नोएडा: नोएडा में खड़ी भ्रष्टाचार की इमारत ढह चुकी है। कोर्ट ने बिल्डिंग बनाने के नियमों में उल्लंघन की वजह से दो बड़ी इमारतों को ध्वस्त कर दिया गया। अथॉरिटी में बैठे अधिकारियों ने तमाम नियमों को दरकिनार कर नक्शे पास किए। बिल्डर को एनओसी दी। अब कड़ी कार्रवाई की दरकार है। ट्विन टावर के निर्माण में नियमों का उल्लंघन किया गया। एमराल्ड कोर्ट हाउसिंग सोसाइटी को स्वीकृति मिलने पर 14 टॉवर और 9 फ्लोर का प्लान था। बाद में प्लान रिवाइज हुआ और सुपरटेक को हर टॉवर में और भी फ्लोर बनाने की मंजूरी मिल गई। ओरिजनल प्लान के अनुसार जिस जगह पर इन ट्विन टावर्स का निर्माण हुआ, वहां पर गार्डेन बनाया जाना था।
हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता ने सुपरटेक पर नियमों का उल्लंघन करने के साथ ही अधिक लाभ कमाने के मकसद से ज्यादा फ्लैट बेचे जाने का आरोप लगाया। सुप्रीम कोर्ट ने भी यह तय पाया कि डिवेलपर ने अधिकारियों के साथ गठजोड़ करके नियमों का उल्लंघन किया है। इन दोनों फ्लैट्स को ध्वस्त कर दिया गया है। सायरन की आवाज के बाद हुए ब्लास्ट के बाद दोनों ही इमारतें ताश के पत्तों की गिर गईं। और फिर धूल का गुबार उठा। हालांकि धूल का गुबार उठने से पहले करप्शन हुआ। करप्शन को लेकर आवाज उठी। बात अदालत की चौखट तक गई। जांच करने के लिए कमिटी का गठन हुआ, जिसकी रिपोर्ट पर फिर बिल्डिंग को ध्वस्त करने की तैयारी की गई।
Noida twin tower Black box news: ट्विन टावरों में ब्लास्ट के बाद बस ये 10 बक्से ही जिंदा बचेंगे, जानिए क्यों रखे गए हैं
सुप्रीम कोर्ट ने 30 अगस्त 2021 को दोनों अवैध टावर ध्वस्त करने और फ्लैट खरीदारों का पैसा ब्याज सहित लौटाने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तत्कालीन नियोजन प्रबंधक मुकेश गोयल को निलंबित कर दिया था और 3 सितंबर को एसआईटी गठित कर दी थी। योगी ने विस्तृत जांच कर उन जिम्मेदार अफसरों को चिन्हित करने का निर्देश दिया था, जो 2004 से 2017 के बीच नोएडा प्राधिकरण में तैनात रहे।
4 सदस्यीय विशेष जांच दल (SIT) ने एक महीने की गहन जांच-पड़ताल के बाद विस्तृत रिपोर्ट सौंपी। एसआईटी रिपोर्ट में, सुपरटेक मामले में नोएडा विकास प्राधिकरण के 26 अधिकारियों की संलिप्तता को उजागर किया गया है। एसआईटी की जांच रिपोर्ट पर उत्तर प्रदेश शासन ने ऐक्शन भी लिया। एसआईटी की रिपोर्ट में नोएडा प्राधिकरण के जो 26 अधिकारी दोषी पाए गए हैं, उनमें से दो की मृत्यु हो गई है। 4 अधिकारी सेवारत हैं और 20 अधिकारी रिटायर हो चुके हैं। सेवारत 4 अधिकारियों में से एक का निलंबन हो चुका है। अब 3 अधिकारियों को निलंबित करते हुए विभागीय कार्यवाही की प्रक्रिया की गई। रिटायर हो चुके अन्य अधिकारियों के खिलाफ भी नियमानुसार कार्यवाही का आदेश हुआ।
सुपरटेक के 4 निदेशक और 2 आर्किटेक्ट भी फंसे
