Meerut उत्तर प्रदेश के कई जिलों में बंदरों का आतंक बढ़ता जा रहा है। विशेष रूप से मेरठ जैसे रिहायशी इलाकों में लोग बंदरों के उत्पात से त्रस्त हैं। बंदर न केवल लोगों को परेशान कर रहे हैं, बल्कि उनके काटने की घटनाओं से लोग गंभीर रूप से घायल हो रहे हैं। बंदरों के कारण रोज़ नए हादसे हो रहे हैं। वहीं, इस समस्या से निजात दिलाने की जिम्मेदारी से वन विभाग ने खुद को अलग कर लिया है।
हाल ही में मेरठ दौरे पर आए उत्तर प्रदेश के वन मंत्री अरुण कुमार ने एक बेहद चौंकाने वाला बयान दिया। उन्होंने कहा कि बंदर अब वन्य जीव नहीं हैं और उन्हें पकड़ना या उनकी समस्या का समाधान करना वन विभाग की जिम्मेदारी नहीं है। उनका साफ कहना है कि अब लोग बंदरों की समस्या की शिकायत नगर निगम या नगर पालिका से करें।
यह बयान न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि लोगों के लिए एक नई चिंता भी लेकर आया है। वन मंत्री अरुण कुमार का कहना है कि “बंदर वन विभाग के अधीन नहीं आते, इसलिए उनका नियंत्रण हमारी जिम्मेदारी नहीं है।” मंत्री जी ने यह भी जोड़ा कि बंदरों की बढ़ती आबादी को नियंत्रित करना जरूरी है, लेकिन इसका हल कैसे निकाला जाएगा, इस पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे पाए।
बंदरों का आतंक और लोग हलकान
उत्तर प्रदेश में बंदरों की बढ़ती समस्या किसी से छिपी नहीं है। मेरठ जैसे इलाकों में बंदर खुलेआम घरों में घुस आते हैं, छतों पर डेरा डालते हैं और खाने-पीने की चीज़ें चुरा ले जाते हैं। इससे लोग खासे परेशान हैं। इसके अलावा, बंदरों के हमले से बच्चों और बुजुर्गों के घायल होने की खबरें आम हो गई हैं। बंदरों के काटने से बच्चों में डर बैठ गया है, और लोगों के लिए यह एक गंभीर स्वास्थ्य संकट का रूप ले चुका है।
पहले यह माना जाता था कि वन विभाग इस समस्या का समाधान करेगा, लेकिन मंत्री के हालिया बयान से स्थिति और उलझी हुई लगती है। वन मंत्री अरुण कुमार ने साफ तौर पर कहा है कि बंदरों को वन्य जीवों की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है, और अब नगर निगम और नगर पालिका ही इस मुद्दे का समाधान कर सकते हैं। इसका मतलब यह है कि अब बंदर और कुत्ते एक ही श्रेणी में आ गए हैं, और इनसे जुड़ी समस्याओं को नगर निकायों के ज़रिए ही सुलझाया जाएगा।
नियमों में बदलाव: बंदर वन्य जीव नहीं रहे
वन मंत्री अरुण कुमार के बयान के बाद यह साफ हो गया है कि बंदरों को वाइल्डलाइफ कैटेगरी से हटा दिया गया है। इसका मतलब यह है कि अब बंदरों को पकड़ने, संरक्षण देने या उनकी समस्याओं का समाधान करने की जिम्मेदारी नगर निगम और नगर पालिका की हो गई है।
सरकार ने वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट में संशोधन करते हुए बंदरों को वन्य जीवों की सूची से हटा दिया है। इसके बाद अब बंदरों को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी वन विभाग की नहीं रह गई है। हालांकि, मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि जंगलों में अन्य वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए, किसी भी वन्य जीव को छोड़ने के लिए चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन से अनुमति लेनी होगी। वहीं, लंगूर अभी भी वन्य जीवों की श्रेणी में शामिल हैं और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी।
नगर निकायों के सामने नई चुनौती
अब जब बंदरों की समस्या का हल नगर निगम और नगर पालिका के अधीन आ गया है, तो यह सवाल उठता है कि क्या ये संस्थाएं इस चुनौती को संभालने के लिए तैयार हैं? नगर निगमों के पास पहले से ही सड़कों की सफाई, जल निकासी, कूड़ा प्रबंधन जैसी कई जिम्मेदारियां हैं। ऐसे में बंदरों की समस्या का समाधान कैसे होगा, यह देखना दिलचस्प होगा।
इसके अलावा, बंदरों की समस्या का समाधान करने के लिए क्या कोई विशेष योजना या बजट तैयार किया गया है? इस पर भी नगर निकायों को स्पष्ट करना होगा। बंदरों की पकड़-धकड़ के लिए विशेष टीमों की आवश्यकता होगी, जो इस काम को सुचारू रूप से कर सकें। इसके अलावा, अगर बंदरों को किसी सुरक्षित स्थान पर छोड़ना है, तो इसके लिए भी अलग से इंतजाम करने की जरूरत होगी।
जनता में रोष, क्या वन मंत्री का बयान सही है?
बंदरों से त्रस्त जनता में वन मंत्री के इस बयान से भारी रोष है। लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि अगर वन विभाग की जिम्मेदारी नहीं है तो फिर इस समस्या का हल कौन निकालेगा?
वन मंत्री का यह बयान जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है। खासकर, उन लोगों के लिए यह बड़ा झटका है, जो यह मानकर चल रहे थे कि वन विभाग बंदरों की समस्या का समाधान करेगा। सोशल मीडिया पर भी लोग इस मुद्दे पर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं।
समस्या का समाधान या जिम्मेदारी से भागना?
वन मंत्री का यह बयान जहां एक ओर बंदरों की समस्या के हल के प्रति सरकार की गंभीरता पर सवाल खड़े करता है, वहीं दूसरी ओर यह दिखाता है कि सरकार इस समस्या से निपटने के लिए क्या उपाय कर रही है। बंदरों को वाइल्डलाइफ श्रेणी से हटाना और नगर निगमों को इस जिम्मेदारी से जोड़ना, क्या वास्तव में समस्या का समाधान करेगा या सिर्फ जिम्मेदारी से बचने का एक प्रयास है?
यह भी सवाल उठता है कि नगर निगम और नगर पालिका, जिनके पास पहले से ही सीमित संसाधन हैं, क्या बंदरों की समस्या से प्रभावी ढंग से निपट पाएंगे? या फिर यह एक ऐसा मुद्दा बन जाएगा, जो आने वाले समय में और भी बड़ी चुनौती बनकर सामने आएगा?
उत्तर प्रदेश में बंदरों का आतंक और इस पर वन विभाग का पल्ला झाड़ना दोनों ही मुद्दे चिंता का विषय हैं। मंत्री अरुण कुमार का यह बयान भले ही वन विभाग को जिम्मेदारी से मुक्त कर दे, लेकिन यह समस्या को हल करने का रास्ता नहीं दिखाता। अब यह देखना बाकी है कि नगर निगम और नगर पालिका इस नई जिम्मेदारी को कैसे निभाते हैं और बंदरों के आतंक से लोगों को किस हद तक राहत मिलती है।