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1942 के आंदोलन में जब शहीद लाल पद्मधर को गोली लगने के बाद छात्र उनका पार्थिव शरीर लेकर छात्रसंघ भवन पहुंचे तो उस वक्त कुलपति रहे प्रो. एएन झा ने ब्रिटिश फोर्स को परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी। उन्होंने अंग्रेज कलेक्टर से कहा कि परिसर में लॉ एंड ऑर्डर देखने की जिम्मेदारी हमारी है, आपको चिंता करने की जरूरत नहीं। आप शहर के लॉ एंड ऑर्डर को संभालें।
प्रो. एएन झा महज 20 साल की उम्र में म्योर सेंट्रल कॉलेज (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) के अंग्रेजी विभाग में बतौर प्रोफेसर नियुक्त हुए। वह सबसे युवा प्रोफेसर थे। सरोजिनी नायडू एक मार्च 1923 को जब हिंदू हॉस्टल आईं थीं, तब उन्होंने कहा था कि अमर नाथ झा की याददाश्त उतनी ही नौजवान है, जितने वह खुद हैं। उन्होंने प्रथम श्रेणी में अंग्रेजी साहित्य से एमए की पढ़ाई की।
वह 1938 से 1946 तक तीन बार इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। 1947 में लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष बने, लेकिन बीएचयू का कुलपति बनते ही लोक सेवा आयोग से एक साल की छुट्टी ले ली। इतिहासकार प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि प्रो. एएन झा का आनंद भवन से गहरा नाता रहा। फरवरी 1931 को उन्हें जवाहर लाल नेहरू, कमला नेहरू, सरोजनी नायडू और हंसा मेहता के साथ चाय पर आमंत्रित किया गया।
प्रो. झा को मिला था क्वीन विक्टोरिया जुबली मेडल
इतिहासकार प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि प्रो. एएन झा जब एमए कर रहे थे, तभी उन्हें म्योर सेंट्रल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त किया गया। उन्हें क्वीन विक्टोरिया जुबली मेडल भी मिला था, जो बहुत कम लोगों को मिला। प्रो. झा के अलावा इविवि के इतिहास में सुरेंद्र नाथ सेन, अभय चरण मुखर्जी, हरिश्चंद्र, प्यारे लाल, भोला नाथ झा, बसंत सिंह सेठ और ज्योति स्वरूप को ही यह मेडल प्राप्त हुआ था।
एएन झा हॉस्टल ने देश को दिए कई आईएएस
प्रो. एएन झा के नाम पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय का एक हॉस्टल भी है। एक वक्त था, जब सिविल सेवा परीक्षा में देश भर से चयनितों में 10 फीसदी इसी हॉस्टल के छात्र हुआ करते थे। हालांकि, बाद में हॉस्टल के रखरखाव और अन्य सुविधाओं का स्तर तेजी से गिरा। बीते कुछ वर्षों से सिविल सेवा परीक्षा में यहां के छात्रों के चयन का ग्राफ पूरी तरह से गिर चुका है। हॉस्टल में सुविधाओं को टोटा है और मेस की हालत भी अच्छी नहीं है।
हिंदी के उन्नयन के लिए किया काम
प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि प्रो. बीएन झा ने अपने संस्मरण में लिखा है कि छात्र जीवन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी अंग्रेजी के शिक्षक रहे प्रो. एएन झा की हिंदी भाषा के क्षेत्र में भी सेवाएं अद्भुत रहीं। उन्होंने हिंदी के उन्नयन के लिए बहुत काम किए। वह हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे।
सरोजनी नायडू पर लिखी थी किताब
प्रो. एएन झा 1917 में सरोजनी नायडू से संपर्क में आए। इसके बाद पत्राचार के माध्यम से अगले तीन दशक तक उनके संपर्क में रहे। उन्होंने सरोजनी नायडू पर ‘सरोजनी नायडू ए पर्सनल होमेट’ पुस्तक लिखी।’ उन्होंने संस्मरण में लिखा कि दो फरवरी 1931 को सरोजनी नायडू उनके घर पहुंचीं। दोनों महादेव देसाई एवं रुद्र परिवार के घर भोजन पर गए। लौटते समय आनंद भवन गए। पहुंचने पर पता चला कि कुछ देर पहले ही मोती लाल नेहरू लखनऊ के लिए रवाना हो चुके हैं। 24 अक्तूबर 1933 को नायडू उनके घर आईं। साथ में रामकुमार वर्मा, भगवती चरण वर्मा, माजिद भी थे। उन्होंने अपनी कविताएं सुनाईं।
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1942 के आंदोलन में जब शहीद लाल पद्मधर को गोली लगने के बाद छात्र उनका पार्थिव शरीर लेकर छात्रसंघ भवन पहुंचे तो उस वक्त कुलपति रहे प्रो. एएन झा ने ब्रिटिश फोर्स को परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी। उन्होंने अंग्रेज कलेक्टर से कहा कि परिसर में लॉ एंड ऑर्डर देखने की जिम्मेदारी हमारी है, आपको चिंता करने की जरूरत नहीं। आप शहर के लॉ एंड ऑर्डर को संभालें।
प्रो. एएन झा महज 20 साल की उम्र में म्योर सेंट्रल कॉलेज (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) के अंग्रेजी विभाग में बतौर प्रोफेसर नियुक्त हुए। वह सबसे युवा प्रोफेसर थे। सरोजिनी नायडू एक मार्च 1923 को जब हिंदू हॉस्टल आईं थीं, तब उन्होंने कहा था कि अमर नाथ झा की याददाश्त उतनी ही नौजवान है, जितने वह खुद हैं। उन्होंने प्रथम श्रेणी में अंग्रेजी साहित्य से एमए की पढ़ाई की।
वह 1938 से 1946 तक तीन बार इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। 1947 में लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष बने, लेकिन बीएचयू का कुलपति बनते ही लोक सेवा आयोग से एक साल की छुट्टी ले ली। इतिहासकार प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि प्रो. एएन झा का आनंद भवन से गहरा नाता रहा। फरवरी 1931 को उन्हें जवाहर लाल नेहरू, कमला नेहरू, सरोजनी नायडू और हंसा मेहता के साथ चाय पर आमंत्रित किया गया।
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