उत्तर प्रदेश शासन ने प्रकरण में नोएडा प्राधिकरण के संलिप्त पाए गए अधिकारियों, सुपरटेक लिमिटेड के 4 निदेशकों और 2 आर्किटेक्ट के खिलाफ सतर्कता अधिष्ठान में एफआईआर दर्ज कराते हुए सतर्कता इकाई को विवेचना के निर्देश जारी किए हैं। शासन ने उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास अधिनियम 1976 और उत्तर प्रदेश अपार्टमेंट (प्रमोशन ऑफ कंस्ट्रक्शन, ओनरशिप ऐंड मेंटिनेंस) अधिनियम 2010 के प्रावधानों के उल्लंघन को मद्देनजर रखते हुए नोएडा प्राधिकरण और सुपरटेक लिमिटेड के दोषी अधिकारियों के खिलाफ उक्त अधिनियमों के अंतर्गत सक्षम न्यायालय में मुकदमा दाखिल करने के भी निर्देश दिए हैं।
इन अफसरों पर गिरी गाज-
मोहिंदर सिंह (रिटायर्ड), सीईओ, नोएडाएक. के. द्विवेदी (रिटायर्ड), सीईओ, नोएडाआर. पी. अरोड़ा (रिटायर्ड), अपर सीईओ, नोएडायशपाल सिंह (रिटायर्ड), विशेष कार्याधिकारीमैराजुद्दीन (रिटायर्ड), प्लानिंग असिस्टेंटऋतुराज व्यास, सहयुक्त नगर नियोजकए. के. मिश्रा (रिटायर्ड), नगर नियोजकराजपाल कौशिक (रिटायर्ड), वरिष्ठ नगर नियोजकत्रिभुवन सिंह (रिटायर्ड), मुख्य वास्तुविद नियोजकशैलेंद्र कैरे (रिटायर्ड), उप महाप्रबंधक (ग्रुप हाउसिंग)बाबूराम (रिटायर्ड), परियोजना अभियंताटी. एन. पटेल (रिटायर्ड), प्लानिंग असिस्टेंटवी. ए. देवपुजारी (रिटायर्ड), मुख्य वास्तुविद नियोजकअनीता, प्लानिंग असिस्टेंटएन. के. कपूर (रिटायर्ड), असोसिएट आर्किटैक्टमुकेश गोयल, नियोजन सहायकप्रवीण श्रीवास्तव (रिटायर्ड), सहायक वास्तुविदज्ञान चंद (रिटायर्ड), विधि अधिकारीराजेश कुमार (रिटायर्ड), विधि सलाहकारडी. पी. भारद्वाज, प्लानिंग असिस्टेंटविमला सिंह, सहयुक्त नगर नियोजकविपिन गौड़ (रिटायर्ड), महाप्रबंधकएम. सी. त्यागी (रिटायर्ड), परियोजना अभियंताके. के. पांडेय, मुख्य परियोजना अभियंतापी. एन. बाथम, अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारीए.सी. सिंह (रिटायर्ड), वित्त नियंत्रक
अवैध निर्माण का सारा खेल परचेजेबल एफएआर के प्रावधान से शुरू हुआ। जो फ्लोर एरिया रेशो पास हुआ, बिल्डर उससे ज्यादा निर्माण कर लेता था और अथॉरिटी से अतिरिक्त एफएआर खरीद लेता था। यह बिल्डरों को प्रोत्साहित करने जैसा है कि पहले गलत काम कर लो, फिर अतिरिक्त पैसा देकर उसे पास करवा लो। कानून की इन कमियों को दूर करके ही गलत होने से रोका जा सकता है। इस खेल में कोई निचले लेवल का अधिकारी ही शामिल नहीं होता है, ऊपर तक मिलीभगत होती है।
मामले में एसआईटी ने 2 आर्किटेक्ट इंस्टीट्यूट को भी चिन्हित किया गया है। इसलिए इन संस्थानों और संलिप्त आर्किटेक्ट के खिलाफ समुचित कार्यवाही के लिए काउंसिल ऑफ आर्किटेक्चर को भी बिना देरी किए संदर्भ प्रेषित करने का निर्देश दिया गया है। एसआईटी ने अपनी जांच रिपोर्ट में यह भी कहा है कि सुपरटेक लिमिटेड ने ले-आउट प्लान में लगभग 7000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल वाले आरक्षित ग्रीन बेल्ट को भूखंड में सम्मिलित कर लिया। इसके संबंध में दोषी अधिकारियों के खिलाफ प्राधिकरण स्तर से कार्यवाही चल रही है। इसलिए इस मामले में ग्रीन बेल्ट को अतिक्रमण से मुक्त कराने और चिन्हित अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही सुनिश्चित करने के निर्देश दे दिए गए।
