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Research: सिर की सर्जरी के बाद जल्द उबरती हैं महिलाएं, 62 घायलों पर किए गए शोध में सामने आए निष्कर्ष

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जल्द सीखने और काम करने की बहुआयामी क्षमता महिलाओं का जन्मजात गुण है। यह उन्हें पुरुषों के मुकाबले बेहतर स्थिति में रखने के साथ सिर की सर्जरी के बाद जल्द उबरने में भी मदद करता है। केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग में हुए शोध में यह निष्कर्ष सामने आया है। न्यूरो सर्जरी विभाग में 62 घायलों पर यह शोध किया गया। इसके निष्कर्ष को इंडियन जर्नल ऑफ न्यूरोसर्जरी में दिसंबर में प्रकाशित किया गया है।

मानसिक रोग विभाग की डॉ. श्वेता सिंह, डॉ. सीमा रानी सर्राफ, डॉ. आदर्श त्रिपाठी, डॉ. बालकृष्णा ओझा और डॉ. अमनदीप सिंह ने फरवरी 2017 से अक्तूबर 2017 के बीच न्यूरोसर्जरी विभाग में सिर की चोट के बाद एपिडुरल हेमेटोमा बीमारी से पीड़ित मरीजों पर यह शोध किया।

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डॉ. श्वेता ने बताया कि एपिडुरल हेमेटोमा में सिर में चोट लगने के बाद मस्तिष्क के भीतर रक्तस्राव हो जाता है। ऐसे में सर्जरी ही विकल्प होती है। चोट की गंभीरता के हिसाब से यह साधारण या गंभीर हो सकती है। कई बार सर्जरी के बाद भी मरीजों को काफी समय तक समस्याएं रहती हैं। इनमें सामान्य याददाश्त का हृास होने के साथ भावनात्मक नियंत्रण न रख पाना, सोचने की गति, प्रवाह, योजना बनाने और रिस्पांस की क्षमता भी प्रभावित होती है। पुरुषों व महिलाओं दोनों को ये समस्याएं समान रूप से हो सकती हैं, पर महिलाएं इससे जल्द निजात पाती हैं।

अध्ययन में एपिडुरल हेमेटोमा से पीड़ित 43 पुरुष और 19 महिलाएं शामिल थीं। इनकी उम्र 20 से 60 वर्ष के बीच थी। सभी मामलों में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले जल्द उबर गईं। यह निष्कर्ष विभिन्न सामान्य स्वास्थ्य प्रश्नोत्तरी के साथ मिनी न्यूरोसाइक्रेटिक इंटरव्यू, डिजिट सिंबल टेस्ट, कलर ट्रेल टेस्ट, डिजिट विजिलेंस टेस्ट, डिजिट स्पैन टेस्ट, एनीमल नेम टेस्ट, एन बैक टेस्ट, स्ट्रूप जैसे साइकोलॉजिकल टेस्ट के आधार पर हुई जांच के बाद निकाला गया।

10 फीसदी मरीज हो जाते हैं एपिडुरल हेमेटोमा से पीड़ित
डॉ. आदर्श ने बताया कि सिर पर चोट के बाद करीब 10 फीसदी घायल एपिडुरल हेमेटोमा से पीड़ित हो जाते हैं। इसमें मरीज भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाता। उसे जल्द गुस्सा आता है। कब, कहां और क्या बोलना है या नहीं, यह तय करने में गड़बड़ी होने लगती है। डॉ. श्वेता के अनुसार न्यूरोलॉजिकल प्रभाव से पीड़ित होने के बाद भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं में शब्द उत्पन्न करने की क्षमता कम क्षीण होती है। अनुसंधान से पता चलता है कि महिलाओं का दिमागी निर्माण इस तरह का होता है जिससे उनमें पुरुषों के मुकाबले भाषा विशेषज्ञता पहले विकसित हो जाती है। लड़कियों में भी मौखिक कौशल और कामकाजी स्मृति जैसी क्षमता लड़कों की तुलना में बेहतर होती है।

