वाराणसी: जिस मामले में दुनिया ने पहली बार टीवी स्क्रीन पर ज्ञानवापी मस्जिद का सच देखा, उस मामले मामले को लेकर बहस बुधवार को वाराणसी जिला जज ऐके विश्वेश की अदालत में पूरी हो गई। श्रृंगार गौरी नियमित दर्शन पूजन मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मामले की पोषणीयता पर सुनवाई हो रही थी।जून के आखिरी हफ्ते से लगातार इस मामले पर हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष के वकीलों द्वारा दलीलें पेश की जा रही थी। सुनवाई पूरी होने के बाद मामले की पोषणीयता पर फैसले को जिला जज ने रिजर्व कर लिया। इस मामले पर जिला जज ऐके विश्वेश अब 12 सितंबर को अपना फैसला सुनाएंगे कि यह मामला आगे सुनवाई के योग्य है या नहीं।
श्रृंगार गौरी नियमित दर्शन पूजन का मामला राखी सिंह और अन्य चार महिलाओं द्वारा वाराणसी के अदालत में दायर किया गया था। इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष के अंजुमन इंतजाम या कमेटी के वकील सुप्रीम कोर्ट तक गए थे। इसी मामले में निचली अदालत ने ज्ञानवापी परिसर के कमिश्निंग का आदेश दिया था। कमीशन की कार्यवाही के खिलाफअंजुमन इंतेजामिया कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी और मामले की पोषणीयता पर सवाल उठाए थे। मस्जिद की देखभाल करने वाली अंजुमन इंतेजामिया कमिटी में 7/11 के आधार पर इस मामले की सुनवाई और कमीशन की कार्यवाही को चैलेंज किया था। इस मामले पर सुनवाई करते हुए सीजेआई ने वाराणसी के जिला जज को 84 कार्य दिवसों के भीतर इस पर फैसला देने को आदेशित किया था।
दो महीने हुई बहस, इसी मामले में दिए गए थे कमीशन के आदेश
यूं तो काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर आधा दर्जन से ज्यादा मुकदमे अलग-अलग अदालतों में लंबित है। हालांकि यह मामला बेहद खास है क्योंकि तत्कालीन सिविल जज रवि कुमार दिवाकर ने इसी मामले पर कमीशन के आदेश जारी किए थे। इसके बाद ज्ञानवापी मस्जिद के पूरे परिसर की कमीशन की कार्यवाही की गई थी। इसी कमीशन की कार्यवाही के दौरान मस्जिद के बजूखाने में शिवलिंग के होने का दावा किया गया। हालांकि मुस्लिम पक्ष ने इसे फव्वारा बताया था। विवाद इतना बढ़ा की इस कमीशन की कार्यवाही के खिलाफ अंजुमन इंतेजामिया कमेटी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। वाराणसी के साथ पूरे देश की निगाहें अब 12 सितंबर को आने वाले फैसले पर लगी रहेंगी।
फैसला जो भी आए मामला खींचेगा लंबा
हिंदू पक्ष के दावे के मुताबिक 1993 से पहले तक मस्जिद के कुछ हिस्सों में हिंदू रीति रिवाज के मुताबिक पूजा होती थी और इस ज्ञानवापी मस्जिद का पूरा ढांचा मंदिर को तोड़कर बनाया गया है। दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष लगातार इस बात पर जोर देता रहा है कि 1947 के बाद किसी धार्मिक स्थल के चरित्र को बदला नहीं जा सकता। साथ ही साथ 1991 के विशेष उपासना स्थल कानून के तहत कमीशन की कार्यवाही भी गलत है। अब जिला जज के फैसले पर निर्भर करता है कि हिंदू पक्ष के दावों पर मुहर लगेगी और श्रृंगार गौरी नियमित दर्शन का मामला आगे चलेगा या नहीं या फिर मुस्लिम पक्ष की आपत्तियों पर मुहर लगेगी। फैसले के खिलाफ एक पक्ष ऊपरी अदालत का रुख करेंगे।
रिपोर्ट – अभिषेक कुमार झा
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