अधिवक्ता मदनमोहन यादव के मुताबिक, अनुराग द्विवेदी व विकास वर्मा की तरफ से यह वाद फरवरी 2021 में दाखिल किया गया था। इसमें कहा गया कि स्कन्द पुराण में लाट भैरव का जिक्र कपाल भैरव के रूप में किया गया है, जो जैतपुरा क्षेत्र में है और अति संवेदनशील व पुलिस की सुरक्षा में है। 5 एकड़ में संतों की समाधि थी, जिसे कब्जा कर लिया गया।
अष्ट भैरव में प्रथम अति संवेदनशील लाट भैरव मंदिर से जुड़े एक अन्य वाद की सुनवाई गुरुवार को सिविल जज सीनियर डिविजन अश्वनी कुमार की कोर्ट में हुई। कोर्ट ने दोनों पक्ष की दलीलें सुनीं, फिर मामले की अगली सुनवाई अब 12 जनवरी तय कर दी। इस मामले में विपक्षी बनाए गए पक्षकार सरदार मकबूल, अनिसूर रहमान व एक अन्य कोर्ट में गजट प्रकाशन के बाद हाजिर हुए। इन पर कब्जा करने का आरोप है।
अधिवक्ता मदनमोहन यादव के मुताबिक, अनुराग द्विवेदी व विकास वर्मा की तरफ से यह वाद फरवरी 2021 में दाखिल किया गया था। इसमें कहा गया कि स्कन्द पुराण में लाट भैरव का जिक्र कपाल भैरव के रूप में किया गया है, जो जैतपुरा क्षेत्र में है और अति संवेदनशील व पुलिस की सुरक्षा में है। 5 एकड़ में संतों की समाधि थी, जिसे कब्जा कर लिया गया। अदालत से संतों की समाधि कब्जा धारकों से मुक्त करने, भव्य मंदिर निर्माण, स्तवन पूजन, राग भोग व आरती की अनुमति का अनुरोध किया गया है। 13वीं शताब्दी में लाट भैरव की ऊंचाई 32 फुट थी, जो वर्तमान में सिर्फ आठ फुट रह गई है। इसे जौनपुर के सर्की सल्तनत के बादशाह ने क्षतिग्रस्त किया था। इस वाद में भारत सरकार को भी पक्षकार बनाया गया है। लाट भैरव की मान्यता दक्षिण भारत में कपाल भैरव के रूप में बहुत ज्यादा है। कहा जाता है कि दर्शन से ग्रहदशा सुधरती है। वाराणसी के अष्ट भैरव में लाट भैरव को पहला दर्जा प्राप्त है।
अष्ट भैरव में प्रथम अति संवेदनशील लाट भैरव मंदिर से जुड़े एक अन्य वाद की सुनवाई गुरुवार को सिविल जज सीनियर डिविजन अश्वनी कुमार की कोर्ट में हुई। कोर्ट ने दोनों पक्ष की दलीलें सुनीं, फिर मामले की अगली सुनवाई अब 12 जनवरी तय कर दी। इस मामले में विपक्षी बनाए गए पक्षकार सरदार मकबूल, अनिसूर रहमान व एक अन्य कोर्ट में गजट प्रकाशन के बाद हाजिर हुए। इन पर कब्जा करने का आरोप है।
अधिवक्ता मदनमोहन यादव के मुताबिक, अनुराग द्विवेदी व विकास वर्मा की तरफ से यह वाद फरवरी 2021 में दाखिल किया गया था। इसमें कहा गया कि स्कन्द पुराण में लाट भैरव का जिक्र कपाल भैरव के रूप में किया गया है, जो जैतपुरा क्षेत्र में है और अति संवेदनशील व पुलिस की सुरक्षा में है। 5 एकड़ में संतों की समाधि थी, जिसे कब्जा कर लिया गया। अदालत से संतों की समाधि कब्जा धारकों से मुक्त करने, भव्य मंदिर निर्माण, स्तवन पूजन, राग भोग व आरती की अनुमति का अनुरोध किया गया है। 13वीं शताब्दी में लाट भैरव की ऊंचाई 32 फुट थी, जो वर्तमान में सिर्फ आठ फुट रह गई है। इसे जौनपुर के सर्की सल्तनत के बादशाह ने क्षतिग्रस्त किया था। इस वाद में भारत सरकार को भी पक्षकार बनाया गया है। लाट भैरव की मान्यता दक्षिण भारत में कपाल भैरव के रूप में बहुत ज्यादा है। कहा जाता है कि दर्शन से ग्रहदशा सुधरती है। वाराणसी के अष्ट भैरव में लाट भैरव को पहला दर्जा प्राप्त है।
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