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BJP से खटास, अखिलेश से ‘तलाक’, मायावती से नहीं मिली तवज्जो… अब जाएंगे किधर? UP में राजभर की सियासत समझिए

लखनऊ: इस चुनाव में बीजेपी की विदाई होना तय है। 10 मार्च को 10 बजे गाना बजेगा- मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है… और फिर दूसरा गाना बजेगा- चल संन्यासी मंदिर में…. पहला गाना अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गया लावारिस फिल्म का है। वहीं दूसरे गाने की लाइन सन्यासी फिल्म से ली गई है, जिसमें हेमा मालिनी और मनोज कुमार की अदाकारी थी। लेकिन इन दोनों गीतों का राजनीति में वाक्य प्रयोग करने वाला एक शख्स है- ओमप्रकाश राजभर। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी का साथ छोड़कर अखिलेश यादव के साथ आए राजभर ने पूरी सरगर्मी के साथ चुनाव लड़ा। बयानबाजी में वह पीछे नहीं रहे। अपने बेलौस अंदाज के लिए पहचाने जाने वाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष राजभर की नैया फिर से मंझधार में फंस गई है। विधानसभा चुनाव, MLC चुनाव और लोकसभा उपचुनाव में सपा गठबंधन की हार के बाद राजभर ने बयानों के तीर का मुंह अखिलेश की तरफ मोड़ दिया है। फिर एक समय बीजेपी पर फब्तियां कसने वाले राजभर की तरफ से अखिलेश से तलाक और हमें कौन निकालेगा, किसकी औकात है… ऐसी बातें सुनने को मिलीं।

पूर्वांचल के बड़े हिस्से पर खासा प्रभाव रखने वाले वोटबैंक की राजनीति कर रहे राजभर की नाव को अब अगले सियासी ठिकाने की तलाश है। राजभर का समाजवादी पार्टी के साथ नाता टूट चुका है। या फिर उनके ही अंदाज में कहें तो अखिलेश यादव से तलाक हो चुका है। राजभर इससे पहले 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद गठबंधन में थे। वह योगी सरकार में मंत्री भी थे। हालांकि बाद में उनका टकराव हो गया और वह अखिलेश यादव के साथ आ गए। चुनाव के दौरान राजभर ने योगी और बीजेपी के खिलाफ जमकर बयानबाजी की। अब अखिलेश का साथ छूटने पर वह सपा अध्यक्ष को भी नहीं बख्श रहे हैं।

अखिलेश यादव की सपा से हाथ छूटने के बाद राजभर ने दावा किया था कि वह अब बीएसपी के साथ जा सकते हैं। उन्होंने मायावती की जमकर तारीफ की। हालांकि, बीएसपी चीफ मायावती से उनकी मुलाकात या बातचीत की कोई जानकारी नहीं आई थी। यहां तक की मायावती की ओर से भी ऐसा कोई इशारा नहीं मिला था, जिससे लगे कि वह ओपी राजभर के साथ गठबंधन के लिए उत्सुक हों। इस बीच राजभर के दावे को बीएसपी के नैशनल को-ऑर्डिनेटर आकाश आनंद ने बड़ा झटका दे दिया। यह कम से कम राजभर के लिए सुखद संकेत नहीं है।

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आकाश आनंद ने किसी का नाम लिए बिना एक ट्वीट के जरिए राजभर की मंशा पर पानी फेर दिया है। उन्होंने यह साफ कर दिया है कि बीएसपी फिलहाल किसी के साथ गठबंधन पर विचार नहीं कर रही है। आनंद ने बिना नाम लिए राजभर को अवसरवादी और स्वार्थी बताकर हमला बोला है। अपने ट्वीट में उन्होंने कहा, ‘बीएसपी प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के शासन-प्रशासन, अनुशासन की पूरी दुनिया तारीफ करती है। कुछ अवसरवादी लोग बहनजी के नाम के सहारे अपनी राजनीति की दुकान चलाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे स्वार्थी लोगों से सावधना रहने की जरूरत है।

अखिलेश यादव पर AC कमरे में बैठकर राजनीति करने वाले राजभर लगातार सपा पर हमलावर रहे। बगावती तेवर के बीच ओम प्रकाश राजभर को समाजवादी पार्टी ने चिट्ठी लिखकर कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र होने बात कही थी। सपा की चिट्ठी में आरोप लगाते हुए कहा गया था कि राजभर बीजेपी को मजबूत करने में जुटे हैं। इससे पहले राजभर ने भी सपा से ‘तलाक’ की मांग की थी। बाद में जब सपा की चिट्ठी आई तो राजभर ने कहा कि उन्होंने (सपा ने) हमे तलाक दे दिया है और वह हमें कबूल है। इस तरह से चुनाव पूर्व बना यह गठबंधन टूट गया।

