Kanpur में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जिसमें एक विधवा महिला के मकान पर कब्जा कर 20 लाख रुपये की रंगदारी मांगी गई। यह मामला पूर्व विधायक इरफान सोलंकी के साथी और समाजवादी पार्टी के नेता, भोलू उर्फ मुस्लीम से जुड़ा हुआ है, जो हाल ही में जेल से छूटा है। इस घटना ने कानपुर के कर्नलगंज इलाके में खलबली मचा दी है, जहां भोलू ने अपनी राजनीतिक पहुंच और दबदबे का इस्तेमाल करते हुए एक विधवा महिला के मकान पर कब्जा कर लिया और धमकियां दीं।
मामला क्या है?
घटना Kanpur के बेकनगंज के हीरामन का पुरवा इलाके की है, जहां पॉयनियर कंपाउंड में रहने वाली विधवा महिला नूर फात्मा के कर्नलगंज चूड़ी वाली गली स्थित मकान पर कब्जा कर लिया गया। नूर फात्मा ने आरोप लगाया है कि उनके पति की मृत्यु के बाद, जब वह मकान को अपने नाम पर दर्ज कराने के लिए नगर निगम गईं, तब भोलू उर्फ मुस्लीम ने उनसे मकान के एक हिस्से को इस्तेमाल करने की बात कही। भोलू ने वादा किया था कि जब नूर फात्मा चाहेंगी, वह मकान खाली कर देगा, और इसके बदले में नगर निगम में मकान को उनके नाम करवाने में मदद करेगा।
लेकिन धीरे-धीरे भोलू ने पूरे मकान पर कब्जा कर लिया और उसमें बाहरी लोगों को भी रहने के लिए जगह दे दी। मकान खाली करने के बदले में भोलू ने नूर फात्मा से 20 लाख रुपये की रंगदारी मांगी। जब नूर ने यह रकम देने से मना किया, तो भोलू ने उन्हें और उनकी बेटियों को जान से मारने की धमकी दी।
पुलिस पर निष्क्रियता का आरोप
नूर फात्मा ने इस मामले की शिकायत पहले भी पुलिस से की थी, लेकिन उनके अनुसार, भोलू के राजनीतिक प्रभाव के चलते पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। भोलू के खिलाफ कई आरोप पहले से ही दर्ज हैं, लेकिन विधायक के साथ की वजह से उसकी पकड़ अभी भी मजबूत मानी जाती है। पुलिस द्वारा कोई मदद न मिलने पर नूर फात्मा ने इस साल अप्रैल में मुख्यमंत्री से मामले की शिकायत की। मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद ही कर्नलगंज पुलिस ने भोलू, उसके साले आजम, इकराम और पत्नी शबनम के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की।
जेल से छूटने के बाद फिर विवादों में भोलू
भोलू उर्फ मुस्लीम का नाम पहले भी कानूनी मामलों में आ चुका है। आगजनी के एक मामले में वह महाराजगंज जेल में बंद था, लेकिन हाल ही में जेल से छूटकर बाहर आया है। जेल से छूटने के बाद भी उसकी आपराधिक गतिविधियों में कोई कमी नहीं आई है। भोलू ने अपने राजनीतिक संपर्कों और दबदबे का फायदा उठाते हुए फिर से अपराध में लिप्त हो गया है।
मकान पर कब्जा और रंगदारी: कानपुर में बढ़ते आपराधिक मामले
कानपुर में ऐसी घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं, जहां प्रभावशाली लोगों द्वारा कमजोर वर्गों पर अत्याचार किया जाता है। यह घटना दिखाती है कि कैसे राजनीतिक पहुंच का इस्तेमाल आम लोगों के खिलाफ किया जा सकता है। पूर्व विधायक इरफान सोलंकी के साथी के रूप में भोलू का नाम सामने आने से यह साफ हो गया है कि वह राजनीतिक संरक्षण का लाभ उठाकर अपराधों को अंजाम दे रहा है।
इस मामले में सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि पीड़ित नूर फात्मा ने कई बार पुलिस से शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। यहां तक कि जब उसे जान से मारने की धमकियां दी गईं, तब भी पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया। यह तब तक चलता रहा जब तक कि उन्होंने मुख्यमंत्री से सीधे हस्तक्षेप की गुहार नहीं लगाई। इसके बाद ही पुलिस हरकत में आई और मामला दर्ज हुआ।
पुलिस जांच जारी, क्या मिलेगा न्याय?
एडीसीपी सेंट्रल महेश कुमार ने बताया कि मामले की जांच की जा रही है और पुलिस जल्द ही उचित कार्रवाई करेगी। हालांकि, सवाल यह है कि क्या नूर फात्मा को न्याय मिल पाएगा? ऐसे मामलों में अक्सर देखा गया है कि राजनीतिक दबाव और प्रभाव के चलते जांच को धीमा कर दिया जाता है। लेकिन मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद अब उम्मीद की जा रही है कि जांच निष्पक्ष और प्रभावी ढंग से की जाएगी।
राजनीतिक संरक्षण और कानपुर का आपराधिक परिदृश्य
कानपुर जैसे शहर में राजनीतिक संरक्षण में पल रहे अपराधियों का बोलबाला कोई नई बात नहीं है। इरफान सोलंकी और भोलू जैसे नेता इस बात का उदाहरण हैं कि कैसे राजनीतिक पहुंच का इस्तेमाल आपराधिक गतिविधियों के लिए किया जाता है। इससे न केवल कानून व्यवस्था प्रभावित होती है, बल्कि आम जनता के बीच भी असुरक्षा की भावना बढ़ती है।
राजनीतिक संरक्षण के चलते अपराधियों को कई बार पुलिस की ओर से भी राहत मिल जाती है। नूर फात्मा का मामला इसका ज्वलंत उदाहरण है, जहां भोलू ने न केवल मकान पर कब्जा किया, बल्कि खुलेआम रंगदारी भी मांगी और धमकियां दीं।
क्या यह कानपुर में बदलाव की शुरुआत हो सकती है?
इस घटना ने कानपुर में बढ़ते आपराधिक मामलों और पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। लेकिन मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप और पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज करने के बाद, यह मामला कानपुर में बदलाव की शुरुआत का संकेत भी हो सकता है। इस मामले में अगर सख्त कार्रवाई की जाती है और दोषियों को सजा दी जाती है, तो यह एक उदाहरण बन सकता है कि राजनीतिक संरक्षण में पलने वाले अपराधी भी कानून की गिरफ्त से बच नहीं सकते।
नूर फात्मा को न्याय कब मिलेगा?
कानपुर में नूर फात्मा का मामला यह दर्शाता है कि किस प्रकार कमजोर और असहाय लोगों के खिलाफ अत्याचार किया जाता है। लेकिन इस घटना ने यह भी साबित किया है कि अगर समय पर सही कदम उठाए जाएं, तो न्याय मिल सकता है। अब देखना यह है कि पुलिस इस मामले में कितनी जल्दी और प्रभावी ढंग से कार्रवाई करती है और क्या नूर फात्मा को इंसाफ मिलेगा।