नोएडा: आम्रपाली के प्रॉजेक्टों में अतिरिक्त एफएआर (फ्लोर एरिया रेश्यो) बेचने के मुद्दे पर चल रही सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। साथ ही कहा है कि बायर्स को भी इस मामले में थोड़ी उदारता दिखानी चाहिए। कुछ समझौता तो खरीदारों को भी करना पड़ेगा। फैसला सुरक्षित रखने और कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद बायर्स में खलबली मच गई है। वे यही अनुमान लगा रहे हैं कि फैसले में अतिरिक्त एफएआर बेचने को मंजूरी मिलने की संभावना ज्यादा है। उनका कहना है कि यदि ऐसा होता है तो यह 12 साल से संघर्ष कर रहे खरीदारों के साथ अन्याय होगा। क्योंकि अतिरिक्त एफएआर बेचकर ही यदि प्रॉजेक्ट पूरे करने थे तो इसका प्रस्ताव तो बिल्डर ने भी उस समय रखा था। फिर एनबीसीसी प्रॉजेक्ट पूरे करे या बिल्डर, दोनों में अंतर ही कहां बचा। इसके बाद इतने लंबे संघर्ष और सड़क पर उतरकर हक की लड़ाई का फायदा क्या हुआ। आखिर कितनी उदारता दिखाएं बायर। 10-12 साल से खरीदार ही तो संघर्ष कर रहे हैं। बिल्डरों की संपत्ति बेचकर आखिर क्यों नहीं फंड का इंतजाम करने का रास्ता निकाला जा रहा है
एक्स्ट्रा एफएआर बेचने से बायर्स पर पड़ेगा यह प्रभाव
यदि अतिरिक्त एफएआर बेचने की मंजूरी मिलती है तो जिस नक्शे के आधार पर बायर्स ने एग्रीमेंट किया था उसके हिसाब से अतिरिक्त टावर प्रॉजेक्ट के कैंपस में बनेंगे। पार्क, सड़क, खेलने की जगह, हवा, पानी व अन्य बेसिक सुविधाएं पर खराब असर पड़ेगा। मौजूदा टावरों में कई-कई मंजिल के फ्लैट और बनेंगे। यदि फैसला इसके उलट यानी बायर्स के हक में आता है तो अतिरिक्त एफएआर बेचने से जो फंड आने का आकलन किया जा रहा है, वह नहीं आएगा। इसके बाद फंड की कमी से निर्माणाधीन प्रॉजेक्टों को पूरा होने में और वक्त लगेगा। इस वजह से फ्लैट खरीदारों को पजेशन के लिए और इंतजार करना पड़ेगा। जब से एनबीसीसी ने आम्रपाली के प्रॉजेक्टों में कोर्ट रिसीवर के निर्देशन में काम शुरू किया है। पिछले साल 3300 फ्लैट पूरे किए थे और इस साल 8500 फ्लैट मार्च 2023 तक पूरे करने का टारगेट है। यानी मार्च 2023 तक 11.5 हजार बायर्स को घर मिल जाएंगे।
बिल्डरों की संपत्ति बेचकर आखिर क्यों नहीं फंड का इंतजाम करने का रास्ता निकाला जा रहा है। केवल बायर्स को ही इसके लिए हर तरीके से बोझ डालने का प्रयास हो रहा है।
-मयंक सचदेवा
ऐसे समझें मामला
बता दें कि आम्रपाली के प्रॉजेक्टों में फंड के इंतजाम का मुद्दा और बड़ा हो रहा है। एक तरफ जहां बिल्डर की निजी संपत्ति बेचकर आने वाला फंड आ नहीं पा रहा है क्योंकि संपत्ति में कई तरह के कानूनी विवाद हैं। इस वजह से बिल्डर की निजी संपत्ति बिक नहीं पा रही। फंड के इंतजाम के लिए बायर्स पर बोझ डालने को कुछ महीने पहले कोर्ट रिसीवर ने दो प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट में रखे थे। इनमें एक प्रस्ताव रिजर्व फंड का था। इसके तहत बायर्स से 200 रुपये प्रति स्क्वायर फुट का अतिरिक्त फंड लिए जाने की बात थी। खरीदारों के पुरजोर विरोध के बाद यह प्रस्ताव फिलहाल कोर्ट में पेंडिंग है। दूसरा प्रस्ताव अतिरिक्त एफएआर बेचने का था। एफएआर के मसले पर दो महीने से लगातार सुनवाई चल रही है। नोएडा और ग्रेनो अथॉरिटी दोनों ने ही इसे कानूनी मंजूरी देने के लिए अपने बायलॉज में प्रावधान न होने की बात कही थी। बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान भी दोनों अथॉरिटी ने यही बात कोर्ट के सामने रखी कि उनके पास अतिरिक्त एफएआर बेचे जाने के लिए मंजूरी देने का कोई बायलॉज नहीं है। सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने इस मसले पर फैसला रिजर्व कर लिया है। अब फैसला आने के बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि दोनों अथॉरिटी ने इसे मंजूरी दी है या कोर्ट के आदेश के आधार पर एफएआर को हरी झंडी देनी पड़ेगी।
बायर की बिना सहमति लिए यदि एफएआर को मंजूरी देने का फैसला आता है तो यह निराशाजनक होगा। इससे लोगों को हवा, पानी समेत दूसरी बेसिक सुविधाओं की दिक्कत बढ़ेगी।
-आदित्य रंजन
अतिरिक्त एफएआर की मंजूरी के लिए 67 प्रतिशत बायर्स की चाहिए सहमति
बता दें कि बायलॉज के अनुसार किसी भी प्रॉजेक्ट में अतिरिक्त एफएआर का प्रस्ताव आगे बढ़ाने के लिए 67 प्रतिशत बायर्स की कंसेंट (सहमति) चाहिए होती है। आम्रपाली के बायर्स से यह सहमति नहीं ली गई है। कोर्ट रिसीवर के स्तर के फंड इंतजाम का हवाला देते हुए यह प्रस्ताव कोर्ट में रखा गया था। सबसे पहले नाराजगी बायर्स की इसी बात पर है कि उन्होंने 10-12 साल पहले बिल्डर को अपनी जीवन भर की कमाई देकर एग्रीमेंट किया था। 10-12 साल से वे किराया व बैंक की किश्त दोनों भर रहे हैं। इसके बावजूद अतिरिक्त एफएआर का प्रस्ताव आगे बढ़ाने से पहले उनसे रजामंदी नहीं ली गई। अगर अतिरिक्त एफएआर को मंजूरी मिलने का फैसला् आता तो यह खरीदारों के लिए निराशाजनक होगा।
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