मुजफ्फरनगर: कहावत है कि उड़ान पंखों से नहीं, बल्कि हौसलों से होती है। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फनगर के परिक्रमा मार्ग पर रहने वाली सुदेश ने इस कहावत को ही चरितार्थ किया है। कोरोना काल में सुदेश की नौकरी चली गई थी, जिसके बाद उनके पास न तो रोजगार था और न ही घर में खाने-पीने के लिए राशन। सुदेश ऐसे वक्त में भी हिम्मत नहीं हारीं और अपने जुनून और जीजीविषा से जीवन का ऐसा रास्ता खोला और एक ऐसा रोजगार खड़ा कर दिया जिससे न केवल सुदेश का परिवार चलता है, बल्कि दर्जनों महिलाओं को भी रोजगार मिल रहा है।
सिविल लाइन थाना क्षेत्र के अग्रसैन रोड पर रहने वाली सुदेश संविदा पर विकास भवन में नौकरी करती थीं, जबकि उनके पति का अपना व्यवसाय था। पति को व्यवसाय में घाटा हो गया तो सुदेश की नौकरी से ही उनका घर चलता था। साल 2020 में जब कोरोना ने भारत में दस्तक दी तो देश भर में लॉकडाउन लगा दिया गया। उस समय सुदेश की भी नौकरी चली गई थी। सुदेश की नौकरी जाने के बाद उनके परिवार के जीवन यापन पर संकट आ गया। बेरोजगारी के दर्द ने उन्हें तोड़ दिया था। ऐसे में सुदेश के पति ने उन्हे हौसला दिया और दोनों पति-पत्नी ने मिलकर एक टिफिन सेन्टर खोलने का निर्णय लिया।
घर से ही किया टिफिन सेन्टर शुरू
सुदेश बताती हैं कि वह खाना बनाना जानती थीं और उनके पति सामान लाकर देते थे। वह खाना बनाकर अपने पति को देती थीं, जो टिफिन ग्राहकों के घर तक पहुंचाते थे। इस तरह थोड़ा-थोड़ा काम चलना शुरू हुआ, तो उसने डूडा से ऋण लेकर अपने कारोबार को बढ़ाने की ठानी।
शुरू में किया दिक्कतों का सामना
सुदेश बताती हैं कि जब शुरू में उन्होंने टिफिन सेन्टर खोला था, तो उस समय उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। ग्राहकों की सुननी भी पड़ती थी। उन्होंने अपने खाने में सुधार किया और आज वह समय है कि उनके टिफिन के ग्राहकों की संख्या लगातार बढ़ रही है और कारोबार भी अच्छा चलने लगा है।
दर्जनों लोगों को दिया रोजगार
सुदेश ने बताया कि उन्होंने डूडा से लोन लेकर आदित्य टिफिन कैरियर के नाम से टिफिन सेन्टर खोला था और इस कार्य को उसने बढ़ाते हुए खाना बनाने और खाना पहुंचाने के लिए स्टाफ रखा था। काम लगातार बढ़ता गया, जिसके चलते स्टाफ की भी आवश्यकता पड़ने लगी। आज उनके यहां पर लगभग 10 महिलाएं और तीन पुरुष नौकरी करते हैं, जो अच्छा-खासा कमा रहे हैं।
काम सीखकर महिलाएं भी बन रहीं आत्मनिर्भर
सुदेश बताती हैं कि जो भी महिलाएं उनके यहां काम करने के लिए आती हैं, उनका उद्देश्य होता है कि उन महिलाओं को काम सिखाया जाये, ताकि वह आत्मनिर्भर बन सकें। काम सीखकर महिलाएं आत्मनिर्भर भी बन रही हैं और दर्जनों महिलाएं ऐसी हैं, जो उनके यहां काम सीखकर अपना व्यवसाय कर रही है और अच्छा खासा कमा रही हैं।
वृद्धाश्रम खोलकर समाज सेवा करने की चाहत
सुदेश का कहना है कि ईश्वर ने उसकी ऐसे समय में मदद की थी, जब चारों ओर से रास्ते बंद हो चुके थे। ऐसे में उनकी भी समाज के प्रति कुछ जिम्मेदारी बनती है। सुदेश ने बताया कि उनकी इच्छा है कि वह एक वृद्धाश्रम खोले और उसमें रहने वाले बुजुर्गों की सेवा कर सके। सुदेश ने बताया कि उनके द्वारा जमीन तलाश की जा रही है और इस कार्य को वह जल्द ही पूरा करेगी।
क्या कहती हैं महिलाएं
अलमासपुर निवासी ममता ने बताया कि उसने सुदेश के टिफन सेन्टर में काम सीखा था और अब वह एक समूह चलाती हैं, जिसमें मोहल्ले की महिलाओं को जोड़कर टिफन के कार्य कर रही है, जिससे अच्छी खासी आमदनी होती है। मुनेश, अनन्त शर्मा ने बताया कि उन्होंने सुदेश से प्रेरणा लेकर आत्मनिर्भर बनने की ठानी हैं। वह भी अपना टिफन सेन्टर चला रही हैं और आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रही हैं।
रिपोर्टः एमजी बेग
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