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मैनपुरी सीट का उत्‍तराधिकारी कौन, अखिलेश, धर्मेंद्र यादव या फिर कोई और… शिवपाल के बयान को समझिए

सैफई: मुलायम सिंह यादव अपनी अनंत यात्रा पर निकल गए हैं। भावनाओं का ज्वार कुछ हद तक शांत होता दिखने लगा है। राजनीति शुरू होने लगी है। क्षौरकर्म के बाद शिवपाल यादव सामने आए। मीडिया को बयान दिया। मुलायम सिंह यादव को देश को सबसे बड़ा नेता बताया। कहा कि मुलायम सिंह यादव हमलोगों के लिए सबकुछ थे। उन्होंने कहा कि नेताजी ने हमें सबकुछ दिया। अखिलेश यादव में नेताजी के जीवित रहने की बात करके कार्यकर्ताओं को संभाला। अब कह रहे हैं कि हमें जो काम मिलेगा, करेंगे। मतलब, पिछले दिनों अखिलेश विरोध की राजनीति की शुरुआत करने वाले शिवपाल क्या मुलायम के निधन के बाद अखिलेश के साथ जाएंगे? यह सवाल तैरने लगा है। साथ ही शुरू हो गई है मैनपुरी लोकसभा सीट पर विरासत की जंग की। यह विरासत किसे मिलती है देखना होगा। अगर अखिलेश केंद्र की राजनीति में वापसी करने की चाहत रखेंगे तो हो सकता है कि पिता की सीट से वे एक बार फिर मैदान में उतरें। इसके बाद कोई विवाद गहराने की उम्मीद नहीं है। लेकिन, चर्चाओं में धर्मेंद्र यादव का नाम है। कुछ अन्य नाम भी मैनपुरी से चर्चा में आ रहे हैं तो फिर क्या शिवपाल यादव अपने बड़े भाई की विरासत को अपने हाथों से निकलने देखते रहेंगे? यह सवाल भी है।

उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारे में इस समय यह सवाल तेजी से तैर रहा है कि क्या मैनपुरी में अगले लोकसभा चुनाव की जंग अखिलेश यादव बनाम शिवपाल यादव होगी? मुलायम के निधन के बाद यह सवाल खासा चर्चित हो रहा है। नेताजी के निधन के बाद मुश्किल वक्त में मुलायम परिवार एकजुट दिखा। अखिलेश यादव के साथ दो ध्रुवों पर रहने वाले दोनों चाचा प्रो. रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव एक साथ दिखे। ऐसे में मुलायम के निधन से रिक्त हुई मैनपुरी लोकसभा सीट को लेकर चर्चाओं का बाजार गरमाने लगा है। मुलायम की विरासत क्या शिवपाल संभालेंगे? इससे संबंधित सवाल पर शिवपाल कहते हैं, इस समय हम सब बहुत दुखी हैं। हमारे अभिभावक चले गए हैं। हालांकि, बाद में कहा कि हमें जो जिम्मेदारी मिलेगी, उसे निभाएंगे। ये किसी फैसले का वक्त नहीं है। हम सभी को साथ लेकर चलेंगे।

शिवपाल का बयान दे रहा संकेत
शिवपाल यादव का यह बयान इस दुख की घड़ी में आना, क्या अखिलेश के लिए संकेत है? माना तो कुछ ऐसा ही जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी में रहते हुए शिवपाल यादव प्रदेश की राजनीति से निकल कर केंद्र की राजनीति में जाने के इच्छुक दिख रहे हैं। पिछले दिनों मैनपुरी से चुनाव लड़ने की बात कर इसकी इच्छा भी जता चुके हैं। ऐसे में शिवपाल यादव को मैनपुरी से उतार कर अखिलेश 2024 से पहले उत्तर प्रदेश में पार्टी के भीतर के अंतर्विरोधों से निपट सकते हैं। ऐसे में देखना होगा कि अखिलेश अखिारी निर्णय क्या लेते हैं?

