राजनीतिक और धार्मिक विवादों के दौर में, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी की दरगाह पर शिव मंदिर होने का दावा सामने आया है। यह मामला उस समय और गरम हो गया जब ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी (Maulana Shahabuddin Razvi Bareilvi) ने इस दावे को ‘झूठा और बेबुनियाद’ करार दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस प्रकार के आरोप देश की एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र को चोट पहुंचाने के उद्देश्य से लगाए जा रहे हैं।
सांप्रदायिक सौहार्द्र पर चोट की कोशिश
Maulana Shahabuddin Razvi Bareilvi ने आरोप लगाया कि यह विवाद कुछ सांप्रदायिक ताकतों द्वारा जानबूझकर पैदा किया गया है। उन्होंने कहा, “यह दरगाह हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है और इसे किसी भी प्रकार से खंडित करने का प्रयास अस्वीकार्य है। शिव मंदिर होने का दावा न केवल मुस्लिम समुदाय बल्कि हिंदू समाज की भावनाओं को भी ठेस पहुंचाने वाला है।”
इतिहास और धार्मिक योगदान
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह देश में आपसी भाईचारे और धार्मिक एकता का प्रतीक मानी जाती है। इतिहास के पन्नों में यह उल्लेख मिलता है कि इस दरगाह पर मुस्लिम शासकों से लेकर हिंदू राजा और महाराजा तक अपनी श्रद्धा अर्पित करते रहे हैं। मौलाना रजवी ने बताया कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर साल उर्स के अवसर पर केंद्र सरकार की ओर से चादर भेजते हैं। उन्होंने आगे कहा, “यह स्थान सूफी विचारधारा का केंद्र है, जो मानवता और शांति का संदेश देती है।”
विवाद का वर्तमान परिप्रेक्ष्य
अभी हाल ही में संभल की जामा मस्जिद को लेकर भी विवाद हुआ था, जिसे लेकर देश में काफी हंगामा मचा। इस नए विवाद ने माहौल को और भी गर्म कर दिया है। मौलाना रजवी ने चेतावनी दी कि ऐसे मुद्दे समाज में अविश्वास और घृणा को बढ़ावा देते हैं। उन्होंने सभी समुदायों से अपील की कि वे अफवाहों पर ध्यान न दें और एकता बनाए रखें।
दरगाह पर श्रद्धालुओं की भागीदारी
दरगाह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती न केवल मुस्लिमों बल्कि हिंदुओं के लिए भी आस्था का केंद्र है। मौलाना रजवी ने बताया कि यहां आने वाले कुल श्रद्धालुओं में लगभग 40% हिंदू होते हैं। “यह तथ्य इस बात का सबूत है कि ख्वाजा साहब की शिक्षा और विचारधारा ने सभी धर्मों को जोड़ा है,” उन्होंने कहा।
क्या है शिव मंदिर का दावा?
इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब एक याचिका दायर की गई, जिसमें दावा किया गया कि दरगाह के भीतर एक प्राचीन शिव मंदिर है। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से अपील की कि इसकी जांच की जाए और उस क्षेत्र को हिंदुओं के लिए पुनः प्राप्त किया जाए। मौलाना रजवी ने इस दावे को सिरे से खारिज करते हुए इसे “इतिहास के तथ्यों से अनजान लोगों की साजिश” बताया।
सूफी विचारधारा की प्रासंगिकता
मौलाना रजवी ने सूफी विचारधारा पर जोर देते हुए कहा कि यह विचारधारा ही है जो देश को एकता और शांति का पाठ पढ़ा सकती है। उन्होंने कहा, “सूफी संतों ने हमेशा प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया है। आज की दुनिया को इस विचारधारा की सबसे ज्यादा जरूरत है।”
सांप्रदायिकता का बढ़ता खतरा
मौलाना ने चिंता व्यक्त की कि ऐसे मुद्दे देश की गंगा-जमुनी तहजीब को कमजोर कर सकते हैं। उन्होंने राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों से अपील की कि वे इस तरह के विवादों को हवा न दें।
दरगाह अजमेर शरीफ का यह मामला न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह विवाद भारत की धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सौहार्द्र के सामने एक चुनौती है। सवाल यह उठता है कि क्या ऐसी घटनाओं से देश की एकता पर आघात पहुंचेगा, या फिर समाज एकजुट होकर इन प्रयासों को विफल करेगा?
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