Jhansi की एक अदालत ने शुक्रवार को एक ऐसे सिपाही को 5 साल की सजा सुनाई, जिसने 10वीं की फर्जी मार्कशीट बनवाकर पीएसी में नौकरी हासिल की थी। यूपी सरकार के मंत्री असीम अरुण की गवाही ने इस केस में निर्णायक भूमिका निभाई। 26 साल तक चले इस मामले में आखिरकार न्याय की जीत हुई है।
क्या था पूरा मामला?
1999 की बात है, जब राजेश कुमार उपाध्याय नाम के एक व्यक्ति ने 10वीं कक्षा में फेल होने के बावजूद फर्जी मार्कशीट बनवाई और उसके दम पर उत्तर प्रदेश पुलिस की 33वीं वाहिनी (PAC) में सिपाही की नौकरी पा ली। उस समय IPS अधिकारी असीम अरुण सेनानायक थे, जिन्हें इस धांधली की भनक लगी।
मंत्री की गवाही ने बदली किस्मत
असीम अरुण ने इस मामले की जांच कराई और एसएसपी को शिकायत दर्ज करवाई। प्रेमनगर थाने में केस दर्ज होने के बाद राजेश को गिरफ्तार किया गया। बाद में असीम अरुण नौकरी छोड़कर राजनीति में आ गए और आज योगी सरकार में समाज कल्याण मंत्री हैं। 21 जनवरी 2025 को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उन्होंने अदालत में गवाही दी, जिसने केस का रुख ही बदल दिया।
कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
अपर सिविल जज कल्पना यादव ने सभी सबूतों और गवाहियों को ध्यान में रखते हुए राजेश को आईपीसी की धारा 420 (छल), 468 (जालसाजी) और 471 (जाली दस्तावेज का इस्तेमाल) के तहत दोषी ठहराया। उसे 5 साल की कठोर कारावास और 10 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई गई। अगर जुर्माना नहीं भरा गया, तो एक महीने की अतिरिक्त जेल होगी।
यूपी में बढ़ते फर्जीवाड़े पर सवाल
यह मामला उत्तर प्रदेश में बढ़ती नकली डिग्रियों और भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है। पिछले कुछ सालों में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां लोग फर्जी दस्तावेजों के सहारे सरकारी नौकरियां हासिल कर रहे हैं। प्रशासनिक सुधारों की मांग एक बार फिर जोर पकड़ रही है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
कानूनी जानकारों का मानना है कि इस तरह के मामलों में सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई ऐसी हिमाकत न करे। साथ ही, नौकरियों में भर्ती प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने की जरूरत है।
अब क्या होगा आरोपी का?
राजेश कुमार उपाध्याय अब 5 साल जेल की सजा काटेगा। इस केस ने एक बार फिर साबित किया है कि चाहे कितना भी समय बीत जाए, न्याय की गति धीमी हो सकती है, लेकिन अंत में सच्चाई की ही जीत होती है।