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उत्तर प्रदेश संस्कृति संस्थान द्वारा महर्षि बाल्मीकि जयंती के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित

संस्कृत एक ऐसा विषय है कि इसमें परिश्रम करने वाला गणित जैसा अंक पाता है। जीवन में यदि ऊंचा उठना है तो बड़ा कार्य करना चाहिये। उक्त विचार उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ के कार्यकारी अध्यक्ष जितेन्द्र कुमार भाषा विभाग ने महर्षि वाल्मीकि जयन्ती महोत्सव के उद्घाटन सत्र में दिया। संस्कत भाषा के महत्त्व एवं उपयोगिता पर विशेष बल देते हुये उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान का भवन सभी सुविधाओं के साथ, ऑडिटोरिय से युक्त शीघ्र ही बनकर तैयार होने वाला है, जिसका उद्घाटन माननीय मुख्यमन्त्री महोदय के करकमलों द्वारा सम्पन्न किया जायेगा। विदित हो कि संस्थान द्वारा राज्यस्तरीय तेरह प्रतियोगिताओं में पधारे मण्डल से आये विजेताओं को प्रोत्साहित करते हुये उन्होंने कहा कि यह सुनहरा अवसर है, जो आगे बढ़ने के लिये जीवन भर प्रतिभागियों को प्रेरित करता रहेगा। कार्यकारी अध्यक्ष ने कहा कि संस्कृत संस्थान द्वारा अनेक योजनाओं का शुभारम्भ किया गया है, जिससे प्रतिवर्ष अनेक लाभार्थी लाभान्विता हो रहे हैं।
       संस्कृत के जन जन तक पहुंचाने के लिये संस्कृत सम्भाषण कक्षा का ऑनलाइन प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जिससे उनके पठन पाठन में सुधार की स्थिति दिखाई दे रही है। उन्होंने बताया कि सन् 2021-22 में लगभग 13 हजार लाभार्थियों को सम्भाषण का लाभ हुआ। प्रतिवर्ष संस्कृत सम्भाषण में संस्कृत जिज्ञासुओं की संख्या संस्कृत के प्रति उनकी रुचि को दर्शाती है। कार्यकारी अध्यक्ष ने बताया कि संस्कृत पढ़ने वालों को रोजगार से जोड़ने के लिये संस्थान द्वारा ज्योतिष प्रशिक्षण एवं वास्तु तथा कुण्डली बनाने की पद्धति बनानी जानी चाहिये, जिससे सभी लाभान्वित हो सकें। संस्कृत संस्थान द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न प्रमुख कार्यक्रमों की मुक्तकण्ठ से प्रंशंसा करते हुये उन्होंने सिविल सेवा के संस्कृतकक्षा का निश्शुल्क संचालन पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि विज्ञान जिस तरह नित नई प्रगति कर रहा है, वैसे ही संस्कृत का नित नई प्रगति की राह पर चलने की जरूरत है। पतंजलियोग पीठ की तरह योग एवं आयुर्वेद में रचित ग्रन्थों के अंग्रेजी हिन्दी अनुवाद कार्य को कर के जनसामान्य तक पहुंचाने का परामर्श दिया।
     पद्मश्री अभिराज राजेन्द्र मिश्र ने कहा कि भारतीय अपने गौरवशाली इतिहास को भुलने लगे हैं। विश्व में भगवान् श्रीराम की मूतिर्यो का मिलना श्रीराम कथा के विस्तार को दर्शाता है। श्रीमिश्र ने युग कवि महर्षि  वाल्मीकि के अवदान पर विस्तार से प्रकाश डालते हुये उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के दीर्घ अनुभव को साझा करते हुये संस्थान के कार्यो की भूरिशः प्रशंसा की।
     संस्थान के निदेशक श्री विनय श्रीवास्तव ने धन्यवाद ज्ञापन द्वारा अभ्यागत अतिथियों का सम्मान किया। उद्धाटन सत्र का आरम्भ वैदिक मंगलाचारण से हुआ। जहां आरम्भ में दीपप्रज्वलन कर वाग्देवी को माल्य एवं दीप अर्पित किया गया। कार्यक्रम का संचालन जगदानन्द झा ने एवं प्रस्तावन चन्द्रकान्तदत्त शुक्ल ने प्रस्तुत किया। डॉ शुक्ल ने बताया कि महर्षि वाल्मीकि जयन्ती के जनपद, मण्डल एवं राज्यस्तरीय  11 हजार संस्कृत प्रेमियो ने निर्णयक, संयोजक एवं अन्य सहयोगी के रूप में अपना अमूल्य योगदान दिया है।  प्रतियोगिता में कुल लगभग इस सत्र में महिलाओं की प्रतिभागिता का प्रतिशत अत्यन्त दर्शनीय रहा।
    उद्घाटन सत्र के बाद संस्कृत भाषण प्रतियोगिता, श्रुतलेखन, श्लोकान्त्याक्षरी, संस्कृत गान, संस्कृत नाटक  आदि प्रतिभागिताओं का आयोजन हुआ, जिसमें अनेक प्रतिभागियों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर दर्शकों का मन मोह लिया।
    सायंकाल संस्कृत कविसम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें देश के प्रतिष्ठित महाकवियों ने मधुर काव्य पाठ से श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध किया। जगद्गुरु स्वामी विद्याभास्कर महाराज ने कविसम्मेलन की अध्यक्षत करते हुये महर्षि वाल्मीकि का पुण्य स्मरण किया। महाकवि अभिराज राजेन्द्र मिश्र ने सुमधुर काव्यपाठ से सहृदयों के मन को चुरा लिया। उमा रानी त्रिपाठी, नरेन्द्र त्रिपाठी, विन्ध्येश्वरी प्रसाद मिश्र, कमला पाण्डेय, ओमप्रकाश पाण्डेय, आजाद मिश्र, रेखा शुक्ल, राजेन्द्र त्रिपाठी रसराज, रामसुमेर यादव कवियों ने आजादी के अमृत महोत्सव, महर्षि वाल्मीकि तथा रामायण के पात्रों को ध्यान में रखकर श्रव्य काव्यपाठ कर महर्षि वाल्मीकिजयन्ती की शोभा बढ़ाई। संस्कृत कविसम्मेलन का संचालन अरविन्द तिवारी ने किया। इस अवसर संस्कृत संस्थान के दिनेश मिश्र, महेन्द्र पाठक, चन्द्रकला आदि सभी का सहयोग अतीव सराहनीय रहा।