कण-कण शंकर की नगरी अपने आप में अनोखी है। कदम-कदम पर गलियों में विराजते शिव और उनके गण जहां भक्तों को आशीष देते हैं वहीं शक्तिस्वरूपा मां जगदंबा अन्न-धन का भंडार भरती हैं। बाबा विश्वनाथ के आंगन में विराजमान मां अन्नपूर्णा अपने भक्तों की हर इच्छा को पूरी करती हैं और यही कारण है कि धनतेरस से लेकर अन्नकूट तक श्रद्धालुओं का रेला माता के दरबार में उमड़ता है। मंदिर के महंत शंकर पुरी ने बताया कि मां अन्नपूर्णा का यह मंदिर देश का इकलौता मंदिर है जो श्री यंत्र के आकार में निर्मित है।
श्री यंत्र के ऊपर विराजमान माता अपने भक्तों और श्रद्धालुओं पर कृपा बरसाती रहती हैं। मंदिर के कोण मिलाने पर स्वत: स्वरूप में श्रीयंत्र का निर्माण हो जाता है। यही कारण है कि माता का यह स्थान स्वत: सिद्ध है। देश में कई स्थानों पर मां अन्नपूर्णा का मंदिर है लेकिन काशी में विराजमान मां अन्नपूर्णा का अलग ही महत्व है।
पुराणों में वर्णित है कि भगवान शिव ने स्वयं मां अन्नपूर्णा से अन्न की भिक्षा मांगी थी। माता के स्वर्णमयी स्वरूप के सामने भिक्षा मांगते हुए भगवान शिव की रजत प्रतिमा के दर्शन के लिए देश भर से श्रद्धालुओं का रेला उमड़ता है।
मान्यता है कि माता के दरबार से मिले खजाने से श्रद्धालुओं के घर के अन्नभंडार हमेशा भरे रहते हैं। महंत ने बताया कि श्रीयंत्र स्वरूप के मंदिर में विराजमान मां अन्नपूर्णा के दरबार से बंटने वाले खजाने और प्रसाद का अलग ही महत्व है।
यही कारण है कि माता का खजाना और प्रसाद पाने के लिए 24 घंटे पहले ही श्रद्धालु कतारबद्ध हो जाते हैं। वर्ष में केवल चार दिन ही माता के स्वर्णमयी स्वरूप के दर्शन होते हैं। इस बार 23 से 26 अक्तूबर तक श्रद्धालु माता के स्वर्णमयी स्वरूप का दर्शन व आशीष पा सकेंगे।
मान्यता है कि रोजाना मां अन्नपूर्णा की विधिवत पूजा करने से जीवन में अन्न की कमी नहीं होती है। मां अन्नपूर्णा मंदिर परिसर में कई प्रतिमाएं स्थापित हैं।
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