Kanpur रैगिंग का मुद्दा हमारे देश में हमेशा से ही चिंता का विषय रहा है, और अब फिर से एक दर्दनाक घटना ने इसे सुर्खियों में ला दिया है। नवाबगंज स्थित एचबीटीयू (हरकोर्ट बटलर टेक्निकल यूनिवर्सिटी) में बीटेक के तृतीय वर्ष के छात्रों ने सीनियर छात्रों पर रैगिंग और हिंसक हमले के गंभीर आरोप लगाए हैं। इस घटना में आठ सीनियर छात्रों पर केस दर्ज किया गया है, जिनमें हत्या के प्रयास जैसी गंभीर धाराएं भी शामिल हैं। पीड़ित छात्रों के बयान और एफआईआर में दर्ज घटनाएं ना सिर्फ रौंगटे खड़े करने वाली हैं, बल्कि यह उच्च शिक्षा के प्रतिष्ठानों में रैगिंग की समस्या को और गहराई से उजागर करती हैं।
घटना का विवरण
16 अक्टूबर की दोपहर को यह घटना तब शुरू हुई जब बीटेक तृतीय वर्ष के छात्र गौरव चौहान और उनके साथी यशविंदर सिंह को उनके सीनियर गोविंद सिंह ने फोन कर अब्दुल कलाम हॉस्टल में एक जन्मदिन पार्टी में बुलाया। जब गौरव और यशविंदर अपने तीसरे साथी धीर शशिकांत शर्मा के साथ हॉस्टल पहुंचे, तो वहां गोविंद सिंह के साथ अन्य सीनियर छात्र भी मौजूद थे। इनमें निश्चल निगम, हर्ष मधेशिया, और अभय सोनकर शामिल थे। पार्टी की आड़ में जो कुछ हुआ, वह किसी के भी सामान्य समझ के बाहर था।
आरोपों के अनुसार, वहां मौजूद सीनियर्स अमन सिंह, अमन कुशवाहा, नितिन सिंह, सूरज गौड़, अंकित गुप्ता, अभिषेक उपाध्याय, आकांक्ष अत्रेय और अनूप राजपाल ने उन तीनों छात्रों की रैगिंग का प्रयास किया। जब जूनियर्स ने इसका विरोध किया, तो सीनियर्स ने उन्हें लात-घूंसों, लाठी और बेल्ट से बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया। इस दौरान, धीर का सिर फट गया और गौरव चौहान का गला दबाकर हत्या का प्रयास किया गया। खासकर, अभिषेक उपाध्याय ने खुद को “भविष्य का डॉन” बताकर अपनी दबंगई का प्रदर्शन किया और गंभीर हिंसा की।
पुलिस की कार्रवाई
नवाबगंज थाना प्रभारी दीनानाथ मिश्रा ने घटना की पुष्टि करते हुए बताया कि पीड़ित गौरव चौहान की तहरीर के आधार पर आठ सीनियर छात्रों के खिलाफ हत्या के प्रयास समेत कई गंभीर धाराओं में रिपोर्ट दर्ज की गई है। अभिषेक उपाध्याय, अमन सिंह, अमन कुशवाहा, नितिन सिंह, सूरज गौड़, आकांक्ष अत्रेय, अनूप राजपाल, और अंकित गुप्ता के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जा रही है।
पुलिस का कहना है कि मामले की जांच जारी है और पीड़ित छात्रों के बयान भी लिए जा रहे हैं। फिलहाल, मामले को गंभीरता से लेते हुए, कॉलेज प्रशासन और पुलिस दोनों ही इस मामले की तहकीकात कर रहे हैं, ताकि दोषियों को सख्त सजा दी जा सके।
रैगिंग की समस्या और इसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव
यह घटना फिर से हमें याद दिलाती है कि रैगिंग सिर्फ एक शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक उत्पीड़न का भी रूप ले चुकी है। रैगिंग के शिकार छात्र अक्सर मानसिक तनाव, अवसाद, और कभी-कभी आत्महत्या जैसे कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। रैगिंग को लेकर कानून भी सख्त हैं, लेकिन इसका जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन उतना प्रभावी नहीं है।
विशेषज्ञों का मानना है कि रैगिंग के पीछे की मानसिकता और इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं। यह सिर्फ मज़ाक या परंपरा का हिस्सा नहीं है, बल्कि इसमें पावर प्ले और दूसरों को दबाने की भावना छिपी होती है। कॉलेज में प्रवेश करने वाले नए छात्र अक्सर रैगिंग के नाम पर मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किए जाते हैं। इन घटनाओं के परिणामस्वरूप उनमें आत्मविश्वास की कमी, समाज से दूर होने की प्रवृत्ति और पढ़ाई में गिरावट देखी जा सकती है।
