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अहम फैसला : 23 वर्षों से अनुकंपा नियुक्ति की मांग करने वाले को हाईकोर्ट से झटका

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 23 वर्षों से अनुकंपा नियुक्ति की मांग कर रहे दत्तक पुत्र को राहत देने से मना कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि याची ने जिस वर्ष नियुक्ति की मांग की थी, उस समय मृतक आश्रित नियमावली में दत्तक पुत्र को रोजगार दिए जाने का अधिकार शामिल नहीं था। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि नियमावली के अंतर्गत एक सीमित समय सीमा में ही आवेदन किया जा सकता है।
 

यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने जनपद जौनपुर के संजय कुमार सिंह की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। याची को वर्ष 1990 में राज्य सरकार के कर्मचारी राम अचल सिंह द्वारा पुत्र के रूप में गोद लिया गया था। पिता की 1995 में मृत्यु के पश्चात याची ने चार वर्ष बाद विभाग के समक्ष रोजगार आवेदन दिया था। 2003 में विभाग ने संजय के दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि दत्तक पुत्र को मृतक आश्रित कोटे के तहत नौकरी नहीं दी जा सकती है। उक्त आदेश को इस याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई थी।

अदालत ने दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं को सुनने के बाद उच्चतम न्यायालय द्वारा भारत सरकार बनाम पी वेंकटेश एवं सेंट्रल कोलफील्ड बनाम पार्डन ऑरोन केस में अभिनिर्धारित विधि सिद्धांतों का उल्लेख करते हुए कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य विपदाग्रस्त परिवार को तत्काल आर्थिक राहत प्रदान कर  संकट से उबारना होता है। अनुकंपा रोजगार का अर्थ यह नहीं कि भविष्य में इसकी मांग कभी भी कर ली जाए। हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि याची ने अपने पिता की मृत्यु के चार वर्ष बाद नौकरी का दावा किया था, इसलिए स्पष्ट है कि याची को तत्क्षण रोजगार की आवश्यकता नहीं थी।

विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 23 वर्षों से अनुकंपा नियुक्ति की मांग कर रहे दत्तक पुत्र को राहत देने से मना कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि याची ने जिस वर्ष नियुक्ति की मांग की थी, उस समय मृतक आश्रित नियमावली में दत्तक पुत्र को रोजगार दिए जाने का अधिकार शामिल नहीं था। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि नियमावली के अंतर्गत एक सीमित समय सीमा में ही आवेदन किया जा सकता है।

 


यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने जनपद जौनपुर के संजय कुमार सिंह की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। याची को वर्ष 1990 में राज्य सरकार के कर्मचारी राम अचल सिंह द्वारा पुत्र के रूप में गोद लिया गया था। पिता की 1995 में मृत्यु के पश्चात याची ने चार वर्ष बाद विभाग के समक्ष रोजगार आवेदन दिया था। 2003 में विभाग ने संजय के दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि दत्तक पुत्र को मृतक आश्रित कोटे के तहत नौकरी नहीं दी जा सकती है। उक्त आदेश को इस याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई थी।