगी।

इस मामले की जांच के नतीजे अन्य जिलों के अधिकारियों को भी एक सख्त संदेश देंगे कि उनकी जिम्मेदारियों से लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

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