इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश पर सचिव न्याय व सचिव गृह उत्तर प्रदेश ने हलफनामे दाखिल किए। न्याय सचिव ने कोर्ट को मांगी गई जानकारी मिलने या केस फाइलें कोर्ट में पहुंचने में देरी के लिए महाधिवक्ता कार्यालय में स्टाफ की कमी की वजह बताया और कहा नियमावली तैयार करने की कार्यवाही चल रही है। जिसके चलते स्टाफ की भर्ती नहीं हो पा रही है।
इस पर जनहित याचिका की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल तथा न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने न्याय सचिव से जानकारी मांगी है कि नियमावली कितने समय से लंबित है। किस विभाग में है और कब तक नियमावली बनकर तैयार हो जायेगी।
एसोसिएशन फार एडवोकेसी एंड लीगल इनीशिएटिव लखनऊ की तरफ से दाखिल कोर्ट ने कहा इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि पर्याप्त स्टाफ के बगैर प्रभावी कार्य नहीं हो सकता। लाखों केस फाइलों की व्यवस्था व भारी संख्या में विभागों से पत्राचार रोज करने होते हैं। कोर्ट ने गृह सचिव द्वारा बिना अधिवक्ता से सत्यापित कराये स्वयं हलफनामा दाखिल करने पर आश्चर्य व्यक्त किया और कहा कि उन्होंने सारा भार राज्य विधि अधिकारियों पर डाल दिया है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा हम प्रतिदिन केस की सुनवाई कर रहे हैं। विभागों की तरफ से समय से कोर्ट को सहयोग नहीं मिल पाता।
कोर्ट ने कहा कि सुनवाई के दौरान गृह सचिव ने बिना अपने अधिवक्ता से सत्यापित कराये हलफनामा दाखिल किया। प्रत्येक वादकारी का कर्तव्य है कि अपने वकील से सत्यापित कराकर हलफनामा दाखिल करें। अन्यथा यह अवधारणा की जायेगी कि वह बिना वकील के स्वयं बहस करना चाहता है। कोर्ट ने गृह सचिव को ऐसा आचरण करने का औचित्य बताते हुए सफाई देने को कहा है।
कोर्ट द्वारा पिछली तारीख पर की गई टिप्पणी को गृह सचिव ने उचित होने का प्रमाणपत्र भी दिया। जिसके लिए हम उन्हें धन्यवाद देते हैं। कोर्ट ने गृह सचिव से कहा कि यदि वह स्वयं बहस करेंगे तो उनका स्वागत है। याचिका की अगली सुनवाई 21 दिसंबर को होगी। कोर्ट ने रजिस्ट्रार अनुपालन को आदेश की प्रति गृह सचिव को 19 दिसंबर को प्रेषित करने का निर्देश दिया।
वर्ष 2010 में पुलिस अभिरक्षा में मौत को लेकर यह जनहित याचिका दाखिल की गई है। 2010 में ही दाखिल याचिका पर राज्य सरकार ने अभी तक जवाब दाखिल नहीं किया है। याची ने 14 दिसंबर 22 को अखबार में छपी खबर के हवाले से कहा कि पुलिस अभिरक्षा में व्यापारी की मौत हुई है। कोई नियंत्रण न हो पाने से ऐसी घटनाएं हो रही है।जिसपर रोक लगनी चाहिए। याचिका की सुनवाई 21 दिसंबर को होगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश पर सचिव न्याय व सचिव गृह उत्तर प्रदेश ने हलफनामे दाखिल किए। न्याय सचिव ने कोर्ट को मांगी गई जानकारी मिलने या केस फाइलें कोर्ट में पहुंचने में देरी के लिए महाधिवक्ता कार्यालय में स्टाफ की कमी की वजह बताया और कहा नियमावली तैयार करने की कार्यवाही चल रही है। जिसके चलते स्टाफ की भर्ती नहीं हो पा रही है।
इस पर जनहित याचिका की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल तथा न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने न्याय सचिव से जानकारी मांगी है कि नियमावली कितने समय से लंबित है। किस विभाग में है और कब तक नियमावली बनकर तैयार हो जायेगी।
एसोसिएशन फार एडवोकेसी एंड लीगल इनीशिएटिव लखनऊ की तरफ से दाखिल कोर्ट ने कहा इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि पर्याप्त स्टाफ के बगैर प्रभावी कार्य नहीं हो सकता। लाखों केस फाइलों की व्यवस्था व भारी संख्या में विभागों से पत्राचार रोज करने होते हैं। कोर्ट ने गृह सचिव द्वारा बिना अधिवक्ता से सत्यापित कराये स्वयं हलफनामा दाखिल करने पर आश्चर्य व्यक्त किया और कहा कि उन्होंने सारा भार राज्य विधि अधिकारियों पर डाल दिया है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा हम प्रतिदिन केस की सुनवाई कर रहे हैं। विभागों की तरफ से समय से कोर्ट को सहयोग नहीं मिल पाता।
कोर्ट ने कहा कि सुनवाई के दौरान गृह सचिव ने बिना अपने अधिवक्ता से सत्यापित कराये हलफनामा दाखिल किया। प्रत्येक वादकारी का कर्तव्य है कि अपने वकील से सत्यापित कराकर हलफनामा दाखिल करें। अन्यथा यह अवधारणा की जायेगी कि वह बिना वकील के स्वयं बहस करना चाहता है। कोर्ट ने गृह सचिव को ऐसा आचरण करने का औचित्य बताते हुए सफाई देने को कहा है।
कोर्ट द्वारा पिछली तारीख पर की गई टिप्पणी को गृह सचिव ने उचित होने का प्रमाणपत्र भी दिया। जिसके लिए हम उन्हें धन्यवाद देते हैं। कोर्ट ने गृह सचिव से कहा कि यदि वह स्वयं बहस करेंगे तो उनका स्वागत है। याचिका की अगली सुनवाई 21 दिसंबर को होगी। कोर्ट ने रजिस्ट्रार अनुपालन को आदेश की प्रति गृह सचिव को 19 दिसंबर को प्रेषित करने का निर्देश दिया।
वर्ष 2010 में पुलिस अभिरक्षा में मौत को लेकर यह जनहित याचिका दाखिल की गई है। 2010 में ही दाखिल याचिका पर राज्य सरकार ने अभी तक जवाब दाखिल नहीं किया है। याची ने 14 दिसंबर 22 को अखबार में छपी खबर के हवाले से कहा कि पुलिस अभिरक्षा में व्यापारी की मौत हुई है। कोई नियंत्रण न हो पाने से ऐसी घटनाएं हो रही है।जिसपर रोक लगनी चाहिए। याचिका की सुनवाई 21 दिसंबर को होगी।
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