Aligarh अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के भूविज्ञान विभाग के पूर्व प्रोफेसर एचएस इसराइली को पुलिस ने अदालत से जारी वारंटों के आधार पर गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। यह मामला 2004 का है, जब एक शोधार्थी छात्रा ने प्रोफेसर पर दुष्कर्म की कोशिश और अन्य गंभीर आरोप लगाए थे।
क्या है पूरा मामला?
2004 में भूविज्ञान विभाग के प्रोफेसर एचएस इसराइली के खिलाफ एक शोध छात्रा ने गंभीर आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया था। छात्रा का आरोप था कि प्रोफेसर ने शोध के बहाने उसे बहकाने की कोशिश की और जब उसने विरोध किया तो दुष्कर्म की कोशिश की।
मामला बढ़ने के बाद पुलिस ने प्रोफेसर के खिलाफ IPC की धारा 376/511 सहित अन्य धाराओं में केस दर्ज किया। हालांकि, कुछ समय बाद प्रोफेसर हाईकोर्ट से स्थगनादेश (Stay Order) लेकर आए, जिससे उनकी गिरफ्तारी टल गई।
कोर्ट का वारंट और गिरफ्तारी
हाईकोर्ट से स्थगनादेश तो मिल गया, लेकिन बाद में वह खारिज हो गया। इसके बावजूद प्रोफेसर लंबे समय तक कोर्ट में पेश नहीं हुए। वारंट जारी होने के बावजूद वे बार-बार टालमटोल करते रहे।
अब जब कोर्ट ने गैरहाजिरी को गंभीरता से लिया, तो सीजेएम (मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट) न्यायालय ने उनके खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया।
सिविल लाइंस पुलिस ने प्रोफेसर को उनके मेडिकल रोड स्थित आवास से गिरफ्तार किया और कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया।
इस कार्रवाई की पुष्टि सीओ तृतीय अभय पांडेय ने की है।
20 साल तक कैसे बचते रहे प्रोफेसर?
यह मामला बेहद चौंकाने वाला है क्योंकि इतने गंभीर आरोपों के बावजूद प्रोफेसर लंबे समय तक जेल जाने से बचते रहे।
2004: छात्रा ने प्रोफेसर पर आरोप लगाए और मामला दर्ज हुआ।
2005-2010: प्रोफेसर ने केस को खींचने की कोशिश की और कानूनी दांव-पेंच का सहारा लिया।
2010-2015: हाईकोर्ट से स्थगनादेश मिलने के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
2015-2023: वारंट जारी होते रहे, लेकिन प्रोफेसर पेश नहीं हुए।
2024: अदालत ने सख्ती दिखाई, वारंट जारी किया और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
AMU में पहले भी हो चुके हैं ऐसे विवाद!
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में पिछले कुछ वर्षों में कई विवाद सामने आए हैं।
2019: एक प्रोफेसर पर छात्राओं के साथ दुर्व्यवहार का आरोप लगा था।
2021: एक छात्रा ने हॉस्टल में उत्पीड़न की शिकायत की थी।
2023: AMU में एक प्रोफेसर पर जातिगत भेदभाव के आरोप लगे थे।
AMU को हमेशा से एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय माना जाता रहा है, लेकिन समय-समय पर यहां से छात्राओं और कर्मचारियों के उत्पीड़न से जुड़े मामलों की खबरें आती रही हैं।
क्या कहती है पुलिस और प्रशासन?
सीओ अभय पांडेय का कहना है कि अदालत के निर्देश के बाद कार्रवाई करना जरूरी था।
पुलिस का बयान:
“यह मामला बहुत पुराना है, लेकिन न्याय में देरी से इनकार नहीं किया जा सकता। प्रोफेसर को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।”
विश्वविद्यालय प्रशासन की प्रतिक्रिया:
AMU प्रशासन ने इस पूरे मामले पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय अपने पूर्व प्रोफेसर के खिलाफ हुई कार्रवाई से दूरी बना रहा है।
समाज में क्या संदेश?
इस पूरे घटनाक्रम से यह साबित होता है कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। चाहे कोई शिक्षक हो, अधिकारी हो या कोई प्रभावशाली व्यक्ति, अगर उसने कोई अपराध किया है तो कानून अपना काम करेगा।
इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर इतने सालों तक प्रोफेसर कानून से बचते कैसे रहे?
क्या न्यायिक प्रक्रिया में देरी के कारण अपराधियों को फायदा मिलता है?
विश्वविद्यालय प्रशासन की क्या जिम्मेदारी बनती है?
आगे क्या होगा?
अब यह देखना होगा कि कोर्ट इस मामले में आगे क्या रुख अपनाता है।
क्या प्रोफेसर को जमानत मिलेगी?
क्या पीड़िता को 20 साल बाद न्याय मिल पाएगा?
क्या विश्वविद्यालय प्रशासन इस मामले में कोई कार्रवाई करेगा?
AMU के पूर्व प्रोफेसर एचएस इसराइली की गिरफ्तारी ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि कानून का शिकंजा देर से सही, लेकिन कसता जरूर है। इस मामले ने विश्वविद्यालयों में होने वाले अपराधों और उनमें लिप्त शिक्षकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जरूरत को उजागर किया है।
अब यह देखना होगा कि क्या अदालत इस मामले में त्वरित न्याय सुनिश्चित कर पाएगी, या फिर कानूनी दांव-पेंच में यह मामला और लंबा खिंच जाएगा?
अब देखना यह होगा कि अदालत इस केस में क्या फैसला सुनाती है और क्या पीड़िता को आखिरकार न्याय मिल पाता है या नहीं!