Ghaziabad में सरकारी तंत्र का एक और शर्मनाक चेहरा उजागर हुआ है। यहां फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनाकर करोड़ों की पैतृक संपत्ति हड़पने के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। ताजा मामला मोदीनगर के भोजपुर थाना क्षेत्र के ईसापुर गांव से आया है, जहां 12 साल से लापता युवक का फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र तैयार कर उसकी बहनों ने संपत्ति अपने नाम करा ली।
12 साल से लापता युवक का ‘मौत का खेल’
लापता युवक सोनू, जिसकी उम्र 12 साल पहले 25 वर्ष के आसपास थी, का अचानक गायब होना परिवार के लिए एक बड़ा झटका था। उसके चाचा मनवीर सिंह ने बताया कि सोनू कभी-कभी गांव आता-जाता रहता था। लेकिन अचानक उसके गायब होने के बाद बहनों ने सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से उसकी मौत का झूठा प्रमाण पत्र तैयार कर लिया।
मनवीर सिंह ने एसडीएम मोदीनगर को शिकायत देते हुए पूरे मामले की जांच की मांग की है। उनका कहना है कि बिना किसी ठोस जांच के तहसीलदार ने आदेश जारी कर दिया। यह सवाल खड़ा करता है कि आखिरकार सरकारी तंत्र में ऐसी चूक क्यों हो रही है।
निवाड़ी नगर पंचायत में भी हुआ था ऐसा ही मामला
यह पहली बार नहीं है जब गाजियाबाद में इस तरह का फर्जीवाड़ा सामने आया हो। निवाड़ी नगर पंचायत में एक अन्य मामले ने सनसनी फैला दी थी। 35 साल से लापता व्यक्ति का फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र तैयार कर उसकी करोड़ों की जमीन पर कब्जा कर लिया गया था। उस मामले में फर्जी हस्ताक्षर और सरकारी अधिकारियों की संलिप्तता की पुष्टि हुई थी।
सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत: सवालों के घेरे में नायाब तहसीलदार
सोनू के मामले में भी तहसीलदार की भूमिका पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि तहसीलदार ने बिना किसी जांच-पड़ताल के मौत प्रमाण पत्र जारी कर दिया। इस कार्रवाई से न केवल चाचा मनवीर सिंह, बल्कि पूरे गांव में रोष व्याप्त है। ग्रामीणों का कहना है कि इस मामले की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए और दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए।
फर्जीवाड़े के बढ़ते मामले: संपत्ति पर कब्जे का गंदा खेल
गाजियाबाद और उसके आसपास के इलाकों में फर्जी दस्तावेज तैयार करने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। जमीन हड़पने के लिए ये गैंग पहले लापता व्यक्तियों के नाम पर फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र तैयार करते हैं। फिर उन प्रमाण पत्रों के आधार पर संपत्ति को अपने नाम करवा लेते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि ये मामले अकेले नहीं हो सकते। इनमें सरकारी तंत्र के अंदर काम करने वाले कुछ भ्रष्ट कर्मचारियों की मिलीभगत शामिल होती है। फर्जी हस्ताक्षर, बिना जांच रिपोर्ट के प्रमाण पत्र जारी करना, और रिश्वत के बल पर काम करवाना जैसे आरोपों की जांच होनी चाहिए।
सिस्टम में सुधार की मांग
गाजियाबाद में फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र का यह मामला सिर्फ एक बानगी है। इससे पहले भी कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जहां सरकारी अधिकारियों की लापरवाही और भ्रष्टाचार की वजह से निर्दोष लोगों को नुकसान उठाना पड़ा है।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में दोषियों को सख्त सजा मिलनी चाहिए। साथ ही, मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया को और मजबूत और पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है। डिजिटल वेरिफिकेशन और जांच समितियों का गठन भी एक समाधान हो सकता है।
ग्रामीणों की अपील: न्याय और सख्त कार्रवाई की मांग
ईसापुर गांव के ग्रामीणों ने भी इस मामले में दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि अगर इस तरह के फर्जीवाड़े पर लगाम नहीं लगाई गई तो भविष्य में और भी निर्दोष लोग इसका शिकार हो सकते हैं।
चाचा मनवीर सिंह का कहना है कि अगर इस मामले में सच्चाई सामने नहीं आई, तो वह उच्च न्यायालय तक जाने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ मेरी लड़ाई नहीं है, बल्कि हर उस व्यक्ति की लड़ाई है जो भ्रष्टाचार और अन्याय का शिकार हो रहा है।”
अभी तक कोई जांच नहीं: प्रशासन पर उठे सवाल
मनवीर सिंह के आरोप के बाद भी प्रशासनिक कार्रवाई धीमी है। नायाब तहसीलदार पर लगे गंभीर आरोपों के बावजूद कोई ठोस जांच शुरू नहीं हुई है। यह प्रशासन की निष्क्रियता और भ्रष्टाचार के प्रति उदासीन रवैये को दिखाता है।
गाजियाबाद में फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र का यह मामला दिखाता है कि कैसे सरकारी तंत्र का दुरुपयोग कर निर्दोष लोगों की संपत्ति पर कब्जा किया जा रहा है। ऐसे मामलों में त्वरित और निष्पक्ष जांच जरूरी है ताकि दोषियों को सजा मिल सके और भविष्य में इस तरह की घटनाओं पर रोक लगाई जा सके।