लखनऊ: उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से बांगला चुनाव चिह्न लोक जनशक्ति पार्टी के लिए आवंटित कर दिया गया है। लोक जनशक्ति पार्टी अभी अस्तित्व में ही नहीं है। भारत निर्वाचन आयोग ने दल का नाम और चुनाव चिन्ह दोनों सीज किया हुआ है। इसके बाद भी राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से जारी मान्यता प्राप्त दलों की लिस्ट में लोजपा का नाम और बंगला चुनाव चिह्न हैरान करने वाला है। मान्यता प्राप्त दलों की बात करें तो प्रदेश में शिवसेना भी चुनावी मैदान में अपने सिंबल के साथ उतरती रही है। लेकिन, एकनाथ शिंदे गुट की बगावत के बाद शिवसेना नाम और सिंबल दोनों को सीज कर लिया गया है। राज्य निर्वाचन आयेाग की ओर से भी मान्यता प्राप्त दलों में इसे शामिल नहीं किया गया है। ऐसे में सवाल एलजेपी का नाम और सिंबल सुरक्षित किए जाने पर उठने लगे हैं। सियासत अब बिहार तक गरमा रही है।
भारत निर्वाचन आयोग ने पिछले दिनों लोक जनशक्ति पार्टी के बंगला चुनाव चिह्न को सीज कर लिया गया था। ऐसे में इस आवंटन पर अब सवाल उठ रहे हैं। दरअसल, लोजपा प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन के बाद लोक जनशक्ति पार्टी दो भागों में बांट गई थी। लोजपा प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस ने लोजपा के एक बड़े वर्ग को साथ लेकर उनके निधन के बाद बगावत कर दिया था। दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के दौरान लोजपा ने एनडीए से बगावत कर बिहार के राजनीतिक मैदान में उम्मीदवार उतारे। हालांकि, पार्टी एक ही सीट जीत पाने में सफल हुई। इस दौरान रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान लगातार नीतीश कुमार के विरोध की राजनीति करते रहे।
चुनाव के बाद हुई बगावत
बिहार चुनाव के बाद लोजपा के सामने अलग स्थिति बनी। पशुपति कुमार पारस ने चिराग से अलग होकर खुद को असली लोजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर लिया। एनडीए का समर्थन करने लगे। वहीं, चिराग पासवान लगातार बिहार सीएम नीतीश कुमार के विरोध की राजनीति करते रहे। पशुपति कुमार पारस ने बगावत की। लोकसभा में लोजपा के 6 में से 5 सांसदों को अपने साथ लेकर अलग गुट बना लिया। इसके बाद पार्टी और सिंबल की लड़ाई में मामला चुनाव आयोग तक पहुंचा चुनाव। आयोग ने लोक जनशक्ति पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह बंगला दोनों को सीज कर लिया। चिराग पासवान के नेतृत्व वाली पार्टी को लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) नाम दिया गया। उनकी पार्टी का चुनाव चिन्ह भी अब हेलिकॉप्टर कर दिया गया। वहीं, पशुपति पारस की पार्टी का नाम राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी हो गया। उनको सिलाई मशीन का चुनाव चिह्न निर्वाचन आयोग ने दिया।
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लोजपा में अभी भी दो गुट मौजूद
बिहार में अभी लोजपा के दो गुट मौजूद हैं। बिहार के सीनियर पत्रकार पवन प्रकाश विवेक बताते हैं कि दोनों गुटों की अपनी अलग राजनीति चल रही है। हालांकि, बिहार में भाजपा के नीतीश सरकार से अलग होने के बाद चिराग पासवान के सुर बदले हैं। चिराग भाजपा के निकट जाते दिख रहे हैं। पवन कहते हैं कि चिराग पासवान अपना जनाधार बनाए रखने और बढ़ाने की कोशिश में लगातार जुटे हुए हैं। वे कहते हैं कि लोजपा राज्य स्तर की पार्टी रही है। बिहार उसका आधार रहा है। ऐसे में यूपी में अगर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के रूप में मान्यता दी गई है तो हो सकता है कि कुछ गड़बड़ी हो गई हो। भारत निर्वाचन आयोग के स्तर पर सीज किए गए दल के नाम और सिंबल को जारी किया जाना समझ से परे है।
वहीं, यूपी राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से पुरानी पार्टी और पुराना चुनाव चिह्न के आवंटन पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या लोजपा का विलय हो गया है? क्या चुनाव आयोग ने पुराना नाम और चुनाव चिह्न बहाल कर दिया है? हालांकि, इसका जवाब है, ऐसा कुछ नहीं है। आयोग की ओर से जल्द स्थिति स्पष्ट किया जा सकता है।
दिल्ली की सियासत में एक ध्रुव पर दिखते हैं दोनों खेमे
बिहार की सियासत में भले ही चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस दो ध्रुवों पर दिखते हों, लेकिन दिल्ली की सियासत में दोनों भारतीय जनता पार्टी के साथ ही दिख रहे हैं। बिहार में जबसे भाजपा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू से अलग हुई है, चिराग पासवान की इससे निकटता बड़ी है। भाजपा पर खुलकर वह पहले भी हमला नहीं करते थे। जदयू की ओर से कई बार चिराग को बीजेपी की बी टीम तक कहा जाता रहा है। वहीं, नीतीश कुमार के जरिए केंद्र की सियासत में मंत्री बने पशुपति कुमार पारस आज भी पद पर बने हुए हैं।
नीतीश कुमार और भाजपा के अलगाव का असर पारस पर नहीं पड़ा है। ऐसे में माना जा रहा है कि रामविलास पासवान की विरासत को अब चाचा- भतीजा मिलकर बढ़ाएंग। माना जा रहा है कि भाजपा के जरिए पारस और चिराग एक ध्रुव पर आ सकते हैं। हालांकि, अभी तक इसकी कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है।
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