कॉलेज प्रशासन की भूमिका
रैगिंग को रोकने में कॉलेज प्रशासन की भूमिका सबसे अहम होती है। हालांकि भारत में रैगिंग विरोधी कानून पहले से ही मौजूद हैं, लेकिन इन कानूनों का पालन सख्ती से नहीं किया जाता। इस घटना ने फिर से इस बात पर जोर दिया है कि कॉलेजों को अपने परिसर में सख्त निगरानी और अनुशासन सुनिश्चित करना होगा। हर संस्थान को छात्रों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।
क्या रैगिंग के खिलाफ कानून पर्याप्त हैं?
भारत में रैगिंग के खिलाफ सख्त कानून मौजूद हैं। 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग पर रोक लगाने के लिए कड़े निर्देश जारी किए थे, जिसमें रैगिंग करने वाले छात्रों को निलंबित करना, निष्कासित करना या उन्हें कानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ सकता है। “यूजीसी रैगिंग विरोधी नियमावली” भी इस पर सख्त कदम उठाने की वकालत करती है।
लेकिन कानूनों की मौजूदगी के बावजूद, इस तरह की घटनाएं यह सवाल खड़ा करती हैं कि क्या ये कानून वास्तव में प्रभावी हैं? कॉलेज और विश्वविद्यालयों में रैगिंग की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए, यह साफ है कि अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। छात्रों को इसके प्रति जागरूक करने के साथ-साथ, कॉलेज प्रशासन को सख्त निगरानी रखने और तुरंत कार्रवाई करने की जरूरत है।
रैगिंग से बचने के उपाय
रैगिंग की घटनाओं को कम करने के लिए सभी छात्रों को जागरूक करना सबसे पहला कदम है। इसके साथ ही, रैगिंग पीड़ित छात्रों को तुरंत कॉलेज प्रशासन या पुलिस से संपर्क करना चाहिए। संस्थानों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके परिसर में रैगिंग विरोधी कमेटी सक्रिय रूप से काम कर रही हो।
- रैगिंग विरोधी सेल का गठन: हर कॉलेज में एक रैगिंग विरोधी सेल का गठन होना चाहिए, जहां छात्रों की शिकायतें तुरंत सुनी जाएं और उनका हल किया जाए।
- छात्र जागरूकता: नए प्रवेश लेने वाले छात्रों को रैगिंग से जुड़े कानून और उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए।
- मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग: रैगिंग से प्रभावित छात्रों के लिए मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि वे इस आघात से उबर सकें।
समाज की जिम्मेदारी
समाज और खासकर शिक्षण संस्थानों का दायित्व है कि वे इस तरह की हिंसक गतिविधियों को गंभीरता से लें और ऐसे मामलों में तुरंत और सख्त कार्रवाई करें। छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण होनी चाहिए। कॉलेजों को चाहिए कि वे रैगिंग की घटनाओं के खिलाफ एक कड़ा संदेश दें और दोषियों के खिलाफ तुरंत और उचित कानूनी कार्रवाई करें।
रैगिंग कोई साधारण घटना नहीं है, और इसे मज़ाक या परंपरा के रूप में नहीं देखा जा सकता। यह छात्रों के जीवन को बर्बाद कर सकता है, और इसलिए इसकी जड़ से खत्म करने के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा। जब तक रैगिंग के खिलाफ समाज और प्रशासनिक तंत्र एकजुट नहीं होते, तब तक इस समस्या को पूरी तरह से खत्म करना मुश्किल होगा।
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