बांदा: सर्दी के सितम से जहां हर आम इंसान परेशान है। वहीं मजदूरों के लिए भी ठंड परेशानी का सबब बनी हुई है। कड़ाके की ठंडी के कारण ही मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों का काम बंद होने से घर में रोटी के लाले हैं। इस समय जिले में 154 कार्य बंद होने से 5 हजार श्रमिक अपने घरों में बैठे हैं। उन्हें दूसरा काम भी नहीं मिल रहा है। जिले में मनरेगा के तहत चल रहे विकास कार्यों में मजदूरों को काम मिल जाता है, जिसके सहारे उनकी जीविका चलती है। मनरेगा में काम न मिलने पर मजदूर दूसरे स्थानों पर काम करके किसी तरह अपना गुजारा कर लेते हैं, लेकिन इन दिनों भीषण सर्दी पड़ रही है।
पारा 5 और 6 डिग्री के आसपास बने रहने से उन्हें बाहर भी काम नहीं मिल पा रहा है। जिले में मनरेगा के तहत ढाई लाख से अधिक जॉब कार्ड धारक श्रमिक हैं। इन्हें हर वर्ष रोजगार मुहैया कराने के लिए 1 अरब से अधिक का सरकार बजट मुहैया कराती है। इसमें से अब तक 65 करोड़ से अधिक खर्च हो चुके हैं। इसमें करीब 48 लाख मजदूरी और शेष सामग्री में व्यय किया गया।
सर्दी का सितम बढने से मजदूर घटे
अक्टूबर 2022 में ग्राम पंचायतों में विकास कार्य तेज गति से हो रहे थे। इस दौरान कच्चे-पक्के कार्य कराए जा रहे थे। 482 कार्य स्थलों पर 22 हजार से अधिक मजदूर काम कर रहे थे, लेकिन जैसे ही सर्दी का सितम शुरू हुआ। मजदूरों की संख्या कार्य स्थलों से कम होती चली गई। दिसंबर में श्रमिकों की संख्या घटकर 12 हजार पहुंच गई थी। इस दौरान 50 से अधिक स्थलों के विकास कार्य बंद हो गए थे। ठंड कम न होने से यह संख्या बढ़कर 154 पहुंच गई और काम न करने वाले मजदूरों की संख्या बढ़कर 5 हजार हो गई। ठंड के कारण ही मजदूर काम करने में लाचार नजर आए। इस समय जनपद के 337 कार्य स्थलों में 7141 मजदूर काम कर रहे हैं। इनमें बबेरू ब्लाक के 46 कार्य स्थलों में 1285, बड़ोखर ब्लॉक के 47 स्थानों पर 922, बिसंडा में 36 कार्य स्थलों पर पर 701, जसपुरा में 23 स्थलों पर 581, कमासिन में 41 स्थानों पर 875, महुआ में 49 स्थलों 880, नरैनी में 54 स्थलों पर 1207, तिंदवारी ब्लाक में 41 स्थानों पर 690 मजदूर काम कर रहे हैं।
अलाव की कराई जा रही है व्यवस्थाइस बारे में मुख्य विकास अधिकारी का कहना है कि ठंड के कारण कार्य स्थलों पर मजदूरों की संख्या में कमी आई है। इस संबंध में सचिवों को निर्देशित किया गया है कि ठंड को देखते हुए कार्य स्थलों में अलाव आदि की व्यवस्था करा दी जाए, जिससे मजदूर काम कर सकें। वही मजदूरों का कहना है कि भीषण ठंड के कारण हाथ काम नहीं करते। साथ ही अलाव की व्यवस्था न होने से जान जोखिम में रहती है। इसी वजह से भले ही खाना न मिले जान है, तो जहान है। ठंड कम होने के बाद फिर से काम करेंगे। इनका कहना है कि एक सप्ताह में ठंड कम होने के आसार हैं।
रिपोर्ट – अनिल सिंह
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