अयोध्याः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को पहली बार अयोध्या के दीपोत्सव में हिस्सा लिया। उन्होंने समारोह में शामिल होने से पहले रामलला के दर्शन किए। इसके अलावा राम मंदिर के निर्माण काम का भी जायजा लिया। मोदी ने दीपोत्सव का दीप जलाकर आगाज किया। इस दौरान अपने संबोधन में उन्होंने बिना नाम लिए इशारों में तंज कसा। उन्होंने कहा कि पहले राम के बारे में बात करने से बचा जाता था लेकिन हमने हीनभावना की इन जंजीरों को तोड़ दिया। पीएम ने भगवान राम का हवाला देते हुए देशवासियों से उनके कर्तव्यों के प्रति सजग रहने का आह्वान किया। पीएम मोदी के भाषण की 10 बड़ी बातें यहां पढ़ेंः
राम पर उठते थे सवाल
एक समय था, राम के बारे में हमारी सभ्यता के बारे में बात करने से बचा जाता था। इसी देश में राम के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगाए जाते थे। उसका परिणाम ये हुआ कि हमारी धार्मिक सांस्कृतिक पहचान पीछे छूटती गई।
आस्था के गौरव को किया पुनर्जीवित
अयोध्या आते थे तो मन दुखी हो जाता था। वाराणसी की गलियां परेशान कर देती थीं। जिन्हें हम अपने अस्तित्व का प्रतीक मानते थे, वही बदहाल थे, तो मनोबल टूट जाता था। 8 सालों में देश ने हीनभावना की बेड़ियों को तोड़ा है। हमने राम मंदिर, केदारनाथ महाकाल तक घनघोर उपेक्षा के शिकार हमारी आस्था के गौरव को पुनर्जीवित किया है।
अमृतकाल में दीपोत्सव
इस बार दिवाली ऐसे समय आई है, जब हमने कुछ समय पहले ही आजादी के 75 साल पूरे किए हैं। हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। इस समय राम जैसी संकल्प शक्ति देश को ऊपर ले जाएगी। राम ने अपने वचन और विचारों में जिन मूल्यों को गढ़ा, वो सबका साथ, सबका विकास की प्रेरणा है और सबका विश्वास और सबका प्रयास का आधार भी है।
लाल किले के संकल्प
इस बार लाल किले से पंच प्राणों को आत्मसात करने का आह्वान किया है। इनकी ऊर्जा जिस एक तत्व से जुड़ी है, वो है भारत के नागरिकों का कर्तव्य। आज अयोध्या में दीपोत्सव पर हमें इस संकल्प को दोहराना है। श्रीराम से जितना सीख सकें, सीखना है।
राम भारत की भावना के प्रतीक
राम भारत की भावना के प्रतीक हैं जो मानती है, हमारे अधिकार हमारे कर्तव्यों से ज्यादा जरूरी हैं। हमारे संविधान की जिस मूल प्रति पर भगवान राम, सीता और लक्ष्मण जी का चित्र है, वह मौलिक अधिकारों की बात करता है। हमारे संवैधानिक अधिकारों की गारंटी, दूसरी ओर राम के रूप में कर्तव्यों का बोध। हम जितना कर्तव्यों का बोध मजबूत करेंगे, राम राज्य की कल्पना उतनी साकार होती जाएगी।
भारत का कोई सानी नहीं
पर्व और उत्सव हमारे जीवन का सहज स्वाभाविक हिस्सा रहे हैं। हमारे यहां जब भी समाज ने कुछ नया किया, हमने एक नया उत्सव रच दिया। सत्य की विजय के मानवीय संदेश को हमने जिस मजबूती से जीवंत रखा, इसमें भारत का कोई सानी नहीं है।
मानवीयता का संदेश
राम ने रावण के अत्याचार का अंत हजारों साल पहले किया था, लेकिन आज हजारों हजार साल बाद भी उस घटना का एक-एक मानवीय संदेश, आध्यात्मिक संदेश एक-एक दीप के रूप में सतत प्रकाशित होता है।
दीपक हमारे लिए सिर्फ वस्तु नहीं
दीपावली के दीपक हमारे लिए सिर्फ वस्तु नहीं हैं। भारत के आदर्शों के जीवंत ऊर्जापुंज हैं। जहां तक नजर आ रही है, ज्योतियों के जगमग प्रकाश का प्रभाव, रात के ललाट पर रश्मियों का विस्तार, भारत के मूलमंत्र सत्यमेव जयते की उदघोषणा है। ये उद्घोषणा है भारत के मूल मंत्रों की। ये उद्घोषणा है कि हमारे वाक्यों की, रामो राजमणि सदा विजयते। विजय हमेशा राम रूपी सदाचार की होती है, रावण रूपी दुराचार की नहीं।
राम सारे विश्व के लिए ज्योतिपुंज
लाखों दीयों की रोशनी में देशवासियों को एक और बात या दिलाना चाहता हूं। मानस में तुलसीदास ने कहा है कि जगत प्रकाश्य, प्रकाशक रामो। भगवान राम पूरे विश्व को प्रकाश देने वाले हैं। पूरे विश्व के लिए वह एक ज्योतिपुंज की तरह हैं। ये प्रकाश कौन सा है, ये प्रकाश है, दया और करुणा का। मानवता और मर्यादा का। समभाव और ममभाव का। ये प्रकाश है सबके साथ का।
कोरोना के अंधकार से लड़ी लड़ाई
कोरोना के हमले की मुश्किलों के बीच इसी भाव से हर भारत वासी एक एक दीपक लेकर खड़ा हो गया था, और आज कोरोना के खिलाफ लड़ाई में भारत कितनी ताकत से लड़ रहा है, ये दुनिया देख रही है। जब प्रकाश हमारे कर्मों का साक्षी बनता है तो अंधकार का अंत अपने आप सुनिश्चित हो जाता है।
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