नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट का ताजा आदेश Ram Mandir Trust को लेकर एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) को आदेश दिया है कि वह यह तय करे कि अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर का ट्रस्ट, श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट, पब्लिक प्राधिकरण (सार्वजनिक प्राधिकरण) के दायरे में आता है या नहीं। यदि ट्रस्ट को पब्लिक प्राधिकरण माना जाता है, तो यह सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत नागरिकों को जानकारी देने के लिए बाध्य होगा। यह आदेश आरटीआई आवेदक नीरज शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया गया है।
राम मंदिर ट्रस्ट को पब्लिक प्राधिकरण मानने का मामला
दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) यह निर्णय ले कि राम मंदिर ट्रस्ट, जो कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण और प्रबंधन के लिए गठित किया गया है, वह क्या सार्वजनिक प्राधिकरण के दायरे में आता है या नहीं। यदि CIC इसे पब्लिक प्राधिकरण मानता है, तो ट्रस्ट को आरटीआई के तहत जानकारी देने के लिए बाध्य किया जाएगा।
यह आदेश हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव नरूला की बेंच ने पारित किया। इस मामले की सुनवाई के दौरान, नीरज शर्मा ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित किया कि गृह मंत्रालय ने उनके द्वारा दायर किए गए आरटीआई आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि राम मंदिर ट्रस्ट एक स्वायत्त (ऑटोनोमस) संगठन है और यह सार्वजनिक प्राधिकरण के दायरे में नहीं आता है।
क्या है RTI का महत्व?
सूचना का अधिकार (RTI) कानून नागरिकों को सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र से संबंधित जानकारी प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है। इस कानून के तहत यदि किसी सार्वजनिक प्राधिकरण से संबंधित जानकारी चाहिए, तो नागरिक आवेदन कर सकते हैं। लेकिन अगर राम मंदिर ट्रस्ट को पब्लिक प्राधिकरण नहीं माना जाता, तो इसके पास RTI के तहत जानकारी देने की बाध्यता नहीं होगी।
दिल्ली हाईकोर्ट ने यह आदेश पारित करते हुए कहा कि मामले में लंबित सवाल पर केंद्रीय सूचना आयोग ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है कि क्या राम मंदिर ट्रस्ट को पब्लिक प्राधिकरण माना जा सकता है या नहीं।
राम मंदिर ट्रस्ट का गठन
राम मंदिर ट्रस्ट का गठन 5 फरवरी 2020 को हुआ था, जब अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की राह प्रशस्त हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2019 में राम मंदिर के निर्माण के लिए फैसला सुनाया था, जिसके बाद केंद्र सरकार ने राम मंदिर ट्रस्ट का गठन किया था। ट्रस्ट में कुल 15 सदस्य हैं, जिनमें सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील के. पारासरन, स्वामी वासुदेवनंद सरस्वती, ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य और नृपेंद्र मिश्रा शामिल हैं।
राम मंदिर ट्रस्ट को पब्लिक अथॉरिटी मानने की बहस ने देशभर में हलचल मचा दी है। इससे न केवल अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर से जुड़ी जानकारी का आदान-प्रदान आसान होगा, बल्कि यह भारतीय राजनीति और धार्मिक मामलों में भी एक नया मोड़ लेकर आ सकता है।
जस्टिस संजीव नरूला का आदेश
नीरज शर्मा ने गृह मंत्रालय के लोक सूचना अधिकारी के पास 19 जनवरी 2021 को एक आरटीआई आवेदन दायर किया था, जिसमें उन्होंने राम मंदिर ट्रस्ट के लिए नियुक्त केंद्रीय लोक सूचना अधिकारियों (CPIO) और प्रथम अपीलीय प्राधिकरण के नाम मांगे थे। लेकिन मंत्रालय ने उनका आवेदन यह कहते हुए खारिज कर दिया कि राम मंदिर ट्रस्ट एक स्वायत्त संगठन है और सार्वजनिक प्राधिकरण के दायरे में नहीं आता है।
इसके बाद नीरज शर्मा ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जस्टिस संजीव नरूला की बेंच ने मामले की सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया कि इस सवाल पर पहले केंद्रीय सूचना आयोग विचार करे। अदालत ने यह भी कहा था कि इस मुद्दे पर विस्तृत आदेश पारित किया जाएगा और इसे हाईकोर्ट के पोर्टल पर अपलोड किया गया।
क्या होगा आगे?
यह आदेश देशभर में चर्चाओं का विषय बन गया है। अब यह देखना होगा कि केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) इस मामले में क्या निर्णय लेता है। अगर राम मंदिर ट्रस्ट को पब्लिक प्राधिकरण माना जाता है, तो इसका प्रभाव यह होगा कि ट्रस्ट के बारे में सार्वजनिक जानकारी प्राप्त करने का रास्ता खोल जाएगा। इससे ट्रस्ट के आंतरिक मामलों को लेकर पारदर्शिता बढ़ेगी। साथ ही, नागरिकों को ट्रस्ट से जुड़ी जानकारी प्राप्त करने का अधिकार मिलेगा।
ट्रस्ट की पारदर्शिता और प्रभाव
अगर राम मंदिर ट्रस्ट को पब्लिक प्राधिकरण मान लिया जाता है, तो यह ट्रस्ट के प्रबंधन में पारदर्शिता को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है। अब तक, राम मंदिर ट्रस्ट के संचालन से जुड़ी कई बातें अस्पष्ट रही हैं। इसके बावजूद, इसके गठन के बाद से, इसके गतिविधियों और वित्तीय स्थिति के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए नागरिकों को कोई आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं थी।
पब्लिक प्राधिकरण के दायरे में आने से, ट्रस्ट को अब अपनी कार्यप्रणाली, फंडिंग, और दूसरे महत्वपूर्ण मामलों पर रिपोर्टिंग करना होगा। इससे न केवल राम मंदिर के निर्माण कार्य में पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि लोगों को यह भी जानकारी मिल सकेगी कि यह ट्रस्ट किस प्रकार से अपनी योजनाओं को लागू करता है और फंड का प्रबंधन करता है।
इस आदेश के बाद, यह माना जा सकता है कि अगर राम मंदिर ट्रस्ट को सार्वजनिक प्राधिकरण माना जाता है, तो यह मंदिर निर्माण की प्रक्रिया में बड़ी भूमिका निभा सकता है। साथ ही, यह कानून और व्यवस्था के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे अन्य धार्मिक संस्थानों और ट्रस्टों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत होगा कि कैसे उन्हें अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनना चाहिए।
समग्र प्रभाव
Ram Mandir Trust का पब्लिक प्राधिकरण के तौर पर मान्यता मिलने से इस मामले में नए सवाल उठ सकते हैं। इसमें धार्मिक स्वतंत्रता, सरकारी हस्तक्षेप, और मंदिरों के संचालन की स्वतंत्रता जैसे मुद्दे शामिल हो सकते हैं।
इस समय, राम मंदिर का निर्माण केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं है, बल्कि यह एक राष्ट्रीय और राजनीतिक प्रतीक बन चुका है। इसके निर्माण से जुड़ी जानकारी और उसकी पारदर्शिता पर सार्वजनिक दबाव भी बढ़ेगा।
अब यह देखना होगा कि क्या केंद्रीय सूचना आयोग राम मंदिर ट्रस्ट को पब्लिक प्राधिकरण के तौर पर मान्यता देगा और इसके बाद ट्रस्ट के कामकाज में क्या बदलाव आएंगे।