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जल्द सीखने और काम करने की बहुआयामी क्षमता महिलाओं का जन्मजात गुण है। यह उन्हें पुरुषों के मुकाबले बेहतर स्थिति में रखने के साथ सिर की सर्जरी के बाद जल्द उबरने में भी मदद करता है। केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग में हुए शोध में यह निष्कर्ष सामने आया है। न्यूरो सर्जरी विभाग में 62 घायलों पर यह शोध किया गया। इसके निष्कर्ष को इंडियन जर्नल ऑफ न्यूरोसर्जरी में दिसंबर में प्रकाशित किया गया है।

मानसिक रोग विभाग की डॉ. श्वेता सिंह, डॉ. सीमा रानी सर्राफ, डॉ. आदर्श त्रिपाठी, डॉ. बालकृष्णा ओझा और डॉ. अमनदीप सिंह ने फरवरी 2017 से अक्तूबर 2017 के बीच न्यूरोसर्जरी विभाग में सिर की चोट के बाद एपिडुरल हेमेटोमा बीमारी से पीड़ित मरीजों पर यह शोध किया।

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डॉ. श्वेता ने बताया कि एपिडुरल हेमेटोमा में सिर में चोट लगने के बाद मस्तिष्क के भीतर रक्तस्राव हो जाता है। ऐसे में सर्जरी ही विकल्प होती है। चोट की गंभीरता के हिसाब से यह साधारण या गंभीर हो सकती है। कई बार सर्जरी के बाद भी मरीजों को काफी समय तक समस्याएं रहती हैं। इनमें सामान्य याददाश्त का हृास होने के साथ भावनात्मक नियंत्रण न रख पाना, सोचने की गति, प्रवाह, योजना बनाने और रिस्पांस की क्षमता भी प्रभावित होती है। पुरुषों व महिलाओं दोनों को ये समस्याएं समान रूप से हो सकती हैं, पर महिलाएं इससे जल्द निजात पाती हैं।

अध्ययन में एपिडुरल हेमेटोमा से पीड़ित 43 पुरुष और 19 महिलाएं शामिल थीं। इनकी उम्र 20 से 60 वर्ष के बीच थी। सभी मामलों में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले जल्द उबर गईं। यह निष्कर्ष विभिन्न सामान्य स्वास्थ्य प्रश्नोत्तरी के साथ मिनी न्यूरोसाइक्रेटिक इंटरव्यू, डिजिट सिंबल टेस्ट, कलर ट्रेल टेस्ट, डिजिट विजिलेंस टेस्ट, डिजिट स्पैन टेस्ट, एनीमल नेम टेस्ट, एन बैक टेस्ट, स्ट्रूप जैसे साइकोलॉजिकल टेस्ट के आधार पर हुई जांच के बाद निकाला गया।

10 फीसदी मरीज हो जाते हैं एपिडुरल हेमेटोमा से पीड़ित

डॉ. आदर्श ने बताया कि सिर पर चोट के बाद करीब 10 फीसदी घायल एपिडुरल हेमेटोमा से पीड़ित हो जाते हैं। इसमें मरीज भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाता। उसे जल्द गुस्सा आता है। कब, कहां और क्या बोलना है या नहीं, यह तय करने में गड़बड़ी होने लगती है। डॉ. श्वेता के अनुसार न्यूरोलॉजिकल प्रभाव से पीड़ित होने के बाद भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं में शब्द उत्पन्न करने की क्षमता कम क्षीण होती है। अनुसंधान से पता चलता है कि महिलाओं का दिमागी निर्माण इस तरह का होता है जिससे उनमें पुरुषों के मुकाबले भाषा विशेषज्ञता पहले विकसित हो जाती है। लड़कियों में भी मौखिक कौशल और कामकाजी स्मृति जैसी क्षमता लड़कों की तुलना में बेहतर होती है।