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सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम के अधीन संस्थाओं के पंजीकरण/नवीनीकरण, सोसायटी के सदस्यों के चयन/निर्वाचन के सम्बन्ध में उप रजिस्ट्रार/सहायक रजिस्ट्रार/विहित प्राधिकारी (उपजिलाधिकारी) के निर्णयों के विरूद्ध मण्डलायुक्त के यहाँ अपील की जा सकेगी

प्रदेश के वित्त मंत्री श्री सुरेश कुमार खन्ना ने आज विधानसभा स्थित अपने कार्यालय कक्ष में प्रेस वार्ता करते हुए बताया कि सोसाइटी रजिस्ट्रकरण अधिनियम 1860 में समय की मांग के अनुसार आवश्यक समझे गये कुछ महत्वपूर्ण संशोधन किये गये हैं। उन्होंने बताया कि सोसाइटी की कठिनाईयों के निवारण हेतु समय-समय पर इस अधिनियम में राज्य संशोधन किये जाते रहे है। अधिनियम में वर्तमान कतिपय प्राविधानों से व्यावहारिक कठिनाईयों का अनुभव किया जा रहा था, जिनके सामाधान हेतु सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण (उत्तर प्रदेश संशोधन) अधिनियम, 2021 द्वारा अधिनियम के कुछ प्राविधानों में आवश्यक संशोधन/सम्वर्द्धन/अन्तःस्थापन किये गये हैं।
वित्त मंत्री ने बताया कि सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण (उत्तर प्रदेश संशोधन) अधिनियम, 2021 के अधीन संस्थाओं के पंजीकरण/नवीनीकरण, सोसायटी के सदस्यों के चयन/निर्वाचन के सम्बन्ध में यह व्यवस्था की गयी है कि उप रजिस्ट्रार/सहायक रजिस्ट्रार/विहित प्राधिकारी (उपजिलाधिकारी) के द्वारा अधिनियम के धाराओं के अन्तर्गत दिये गये निर्णयों के विरूद्ध अनुतोष प्राप्त करने के लिए जनसामान्य द्वारा संबंधित मण्डल के मण्डलायुक्त के यहाँ अपील की जा सकेगी। पूर्व में उप रजिस्ट्रार/सहायक रजिस्ट्रार तथा अधिनियम की धारा 25 (1) के अधीन विहित प्राधिकारी (उप जिलाधिकारी) द्वारा पारित निर्णयों के विरूद्ध अपील का प्राविधान न होने के कारण जनसामान्य को अत्यधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है तथा जनमानस को इसके लिए प्रायः मा0 उच्च न्यायालय का सहारा लेना पड़ता था।
वित्त मंत्री ने बताया कि सोसाइटी के सदस्यों की चयन की प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाये जाने के उद्देश्य से अधिनियम में यह प्राविधान किया गया है कि शासी निकाय के अनुमोदन के पश्चात ही साधारण सभा की सूची में कोई भी परिवर्तन किया जाना विधिमान्य होगा। संशोधन के पूर्व अधिनियम में साधारण सभा की सूची में नये सदस्यों के आगमन, हटाये जाने, सदस्यों की मृत्यु तथा त्याग पत्र देने के पश्चात परिवर्तन हेतु एक माह में संशोधित सूची बिना शासी निकाय के अनुमोदन के रजिस्ट्रार को दाखिल करने की व्यवस्था थी।
  वित्त मंत्री ने बताया कि अधिनियम में वर्ष 1979 में धारा-5 (ए) जोड़ी गयी थी जिसमें यह प्राविधान रखा गया था कि बिना सक्षम न्यायालय की पूर्व अनुमति के सोसाइटी की अचल सम्पत्ति के अंतरण को अविधिमान्य घोषित कर दिया जाये। यह धारा वर्ष 2009 में समाप्त कर दी गयी थी, फलस्वरूप सोसाइटी की अचल संपत्तियों का अंतरण तेजी से होने लगा। उन्होंने बताया कि इस प्रवृत्ति पर रोक लगाये जाने तथा यह सुनिश्चित करने के लिए कि अचल सम्पत्तियों का अंतरण अनियमित रीति से न किया जा सके, अधिनियम में 1979 में जोड़ी गयी धारा 5(ए) को यथावत पुनः स्थापित किया गया है जिसके अनुसार यदि सोसाइटी की अचल सम्पत्ति का अंतरण, दान, रेहन, विक्रय आदि सक्षम न्यायालय के पूर्व अनुमति के बिना किया जाता है तो वह विधिसम्मत नहीं होगा।
वित्त मंत्री ने बताया कि सोसाइटी के उन्नयन एवं उसमें स्वच्छ छवि के व्यक्तियों के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के दृष्टि से अधिनियम में यह प्रावधान किया गया हैं कि यदि कोई व्यक्ति, जो किसी अपराधिक मामले में सक्षम न्यायालय द्वारा दोषी पाये जाने तथा दो वर्ष या उससे अधिक समय के लिये दण्डादेश हो तो ऐसा व्यक्ति किसी सोसाइटी में पद धारण के लिए अयोग्य होगा । पूर्व में अधिनियम में सक्षम न्यायालय द्वारा दोषी ठहराये गये किसी व्यक्ति को समिति में सदस्य या अन्य पद पर चयन हेतु अयोग्य ठहराये जाने का कोई प्राविधान नहीं होने के कारण समितियों में अयोग्य व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व बढ़ता जा रहा था।
श्री खन्ना ने बताया कि सोसाइटी पंजीकरण नियमावली 1976 में प्रख्यापित की गयी थी। वर्तमान आवश्यकताओं के दृष्टिगत विधि की सीमा के अंतर्गत नियमावली में कतिपय संशोधनों पर कार्यवाही गतिमान है, जिस पर शीघ्र ही निर्णय लिया जाना संभावित है। विभाग द्वारा प्रदान की जा रही पंजीकरण एवं नवीनीकरण की सेवाऐं पूरी तरह ऑनलाईन हैं। सेवाओं को निवेश मित्र पोर्टल से भी जोड़ा गया है, तथा विभाग ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।