नेत्रों में चांदी सी चमक, हाथ में गदा और बगल में मुगधर, आठ फीट लंबी हनुमानजी की मूर्ति के चरणों के नीचे देवी का विग्रह करीब 150 साल से अधिक समय से मथुरा के जनरल गंज में विराजमान है। अब यह मूर्ति अपना चोला छोड़ रही है। स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले विजय सिंह पथिक ने देश को आजाद कराने के बाद आखिरी समय यहीं पर बिताया था। हनुमानजी के अद्भुत विग्रह के दर्शन करने को भक्तों की कतार लगी है।
विजय सिंह पथिक का जन्म 27 फरवरी 1882 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के गुलावठी में हुआ था। पहले उनका नाम भूप सिंह गुर्जर था। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ने का फैसला तब लिया, जब उनके दादा इंद्र सिंह वीर गति को प्राप्त हो गए। भूप सिंह गुर्जर ने अपना नाम बदलकर विजय सिंह पथिक रख लिया। उनका आधा जीवन जेल में बीता।
हनुमान मंदिर के निकट खरीदा था घर
देश की आजादी के कुछ दिन पहले पथिक ने मथुरा में जनरल गंज में हनुमान मंदिर के निकट बनी कोठरी को खरीदा। उसके पास दो कच्ची मिट्टी की कोठरी और तैयार कीं और रहने लगे। बाद में वह जेल गए और 28 मई 1954 में अजमेर गए, वहीं शरीर त्याग दिया। विजय सिंह पथिक की तीसरी पीढ़ी के वंशज संतोष कुमार चौहान का परिवार तब से हनुमानजी की सेवा कर रहे हैं। पिछले सप्ताह मंगलवार को जब हनुमानजी से चोले की परत उतरने लगी तो वह आश्चर्य चकित रह गए।
पाताल देवी का विग्रह
हनुमानजी के पैरों के नीचे महिला के सजे-धजे विग्रह को पाताल देवी का माना जा रहा है। ब्रज के संत राजा बाबा ने बताया कि इस प्रकार का विग्रह उस समय का हो सकता है, जिस समय हनुमानजी ने भगवान राम तथा लक्ष्मण को अहिरावण का वध कर मुक्त कराया था। उस समय पाताल देवी ने हनुमानजी की स्तुति की थी।
पथिकजी ने भी की थी सेवा
संतोष सिंह चौहान ने बताया कि हनुमान जी की सेवा पथिकजी ने भी की थी। वह हनुमानजी के अनन्य भक्त थे। पहले उन्होंने हनुमान मंदिर बनी पक्की कोठरी को खरीदा। बाद में उनकी धर्म पत्नी जानकी देवी तथा बहन लक्ष्मी देवी यहां पर रहीं।
प्रकाश नगर निवासी योगेश शर्मा यश ने बताया कि हम इस घर में किराये पर रहे थे तभी से लगातार हनुमान जी के दर्शन करते हैं परंतु इस विग्रह के चरणों की नीचे शनि रूपी स्त्री के दर्शन पहली बार हुए हैं। यह चोला उतरने से हो पाया है।
पथिक जी ने मथुरा में रहकर भी किया था संघर्ष
इतिहास के प्रोफेसर डॉ. टीपी सिंह ने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने वाले विजय सिंह पथिक ने मथुरा में रहकर भी अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया। जहां पर वह रहते थे, वहां पर एक हनुमान मंदिर भी है, जो कि बहुत पुराना है।
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नेत्रों में चांदी सी चमक, हाथ में गदा और बगल में मुगधर, आठ फीट लंबी हनुमानजी की मूर्ति के चरणों के नीचे देवी का विग्रह करीब 150 साल से अधिक समय से मथुरा के जनरल गंज में विराजमान है। अब यह मूर्ति अपना चोला छोड़ रही है। स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले विजय सिंह पथिक ने देश को आजाद कराने के बाद आखिरी समय यहीं पर बिताया था। हनुमानजी के अद्भुत विग्रह के दर्शन करने को भक्तों की कतार लगी है।
विजय सिंह पथिक का जन्म 27 फरवरी 1882 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के गुलावठी में हुआ था। पहले उनका नाम भूप सिंह गुर्जर था। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ने का फैसला तब लिया, जब उनके दादा इंद्र सिंह वीर गति को प्राप्त हो गए। भूप सिंह गुर्जर ने अपना नाम बदलकर विजय सिंह पथिक रख लिया। उनका आधा जीवन जेल में बीता।
हनुमान मंदिर के निकट खरीदा था घर
देश की आजादी के कुछ दिन पहले पथिक ने मथुरा में जनरल गंज में हनुमान मंदिर के निकट बनी कोठरी को खरीदा। उसके पास दो कच्ची मिट्टी की कोठरी और तैयार कीं और रहने लगे। बाद में वह जेल गए और 28 मई 1954 में अजमेर गए, वहीं शरीर त्याग दिया। विजय सिंह पथिक की तीसरी पीढ़ी के वंशज संतोष कुमार चौहान का परिवार तब से हनुमानजी की सेवा कर रहे हैं। पिछले सप्ताह मंगलवार को जब हनुमानजी से चोले की परत उतरने लगी तो वह आश्चर्य चकित रह गए।
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