जालौन: यूपी की सियासत में जब उठा पटक चल रही थी, तब फूलन के हाथों से बंदूक छीनकर मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav Health Update) उसे राजनीति की कमान सौंप रहे थे। जी हां, वही फूलन जिसे लोग बैंडिट क्वीन के नाम से जानते हैं। फूलन ने अपने ऊपर हुए अत्याचार का बदला लेने के लिए 1981 को एक सामूहिक हत्याकांड को अंजाम दिया था, जिसे बेहमई हत्याकांड के नाम से जाना जाता है।
इस सामूहिक हत्याकांड में 22 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। करीब 40 वर्ष बाद 2021 में इस नरसंहार पर फैसला तो आया, लेकिन इसके पहले 25 जुलाई 2001 को दिल्ली में फूलन देवी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इन 40 वर्षों के लंबे अंतराल में बहुत कुछ घटित हुआ, जिसे प्रदेश की सियासत में आज भी याद किया जाता है। आखिर कैसे हत्या और अपहरण के आरोप में लंबे समय तक फूलन जेल में बंद रहीं। जेल से बाहर निकलने के जब सारे रास्ते बंद हो गए थे। तब वर्ष 1994 में यूपी में मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी और फूलन के ऊपर लगे सभी आरोप वापस ले लिए और उनकी रिहाई का रास्ता साफ हो गया। इतना ही नहीं, सपा से फूलन को लोकसभा चुनाव लड़ाया। मिर्जापुर से वह सांसद बनीं और अपने निषाद समाज का एक बड़ा चेहरा बन गईं।
सपा सरकार बनीं और मुलायम ने सभी आरोप वापस ले लिए दरअसल, यूपी जालौन के कालपी के एक छोटे से गांव में 10 अगस्त 1963 को फूलन का जन्म एक मल्लाह परिवार में हुआ था। महज 11 साल की उम्र में फूलन की शादी हो गई थी और कथित तौर पर 15 साल की उम्र में गांव के ठाकुरों ने फूलन के साथ बलात्कार किया था, जिसके बाद फूलन ने 14 फरवरी 1981 को अपने अपमान का बदला लिया और बेहमई कांड को अंजाम दिया। इस कांड के दो साल बाद इंदिरा गांधी की सरकार ने फूलन देवी के सामने आत्मसमर्पण का प्रस्ताव रखा था। फांसी की सजा न देने का आश्वासन मिलने के बाद फूलन ने सरेंडर कर दिया था। फूलन ने भिंड जिले के एक गांव में अपनी शर्तों के मुताबिक, हथियार डाले। फूलन को बिना मुकदमे ही 11 साल जेल की सलाखों के पीछे बिताने पड़े। जब मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो 1994 में फूलन देवी के ऊपर लगे सारे आरोप वापस ले लिए, जिसके बाद फूलन को जेल से रिहा कर दिया गया।बोलीं-फूलन, ये लोग दलितों को दबा-कुचला समझते हैंवर्ष 1984 में समाजवादी पार्टी की सरकार ने फूलन को जेल से रिहा किया। रिहा होने के बाद उसने समाजवादी पार्टी की तरफ से मिर्जापुर की लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। मिर्जापुर की सीट से चुनाव जीतने के बाद फूलन सांसद बनीं और संसद तक पहुंची। डकैत बनने से लेकर अपने राजनीतिक सफर में फूलन ने तमाम तरह की चुनौतियों का सामना किया, लेकिन मुलायम सिंह यादव के विश्वास की जीत हुई। अपनी जनसभा के दौरान फूलन ने बताया था कि वह चार साल जंगल में भटकीं और 11 साल जेल में रहीं। वहां उन्हें मानिसक रूप से बीमार महिलाओं के साथ रखा गया था। उन्हें कोर्ट में पेश नहीं किया गया। जेल से छोड़े जाने के बाद कहा गया कि इतनी बड़ी डाकू को कैसे छोड़ दिया गया। ऊंची जाति के लोग जो जात-पात को मानते हैं, वे हम जैसे गरीबों, दलितों, दबे-कुचलों को कीड़े-मकोड़े हैं, इंसान नहीं समझते हैं। उन लोगों को मैंने बताया कि मैं इंसान हूं, अगर हमें तुम मारोगे तो हम भी चुप नहीं बैठेंगे, हम भी ईंट का जबाब पत्थर से देंगे।ये मुलायम सिंह की देन है, जो हम आज आपके बीच खड़ीं हूंफूलन नेता मुलायम सिंह यादव के एहसानों को कभी नहीं भूल पाईं। आखिर 11 साल की जेल बिताने के बाद फूलन को सलाखों से आजादी मिल पाई थी। कई दफा फूलन ने सार्वजानिक मंच से कहा कि जब मेरे साथ अत्याचार हुआ तो मैंने आत्महत्या करने के बारे में सोचा, लेकिन ये जीत नहीं, बल्कि कायरता होती तो मैंने रावण का अंत करने के लिए हथियार उठाना मुनासिफ समझा, लेकिन मुझे बाद में डकैत के नाम से नवाजा गया। मुलायम का जिक्र करते हुए फूलन ने कहा कि आज हम आपके बीच खड़ी हूं, वो नेता जी मुलायम सिंह की देन है। मैंने अपने ऊपर हुए अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई इस दौरान पुरुषों के विरोध का सामना किया। मेरे ऊपर 18 अपहरण और 30 डकैती के आरोप लगे थे, लेकिन समाजवादी पार्टी के नेता ने मेरे दर्द को समझा और मुकदमे वापस लेते हुए रिहाई की मंजूरी दी। फूलन चुनाव लड़ी और मिर्जापुर सीट से लोकसभा पहुंचीं।फूलन पर दर्ज थे 48 मुकदमे थे, मुलायम सरकार ने दिलाई रिहाईफूलन को बीहड़ों से संसद तक पहुंचाने के पीछे मुलायम सिंह का काफी योगदान रहा। अगर मुलायम मुकदमे वापस न लेते तो फूलन का जेल से रिहा होना काफी मुश्किल था। फूलन देवी पर हत्या, अपहरण, डकैती समेत कुल 48 आपराधिक मामले दर्ज थे। 1994 में मुलायम सरकार के उस फैसले से देशभर के लोग हैरान रह गए थे। लोग एक खूंखार डकैत को एक नेता के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। बाद में इस पर काफी चर्चा और विवाद पैदा हुआ, लेकिन सपा सरकार ने फूलन के खिलाफ न सिर्फ सारे आरोप वापस ले लिए थे, बल्कि पार्टी से टिकट भी दिया। वह पहली बार 1996 और फिर 1999 में मिर्जापुर सीट से लोकसभा पहुंचीं। 25 जुलाई 2001 को दिल्ली बंगले के बाहर तीन नकाबपोश हमलावरों ने सांसद फूलन देवी की हत्या कर दी। जिसमें मुख्य दोषी शेर सिंह को पाया गया। 2014 में कोर्ट ने शेर सिंह राणा को उम्रकैद की सजा सुनाई। अंत में 40 वर्ष बाद बेहमई कांड पर फैसला आया, जब तक फूलन के हाथों से बंदूक और शरीर से सांसें दोनों दम तोड़ चुकी थीं।
रिपोर्ट- विशाल वर्मा
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