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एमएलसी चुनाव में हिस्सेदारी न मिलने और राष्ट्रपति चुनाव में यशवंत सिन्हा को लेकर हुई सपा दफ्तर में प्रेस कॉन्फ्रेंस में नहीं बुलाए जाने से ओपी राजभर बागी हो गए और लगातार अखिलेश यादव को एसी से बाहर निकलने की नसीहत दे रहे थे। वहीं, शिवपाल और राजभर ने राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को वोट देने की बात कहकर सपा को झटका दे दिया। इस बीच योगी सरकार ने पुराने सहयोगी राजभर को वाई कैटेगरी की सुरक्षा मुहैया करा दी है। इसे राष्‍ट्रपति चुनाव में एनडीए प्रत्‍याशी द्रौपदी मुर्मू को वोट देने के बदले में तोहफे के तौर पर देखा जा रहा है।

राजभर को Y कैटिगरी सुरक्षा मिलने पर सपा नेता उदयवीर सिंह ने तंज कसते हुए कहा कि ओम प्रकाश राजभर ने सरकार की मदद की है। अब सरकार भी उनकी मदद करेगी। राजभर अखिलेश से ज्यादा अखिलेश के दोस्त से नाराज हैं। अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव ने साफ शब्दों में कहा- वो उदय के वीर हैं। अखिलेश यादव ने कहा है कि वो फिलहाल समाजवादी गठबंधन से दूर नहीं है। लेकिन जब पत्रकारों ने पूछा कि क्या आप खुद को निकाले जाने का इंतजार कर रहे हैं, तो राजभर ने साफ शब्दों और अपने अंदाज में कह डाला- हमें कौन निकालेगा, किसकी औकात है।

2024 लोकसभा चुनाव में करीब डेढ़ साल का वक्त बचा है। सपा से किनारा करने और फिर मायावती की तरफ से तवज्जो नहीं मिलने की स्थिति में अब राजभर के सामने बीजेपी के रूप में विकल्प नजर आ रहा है। हालांकि अभी इस संबंध में दोनों ही तरफ से कुछ स्पष्ट संकेत नहीं मिल रहा है। बीजेपी और राजभर की दोस्ती में एक बड़ी रुकावट मुख्तार अंसारी और उनका परिवार है। दरअसल, जेल में बंद माफिया मुख्तार के बेटे अब्बास ने मऊ से विधानसभा चुनाव जीता है। वह राजभर की पार्टी के टिकट पर चुनकर आए हैं। फिलहाल सूबे की राजनीति में राजभर ही ऐसे नेता हैं, जो खुलकर मुख्तार परिवार का समर्थन करते हैं।

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राजभर ने OBC आरक्षण को दो भाग में बांटने को लेकर बीजेपी के साथ नाता तोड़ लिया था। इस मुद्दे पर कोई समाधान अभी तक नहीं निकल सका है। बीजेपी गाजीपुर लोकसभा सीट को जीतने के मकसद से भी राजभर को अपने साथ ला सकती है, जहां बीजेपी अफजाल अंसारी के किले को नहीं भेद पाई थी। मुख्तार के भाई ने कद्दावर नेता मनोज सिन्हा को हरा दिया था। इस सीट पर राजभर की पार्टी का कोर वोट बैंक अच्छी खासी तादाद में है।

इस समय यूपी की राजनीति में बीजेपी, सपा, बसपा, कांग्रेस के अलावा कई छोटे दल भी सक्रिय हैं। इनमें पश्चिम में राष्ट्रीय लोकदल, अपना दल के दो गुट, निषाद पार्टी, सुभासपा, केशव देव मौर्य की महान दल, शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया), पीस पार्टी, चंद्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी हैं। इसके साथ ही आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM भी चुनावी राजनीति में शामिल हो चुकी हैं। राजभर के सामने एक अन्य विकल्प शिवपाल, ओवैसी, चंद्रशेखर, महान दल को साथ लेकर नया मोर्चा तैयार करने का है। लेकिन अब राजभर आगे क्या फैसला लेते हैं, यह आनेवाला समय बताएगा।