Bareilly जिले में फर्जी जमानतदारों का संगठित रैकेट सक्रिय है, जिसने न्यायिक प्रक्रिया को चुनौती दे डाली है। इस रैकेट का खुलासा तब हुआ जब गोकशी के एक आरोपी के फरार होने पर कोर्ट ने जमानतदारों को नोटिस भेजा। चौंकाने वाली बात यह रही कि जमानतदारों ने खुद को इस मामले से अनभिज्ञ बताया और किसी भी तरह की जमानत लेने से साफ इनकार कर दिया। इसके बाद जब जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि जिन लेखपाल, कानूनगो और पुलिस अधिकारियों ने सत्यापन रिपोर्ट दी थी, उनके रिकॉर्ड संबंधित विभागों में मौजूद ही नहीं थे। इस सनसनीखेज खुलासे के बाद कोर्ट रीडर ने कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई है।
कैसे हुआ फर्जीवाड़े का पर्दाफाश?
अपर जिला एवं सत्र न्यायालय कोर्ट संख्या आठ के रीडर अरविंद गौतम ने जनपद न्यायाधीश के आदेश पर कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई। मामला अपराध संख्या 499/2023 राज्य बनाम कुंजी से जुड़ा है, जिसमें गोकशी के आरोपी कुंजी को जमानत दी गई थी। आरोपी की जमानत के लिए सत्यापन प्रक्रिया सीबीगंज थाने और सदर तहसील को भेजी गई थी। सत्यापन के बाद कोर्ट लिपिक विजय कुमार ने जमानत प्रपत्र प्रस्तुत किए, जिन्हें न्यायालय ने स्वीकार कर लिया।
लेकिन केस के विचारण के दौरान जब आरोपी कुंजी कोर्ट में पेश नहीं हुआ तो न्यायालय ने उसके जमानतदारों को नोटिस जारी किया। मथुरापुर के रहने वाले जमानतदार सगीर अहमद और शकील अहमद ने कोर्ट में पेश होकर शपथपत्र दिया कि उन्होंने कुंजी की जमानत ली ही नहीं थी। इसके बाद जब न्यायालय ने जमानतदारों की सत्यापन रिपोर्ट की जांच करवाई तो पूरा मामला फर्जी निकला।
फर्जी सत्यापन में कौन-कौन शामिल?
जब प्रशासनिक अधिकारियों से जांच रिपोर्ट की पुष्टि कराई गई, तो यह सामने आया कि सत्यापन रिपोर्ट जिन लेखपाल, कानूनगो और दरोगा द्वारा दी गई थी, उनका रिकॉर्ड विभागों में उपलब्ध ही नहीं था। इसका मतलब साफ था कि जमानत के लिए बनाई गई पूरी प्रक्रिया फर्जी थी और इसमें किसी बड़े रैकेट के शामिल होने की संभावना है। कोर्ट रीडर की शिकायत पर पुलिस ने कोतवाली में इस मामले में एफआईआर दर्ज कर ली है और आगे की जांच शुरू कर दी गई है।
क्या है जमानत फर्जीवाड़े का पूरा नेटवर्क?
Bareilly और आस-पास के जिलों में लंबे समय से फर्जी जमानतदारों का रैकेट सक्रिय है। कई मामलों में जमानत के लिए पेश किए गए गवाहों की हैसियत और पहचान गलत साबित हुई है। यह रैकेट खासतौर पर ऐसे अपराधियों को बचाने में लगा हुआ है, जिन पर गंभीर आरोप होते हैं। आमतौर पर निम्नलिखित तरीकों से फर्जी जमानतें दी जाती हैं:
- नकली पहचान पत्र और दस्तावेज – जमानतदारों के नाम पर फर्जी आधार कार्ड, राशन कार्ड और बिजली बिल बनाए जाते हैं।
- बिचौलियों की भूमिका – कुछ कानूनी जानकार और दलाल इस धंधे में शामिल होते हैं, जो मोटी रकम लेकर फर्जी जमानतदार उपलब्ध कराते हैं।
- अधिकारियों की मिलीभगत – फर्जी सत्यापन रिपोर्ट के लिए कुछ भ्रष्ट अधिकारी पैसे लेकर गलत दस्तावेज जारी कर देते हैं।
क्या कहती है पुलिस?
पुलिस इस मामले को गंभीरता से ले रही है और इसमें शामिल सभी लोगों की तलाश कर रही है। प्राथमिक जांच के बाद पुलिस को कई संदिग्ध नाम मिले हैं, जो इस रैकेट से जुड़े हो सकते हैं। अधिकारियों का कहना है कि जल्द ही कुछ और गिरफ्तारियां हो सकती हैं।
बरेली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया,
“हम इस रैकेट की जड़ों तक पहुंचने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। फर्जी दस्तावेज बनाने वाले और इस गोरखधंधे में शामिल अधिकारियों की पहचान की जा रही है।”
कोर्ट की सख्ती, क्या होगा आगे?
कोर्ट ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया है और संबंधित अधिकारियों को तलब कर लिया है। यदि जांच में कोई भी अधिकारी दोषी पाया जाता है, तो उस पर सख्त कानूनी कार्रवाई होगी।
क्या हैं इसके कानूनी परिणाम?
फर्जी जमानत देने वाले और सत्यापन में धांधली करने वाले लोगों पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की कई धाराएं लगाई जा सकती हैं, जैसे:
- धोखाधड़ी (धारा 420)
- फर्जी दस्तावेज तैयार करना (धारा 467, 468, 471)
- न्यायालय को गुमराह करना (धारा 193, 199, 200)
फर्जी जमानतदारों के खिलाफ कड़ा एक्शन जरूरी
बरेली में फर्जी जमानत के इस मामले ने पूरे न्यायिक तंत्र पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब अपराधी फर्जी तरीके से जमानत पर बाहर आकर कानून से बच निकलते हैं, तो इससे आम जनता का न्याय व्यवस्था पर विश्वास कम होता है। ऐसे में जरूरी है कि इस पूरे नेटवर्क की गहन जांच हो और दोषियों को कड़ी सजा मिले।
बरेली का नहीं, पूरे उत्तर प्रदेश में सक्रिय है रैकेट
ऐसे मामले केवल बरेली तक सीमित नहीं हैं। उत्तर प्रदेश के कई जिलों में फर्जी जमानतदारों के मामले सामने आ चुके हैं। इससे पहले भी कानपुर, मेरठ, प्रयागराज और लखनऊ में ऐसे गिरोहों का पर्दाफाश हो चुका है। इस पूरे मामले में पुलिस और न्यायिक प्रशासन को सतर्कता बरतनी होगी, ताकि ऐसे फर्जीवाड़े दोबारा न हों।
न्याय व्यवस्था को कैसे बचाएं?
- जमानत देने से पहले जमानतदारों के दस्तावेजों का डिजिटल सत्यापन अनिवार्य किया जाए।
- पुलिस और प्रशासन को आपसी समन्वय से जांच करनी चाहिए।
- फर्जी जमानत दिलाने वालों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए।
न्याय प्रणाली में सुधार की जरूरत
बरेली का यह मामला न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की जरूरत को दर्शाता है। अगर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई नहीं हुई तो यह प्रवृत्ति और बढ़ सकती है। पुलिस की जांच और कोर्ट की सख्ती से उम्मीद है कि इस पूरे गिरोह का पर्दाफाश जल्द ही होगा और दोषियों को कड़ी सजा मिलेगी।