जालौन: दशहरा का पर्व नजदीक है। ऐसे में देश भर के कई हिस्सों में रामलीला का मंचन हो रहा है। आज हम आपको ऐसी ही एक रामलीला के बारे में बताने जा रहे है जो 170 साल पुरानी है और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में इसका नाम दर्ज है। इस रामलीला की खासियत यह है कि इसमें रामलीला के पात्रों का मंचन करने वाले सारे युवा होते हैं और वह सारे ब्राह्मण कुल से होते हैं। राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न का पात्र निभाने वाले 10 से 15 साल के किशोर होते है। कोंच की रामलीला में पारसी रंगमंच शैली बखूबी नजर आती है। इस रामलीला का अंतिम दिन बेहद महत्वपूर्ण होता है, जिसमें रावण का वध होता है। मैदानों में रावण के परिवार का अंत किया जाता है और यह सब सजीव चित्रण जैसा होता है।
दरअसल, जालौन के कोंच नगर में होने वाली ऐतिहासिक अनुष्ठानी रामलीला का विधि-विधान के साथ शुरूआत हो गई थी। यहां नगर में आयोजित होने वाली रामलीला 170 वर्ष पुरानी है और लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज है। यह रामलीला अपनी परंपराओं और अनुष्ठानों को लेकर जानी जाती है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण कड़ी यह है कि इसे आज भी रामलीला से जुड़ी हुईं मान्यताओं के आधार पर मंचन किया जाता है।
ब्राह्मण कुल के बालक निभाते हैं किरदार
इस मनमोहक रामलीला में अभिनय करने वाले पात्र किसी भी प्रकार का कोई भी पारिश्रमिक नहीं लेते हैं और सारे अभिनय बिल्कुल जीवंत-रूप में स्थानीय लोग ही निभाते हैं। श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न 10 से 15 वर्ष के बीच के ही ब्राह्मण बालकों को बनाया जाता है। इनकी पूरे नगर में यात्रा के दौरान भक्ति भाव से पूजा अर्चना भी की जाती है। कोंच की रामलीला में पारसी रंगमंच शैली बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देती है। इतना ही नहीं वर्ष 2008 में अयोध्या शोध संस्थान द्वारा इस रामलीला का आद्यंत कवरेज कराया गया था। देशभर की रामलीलाओं के किए गए सर्वेक्षण में इस रामलीला को देश की सर्वश्रेष्ठ मैदानी रामलीला का खिताब भी संस्थान द्वारा प्रदान किया गया था।
पुरुष निभाते है महिला के सभी किरदार
रामलीला की कुछ लीलाएं मंच पर न होकर मैदानों में आयोजित की जाती हैं। इनको देखने के लिए हजारों की संख्या में भीड़ भी उमड़ती है। वहीं रामलीला कमेटी के पदाधिकारी और गौड़ वंशीय परिवार के प्रतिनिधि अतुल चतुर्वेदी ने बताया की ये रामलीला 170 वर्ष से संचालित होती चली जा रही है। वर्ष 2009 में लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज की जा चुकी है। यहां रामलीला संजीव विग्रह 10 वर्ष से 14 वर्ष के ब्राह्मण बालक बनाए जाते है। इसमें कोई महिला किरदार नहीं निभाती। बल्कि महिलाओं के किरदार भी पुरुष अवैतनिक रूप से निभाते हैं।
पीढ़ी दर पीढ़ी बिना किसी श्रम के निभा रहे किरदार
रामलीला समिति के संरक्षक पुरषोत्तमदास रिछारिया ने बताया इसमें कोई भी पेशेवर कलाकार नहीं होता। बल्कि सारे स्थानीय निवासी होते हैं, जो बिना पारिश्रमिक काम करते है। अयोध्या शोध संस्थान के सर्वे में देश के सबसे उत्कृष्ट राम लीला का खिताब भी कोंच की रामलीला को दिया गया। रामलीला विभाग के अभिनय विभाग के अध्यक्ष रमेश तिवारी ने बताया स्थानीय कलाकार बिना पैसे के यहां काम करते है। यहां रावण और मेघनाथ के पुतले गाड़ियों में बांधकर दौड़ाए जाते है। एशिया महादीप में इस रामलीला का श्रेष्ठ स्थान है।
रिपोर्ट- विशाल वर्मा
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