पटना: समाजावादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव नहीं रहे। उनके निधन पर आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने गहरा शोक जताया और कहा कि ‘समाजवादी वटवृक्ष सपा संरक्षक आदरणीय मुलायम सिंह जी के निधन की खबर से मर्माहत हूं। देश की राजनीति में एवं वंचितों को अग्रिम पंक्ति में लाने में उनका अतुलनीय योगदान रहा। उनकी यादें जुड़ी रहेगी।ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें।’ आपको बता दें कि लालू यादव और मुलायम सिंह रिश्तेदार भी हैं। मुलायम सिंह के पोते तेजप्रताप से लालू यादव की बेटी राजलक्ष्मी की शादी हुई है। यही नहीं, दोनों की किस्मत के पहिए भी एक ही ट्रैक पर चले।
एक जैसी किस्मत के मालिक लालू और मुलायम
आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव, दोनों की ही किस्मत भी एक जैसी ही थी। कई बातें ऐसी हैं जो दोनों में एक समान थीं। किस्मत का एक जैसा होना शायद इसी को कहते हैं। लालू-मुलायम दोनों ही सियासत में आने वाले अपने परिवार के पहले सदस्य थे, दोनों ने ही अपनी संतानों को विरासत में राजनीति ही सौंपी। इनके पहले इनके घर का कोई भी शख्स राजनीति नाम को भी नहीं जानता था।
Mulayam Singh Yadav: नहीं रहे ‘नेताजी’… समाजवादी राजनीति के ‘युग’ मुलायम सिंह यादव का निधन
छात्र राजनीति से लालू-मुलायम ने की थी शुरूआत, केंद्र वाली किस्मत भी एक जैसी
लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव दोनों ने ही छात्र जीवन ने अपनी राजनीति शुरू की थी। लालू यादव की राजनीति पटना विश्वविद्यालय से परवान चढ़ी तो मुलायम सिंह यादव भी शुरूआती दिनों में छात्र नेता थे। मुलायम सिंह यादव अपने गृह ग्राम सैफई के जिले इटावा में केके कॉलेज में छात्र नेता थे। इसके बाद दोनों की ही किस्मत फिर साथ चली और वो सीएम बने। लालू बिहार के तो मुलायम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। किस्मत केंद्र तक भी गई, मुलायम देवगौड़ा और गुजराल सरकार में मंत्री रहे तो लालू यादव मनमोहन सरकार में केंद्रीय मंत्री (रेल) बने।
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जब नेता जी की पीएम उम्मीदवारी में लालू ने फंसाया था पेंच
राजलक्ष्मी और तेजप्रताप की शादी से काफी पहले लालू-मुलायम के संबंधों में जबरदस्त खटास भी आई थी। ये किस्सा 1990 के दशक का है, उस वक्त लालू और मुलायम दोनों ही की राजनीति परवान पर थी। लेकिन यही वो वक्त था जब लालू ने मुलायम के पीएम बनने की राह में रोड़े बिछा दिए थे। खुद मुलायम ने कई बार सार्वजनिक मंचों से ये दुख जाहिर किया कि 1997 में UPA की सरकार में वो पीएम बन सकते थे, लेकिन लालू ने ही उनके नाम पर पेच फंसा दिया। हालांकि जब बाद में लालू-मुलायम रिश्तेदार बने तो दोनों ने ही इस बात को पीछे छोड़ देना ही बेहतर समझा।
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