कृष्ण जन्माष्टमी पर वृंदावन में शुक्रवार को चहुंओर कान्हा के जन्मोत्सव की अनुपम छटा दिखी। अपने आराध्य कृष्ण कन्हाई के जन्म के उत्साह से सराबोर हो गई। हर ओर सतरंगी छटा कान्हा के आगमन को सूचित कर रही थी। विश्व प्रसिद्ध ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में सुबह से लेकर शाम तक भारी भीड़ उमड़ पड़ी। भीड़ के दबाव के चलते सभी व्यवस्थाएं धरी की धरी रह गईं। मंदिर में श्रद्धालुओं को गेट नंबर दो और तीन से प्रवेश दिया गया, जबकि एक और चार से निकासी की व्यवस्था थी। इसके बाद भी मंदिर में भीड़ का भारी दबाव रहा। एक अनुमान के मुताबिक श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर वृंदावन में ठाकुर बांकेबिहारी के दर्शन को करीब दो लाख श्रद्धालु पहुंचे हैं। दिनभर मंदिर परिसर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के रस से सराबोर होकर ठाकुरजी की जय-जयकार से गुंजायमान होता रहा। तीर्थनगरी के अन्य मंदिरों में भी जन्माष्टमी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव पर रात 12 बजे जन-जन के आराध्य ठाकुर बांकेबिहारी महाराज के श्रीविग्रह का महाभिषेक किया गया। इसके बाद ठाकुरजी को पीत (पीले) रंग की पोशाक धारण कराई गई और बालरूप में शृंगार कराया गया। ठाकुरजी ने जगमोहन में विशेष रजत निर्मित सिंहासन पर विराजित होकर भक्तों को दर्शन दिए।
ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में वर्ष में एक बार होने वाली मंगला आरती के दर्शन की अभिलाषा लिए श्रद्धालु भक्तों का अपार जन सैलाब उमड़ा है। रात लगभग 1:55 बजे होने वाली मंगला आरती के साक्षी बनने के लिए घंटों पूर्व ही हजारों लोग मंदिर के बाहर एकत्रित हो गए। इस अवसर पर बांकेबिहारी मंदिर को भव्यता से सजाया गया है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर कृष्ण-बलराम इस्कॉन मंदिर में देशी-विदेशी भक्तों द्वारा ठाकुरजी के श्री विग्रहों का पंचामृत से अभिषेक किया गया। इसके बाद इस्कॉन मंदिर प्रांगण में हरे राम हरे कृष्ण की ध्वनि के बीच भक्तों ने संकीर्तन किया। ठाकुरजी को चार प्रहर के अलग-अलग चार पोशाक धारण कराई गईं। सभी श्रद्धालु ठाकुरजी के दर्शन करने के लिए आतुर दिखाई दिए।
प्रेम मंदिर में भी जन्माष्टमी महोत्सव बड़े ही भक्तिभाव के साथ मनाया गया। जगद्गुरु कृपालु परिषद की अध्यक्ष डॉ. विशाखा त्रिपाठी, डॉ. श्यामा त्रिपाठी एवं डॉ. कृष्णा त्रिपाठी के पावन सानिध्य में सभी सत्संगियों ने भगवन्नाम संकीर्तन करते हुए प्रेम मंदिर की परिक्रमा की। रात्रि में दिव्य वातावरण में हुए अभिषेक के बाद ठाकुरजी को पालने में बिठाया गया और उनकी स्तुति हुई। छप्पन भोग के साथ भव्य आरती हुई।
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