अखिलेश के साथ दिख रहे हैं शिवपाल यादव

पिता समान थे नेताजी
शिवपाल यादव ने मुलायम सिंह यादव को पिता समान बताया। उन्होंने कहा कि पिछड़ों, दलितों और वंचित लोगों की आवाज उठाकर नेताजी राष्ट्रीय स्तर के नेता बने थे। घर के बड़े होने पर जिम्मेदारी निभाने के प्रश्न पर शिवपाल यादव ने कहा कि जिम्मेदारी मिलेगी तो उसे निभाएंगे और नहीं मिलेगी तो भी निभाएंगे। शिवपाल ने कहा कि जिन लोगों को सम्मान नहीं मिला है, उन स को एक साथ लेकर सब की राय लेकर आगे फैसले किए जाएंगे। अभी इन सब पर बात करने का सही समय नहीं है। आगे इन मामलों को देखेंगे। शिवपाल ने यह भी कहा कि हमेशा नेताजी से राय मशवरा करके ही हमने फैसला लिया। नेताजी हमारे लिए पिता समान थे। हमने उनका हमेशा सम्मान रखा।

धर्मेंद्र, तेज प्रताप भी लाइन में
धर्मेंद्र यादव और तेज प्रताप यादव भी मैनपुरी की विरासत की जंग में शामिल हैं। दोनों मुलायम सिंह यादव के प्रिय रहे हैं। धर्मेंद्र यादव को तो अखिलेश ने पिछले दिनों आजमगढ़ लोकसभा उप चुनाव में भी उतारा था, लेकिन वे जीत नहीं पाए। तेज प्रताप यादव लोकसभा चुनाव हारे हैं। माना यह जा रहा है कि अखिलेश यादव अभी लखनऊ की राजनीति पर फोकस करना चाहते हैं। उनके सामने चुनौती 2024 लोकसभा चुनाव की है। ऐसे में उप चुनाव को लेकर वे किसी विवाद में फंसना नहीं चाहेंगे। इसलिए, वे खुद या पत्नी डिंपल यादव को इस सीट से उम्मीदवार बनाने से बच सकते हैं। ऐसे में उम्मीदवारी किसे मिलती है, इस पर सबकी निगाहें टिक गई हैं।

मुलायम के निधन के बाद से अखिलेश के कंधे से कंधा मिलाकर खड़े दिखे हैं शिवपाल

शिवपाल का दावा सबसे मजबूत
शिवपाल यादव अभी समाजवादी पार्टी के टिकट पर मैनपुरी के जसवंतनगर विधानसभा सीट से विधायक हैं। शिवपाल को एक समय में समाजवादी पार्टी में मुलायम के बाद नंबर दो की कुर्सी मिली हुई थी। मुलायम चेहरा थे तो संगठन की पूरी जिम्मेदारी शिवपाल के कंधों पर थी। अखिलेश के पार्टी में सक्रिय होने के बाद से शिवपाल को पार्टी से अलग कर दिया गया। वर्ष 2017 में शिवपाल यादव ने अलग प्रगतिशील समाजादी पार्टी बना ली। शिवपाल खुद को असली समाजवादी और मुलायमवादी बताते रहे हैं। उनकी पकड़ आज भी यादवलैंड में दिखती है। शिवपाल ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में फिरोजाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा। बुरी तरह से हारे। केवल 84 हजार वोट ही हासिल कर पाए। लेकिन, भतीजे और राष्ट्रीय महासचिव डॉ. रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव को चुनाव में हरा दिया। इस सीट पर भाजपा को जीत मिली। ऐसे में अगर अखिलेश यहां से अक्षय को पारीवारिक विरासत सौंपते हैं तो शिवपाल एक बार फिर खेल कर सकते हैं।

खेल तो भाजपा की ओर से भी हो सकता है। मुलायम की पारीवारिक विरासत को अपने साथ जोड़ने के लिए पार्टी उनकी छोटी बहू अपर्णा यादव पर दांव खेल सकती है। अपर्णा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा में शामिल हो गई थीं। मुलायम सिंह यादव ने तब उन्हें आशीर्वाद भी दे चुके हैं। ऐसे में भाजपा आखिरी वक्त में खेल कर सकती है। मुलायम की चिता की आग जैसे-जैसे ठंडी हो रही है, इन तमाम परिस्थितियों को लेकर मैनपुरी की सियासत में गरमाहट बढ़ने लगी है।