साल 2004 में नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर 93ए में ग्रुप हाउसिंग के प्लॉट नंबर 4 का आवंटन 23 नवंबर 2004 को एमराल्ड कोर्ट को किया गया। अथॉरिटी की ओर से 84,273 वर्गमीटर जमीन अलॉट किया गया। ग्रुप हाउसिंग सोसायटी को नोएडा अथॉरिटी की ओर से 14 टावर निर्माण के नक्शे का आवंटन हुआ। ग्रुप हाउसिंग सोसायटी में सभी 14 टावरों के लिए जी+9 यानी ग्राउंड फ्लोर के साथ 9 मंजिला पास किया गया। 2006, 2009 और फिर 2012 में नोएडा अथॉरिटी ने ग्रुप हाउसिंग सोसायटी की ओर से टावर के नक्शे में पहला, दूसरा और तीसरा संशोधन किया। नए एफएआर के तहत दोनों टावरों की ऊंचाई 40 मंजिला करने की इजाजत दे दी गई। इसके बाद बिल्डिंग की ऊंचाई 121 मीटर तय की गई।
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भ्रष्टाचार के इस टावर के खिलाफ विरोध का स्वर सबसे पहले 2012 में उठा। एमराल्ड कोर्ट रेसिडेंशियल वेलफेयर सोसायटी ने नोएडा अथॉरिटी के स्तर पर सुनवाई नहीं होने के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख किया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान नोएडा अथॉरिटी और सुपरटेक की ओर से सवाल-जवाब किए गए। 2 साल में हाई कोर्ट ने याचिका की सुनवाई पूरी की। कोर्ट ने ट्विन टावर तोड़ने का आदेश जारी किया गया। नोएडा अथॉरिटी में भ्रष्टाचार के मामले की पुष्टि हो गई। सुपरटेक की ओर से हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सितंबर 2014 में मामले की जांच के लिए कमेटी का गठन किया गया। नोएडा सीईओ की ओर से गठित कमेटी ने 26 घंटे में अपनी रिपोर्ट दी। इसमें 12 से 15 अधिकारियों की संलिप्तता साथ आई।
फिर 31 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद ट्विन टावर को तोड़ने का आदेश जारी कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों और कर्मचारियों पर मामले में टिप्पणी की। तीन माह के भीतर टावरों को गिराए जाने का आदेश जारी किया। हालांकि, दिसंबर में टावर को गिराने की प्रक्रिया को पूरा नहीं कराया जा सका। 4 अक्टूबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट में मामले के चलने के दौरान नोएडा सीईओ की ओर से जांच का आदेश जारी किया गया। हाई लेवल कमेटी गठित की गई। कमेटी ने जांच कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। 4 अक्टूबर को नोएडा अथॉरिटी के 24 अधिकारी और कर्मचारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई।
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22 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट में दिसंबर 2021 में कोर्ट के आदेश का अनुपालन नहीं किया गया। नोएडा अथॉरिटी की ओर से तकनीकी दिक्कतों का हवाला दिया गया। ट्विन टावर को ढाहने की तारीख 22 मई निधारित की गई। इस तिथि को भी तैयारियों को पूरा नहीं कराया जा सका। सुप्रीम कोर्ट की ओर से टावर गिराने वाली कंपनी को मई में 3 माह का अतिरिक्त समय दिया गया। नई तिथि 21 अगस्त निर्धारित की गई। इस बार टावर गिराने वाली कंपनी एडिफिस इंजीनियरिंग को एनओसी ना मिलने का पेंच फंसा। टावर गिराए जाने की तिथि एक सप्ताह और बढ़ी। रविवार 28 मई को दोपहर बाद 2.30 बजे टावर को उड़ा दिया गया।
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