Lucknow: राजधानी लखनऊ में लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) की लापरवाही और अंदरूनी गठजोड़ ने एक ऐसा घोटाला जन्म दिया है, जिसकी परतें अब धीरे-धीरे खुल रही हैं। एसटीएफ की हालिया छानबीन ने इस बात की पुष्टि की है कि एक फर्जीवाड़ा करने वाला गिरोह पिछले दस वर्षों से एलडीए की मिलीभगत से जनता की जमीनें हड़पता चला आ रहा था। अब तक इस गिरोह ने 90 से ज्यादा प्लॉट फर्जी दस्तावेजों से बेच दिए हैं, जिनकी वर्तमान बाजार कीमत ₹100 करोड़ से भी अधिक आंकी जा रही है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि इतने बड़े घोटाले के बावजूद आज तक एक भी प्लॉट की रजिस्ट्री रद्द नहीं हुई है। एलडीए की नाक के नीचे यह खेल चलता रहा, और सरकारी महकमा आंखें मूंदे बैठा रहा।
कैसे चलता रहा ‘घर-घर रजिस्ट्री’ का धंधा
एसटीएफ की जांच में सामने आया है कि एलडीए के भीतर बैठे कुछ भ्रष्ट कर्मचारी, मूल आवंटियों की रजिस्ट्री निकालकर उसे सीधे गिरोह को सौंप देते थे। इसके बाद रजिस्ट्री घर के अंदर ही फर्जी तरीके से तैयार की जाती थी। गिरोह के पास अपने स्कैनर, नकली स्टांप पेपर, नकली मुहरें और रजिस्ट्री तैयार करने की पूरी सेटअप व्यवस्था थी।
गिरोह के सरगना अचलेश्वर गुप्ता के गिरफ़्तार होने के बाद पता चला कि वह एक सुनियोजित रैकेट चला रहा था, जिसमें नजूल अधिकारियों से लेकर कंप्यूटर ऑपरेटर तक, सबकी मिलीभगत थी।
‘सरकारी बाबू’ या ‘घोटालेबाज़’: किसका खेल चल रहा था एलडीए में?
इस पूरे खेल में कई एलडीए अधिकारी भी सीधे तौर पर संलिप्त पाए गए। तत्कालीन एसबी भटनागर, जो कंप्यूटर सेल में कार्यरत थे, पर आरोप है कि उन्होंने ऑनलाइन डाटा फीडिंग में मदद की, जिससे फर्जी रजिस्ट्री को एलडीए की वैध रजिस्ट्री की तरह प्रस्तुत किया जा सके।
सूत्रों के मुताबिक, भटनागर की कुछ पेंशन रोक दी गई है, लेकिन अभी तक उनके खिलाफ कोई सख्त कानूनी कार्यवाही नहीं हुई है। जानकारों का मानना है कि इस प्रकार के मामलों में सजा की धीमी प्रक्रिया भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है।
लोन अकाउंट्स और बैंकिंग लेन-देन से हुआ पर्दाफाश
गिरोह के सरगना अचलेश्वर गुप्ता के बैंक खातों की जांच में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। उसके पास कुल 10 लोन अकाउंट थे, जिनमें से सभी उसने फर्जीवाड़ा उजागर होने के बाद बंद करवा दिए। उसके दो सेविंग अकाउंट भी मिले, जिनमें बैलेंस शून्य था और एक ओवरड्राफ्ट अकाउंट बंद पाया गया।
इससे यह स्पष्ट होता है कि जैसे ही गिरोह को भनक लगी कि उनकी गतिविधियां जांच के घेरे में आ चुकी हैं, उन्होंने सबूत मिटाने की पूरी कोशिश की।
पहले भी पकड़ा गया था ऐसा ही फर्जीवाड़ा – पर कोई सबक नहीं लिया गया
बेलहारा गांव, गोमती नगर में इससे पहले भी ऐसा ही एक मामला सामने आया था, जब फर्जी रजिस्ट्री कांड पकड़ में आया था। उस समय भी कुछ नाम सामने आए, लेकिन राजनीतिक संरक्षण और अफसरों की ‘मदद’ से मामला ठंडे बस्ते में चला गया। इस बार फिर वही हालात दोहराए जा रहे हैं।
एलडीए के अंदर से जो दस्तावेज बाहर निकले हैं, वे बताते हैं कि जमीन की लूट सिर्फ बाहर नहीं, अंदर से भी हो रही थी। इस गिरोह को एलडीए की हर योजना की बारीकी की जानकारी थी — कौन सा प्लॉट खाली है, किसका मालिक विदेश में है, कहां के रिकार्ड पुरानी फाइलों में दबे पड़े हैं — सबकुछ!
अब क्या? रजिस्ट्री निरस्तीकरण की लंबी प्रक्रिया और जनता की परेशानी
एलडीए की सबसे बड़ी नाकामी यही मानी जा रही है कि अभी तक एक भी रजिस्ट्री निरस्त नहीं की गई है। निरस्तीकरण के लिए कोर्ट फीस, लंबी कानूनी प्रक्रिया और समय की आवश्यकता होती है, जो अबतक शुरू भी नहीं हुई है। सवाल यह भी उठता है कि जिन लोगों ने ये प्लॉट खरीदे, क्या उन्हें कभी इंसाफ मिलेगा?
एलडीए की नीतियों पर फिर उठे सवाल
लगातार फर्जीवाड़े की खबरें आने के बावजूद एलडीए ने अपने मॉनिटरिंग सिस्टम में कोई सुधार नहीं किया। हर बार कुछ बाबुओं पर दिखावटी कार्रवाई होती है, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात!
क्या एलडीए सच में जनता के हित में काम कर रहा है या फिर भ्रष्टाचार की नई प्रयोगशाला बन चुका है?
एसटीएफ की अगली चाल – क्या पूरा नेटवर्क बेनकाब होगा?
एसटीएफ अब इस गिरोह से जुड़े बाकी लोगों की तलाश में जुट गई है। खबर है कि कुछ अफसर और दलाल फरार हो चुके हैं, जिनकी गिरफ्तारी के लिए दबिश दी जा रही है। फर्जी रजिस्ट्री से जुड़े दस्तावेजों को फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है, ताकि यह साबित किया जा सके कि यह सिर्फ ‘धोखाधड़ी’ नहीं, बल्कि एक संगठित आर्थिक अपराध (Organized Economic Crime) है।
निष्क्रिय निगरानी = भ्रष्टाचार को न्योता
यह मामला न केवल एक बड़ा आर्थिक घोटाला है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि जब सरकारी विभागों में निगरानी प्रणाली निष्क्रिय हो जाती है, तो कैसे अपराधी तत्व उसमें घुसपैठ कर अपना नेटवर्क खड़ा कर लेते हैं।
अगर समय रहते एलडीए की कार्यप्रणाली पर लगाम नहीं लगाई गई, तो आने वाले समय में ऐसे कई और घोटाले सामने आ सकते हैं। जनता को सतर्क रहने की जरूरत है और सिस्टम को पारदर्शी बनाने की जिम्मेदारी अब शासन-प्रशासन की है।
यह कोई एक केस नहीं, बल्कि सिस्टम की कमजोरी की कहानी है — और जब तक अंदर की सफाई नहीं होगी, बाहर से कितनी भी चमक दिखाई जाए, घोटाले यहीं पनपते रहेंगे।