लखनऊ: राष्ट्रपति चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। इसी सिलसिले में विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा गुरुवार को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पहुंचे हैं। यहां सपा मुखिया अखिलेश यादव यशवंत सिन्हा को रिसीव करने एयरपोर्ट पहुंचे। जहां से दोनों लोग सीधे सपा कार्यालय पहुंचे। सपा दफ्तर पर अखिलेश और आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस की, लेकिन इस दौरान सपा के अन्य सहयोगी दलों की गैर मौजूदगी बड़े सियासी संकेत दे रही है। वहीं, इस दौरान ओपी राजभर यशवंत सिन्हा को रिसीव करने एयरपोर्ट भी नहीं पहुंचे।
ओपी राजभर के 6 विधायक हैं
समाजवादी पार्टी द्वारा बुलाई गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुहेलदेव समाज पार्टी (सुभासपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर नहीं पहुंचे और न ही प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं सपा विधायक शिवपाल यादव भी इस संयुक्त पीसी में पहुंचे। वहीं, सपा के कद्दावर नेता और विधायक आजम खान भी इस दौरान कही नहीं नजर आए। आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी को छोड़ अन्य किसी सहयोगी दल के न आने के बाद राजनीतिक गलियारों में सियासी हलचल तेज हो गई है। इसको लेकर तरह-तरह की बातें चल रही हैं। वहीं, सपा मुखिया अखिलेश यादव की अपने सहयोगी दलों से दूरी विपक्ष के राष्ट्रपति उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के लिए आने वाले दिनों में कही न कही भारी पड़ सकती है।
हम लोगों की जरूरत नहीं होगी- ओपी राजभर
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में न बुलाये जाने को लेकर सुभासपा राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर खुश नहीं हैं, जब उनसे इस बारे में बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि हम लोगों को बुलाया नहीं गया तो कैसे जाते। हो सकता है कि अब उनको (अखिलेश यादव) हम लोगों की जरूरत न हो। वहीं, राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन करने को लेकर ओपी राजभर ने कहा कि अभी तक हम लोग सपा के साथ गठबंधन में थे तो उन्हीं के साथ रहने का मन बनाए हुए थे, लेकिन अब नहीं बुलाया है तो उन्होंने ये साबित कर दिया है कि हम लोगों की उन्हें जरूरत नहीं है। वहीं, राजभर ने आगे की रणनीति को लेकर कहा कि दो-चार दिन में विधायकों के साथ बैठक करके फिर जो मन में आएगा फैसला लेंगे।
अखिलेश से बातचीत करने हम नहीं जाएंगे- राजभर
इस संबंध में जब सपा मुखिया अखिलेश यादव से बातचीत करने का सवाल राजभर से पूछा गया तो ओपी राजभर ने कहा कि हम क्यों उनसे बातचीत करेंगे, जरूरत उनको है तो वो करे। हालांकि, सपा मुखिया से नाराज बताये जा रहे शिवपाल यादव से राजभर ने बातचीत करने की बात कही है। अखिलेश से नाराजगी के सवाल पर राजभर ने कहा कि हम क्यों नाराज होंगे, हम किसी से नाराज नहीं हैं। वहीं, मौजूदा समय में सपा के सहयोगी दलों की नाराजगी की बात करें तो अगर समय रहते बात नहीं बनी तो 18 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव की वोटिंग से पहले सुभापसा प्रमुख ओपी राजभर बगावती तेवर दिखा सकते हैं।
बीजेपी ने साधा निशाना
वहीं, बीजेपी ने इस मामले पर हमला बोला है। बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि समाजवादी पार्टी गठबंधन के लिए विश्वसनीय दल नहीं है। ये बात बीजेपी ने पहले भी कहा है। अगर सपा के ट्रैक रेकॉर्ड की बात करें तो चुनाव से पहले गठबंधन होता है और चुनाव में हार के बाद गठबंधन की गांठें खुल जाती हैं। ये बात बसपा और कांग्रेस के साथ हुए सपा के गठबंधन ने साबित किया है। अब नंबर ओम प्रकाश राजभर का है। केशव देव मौर्य पहले ही उनसे अलग हो चुके हैं। एक एक करके सारे साथी उनसे अलग हो जाएंगे।
सुभापसा के बगावत से लग सकता है झटका !
राष्ट्रपति चुनाव में यूपी के प्रत्येक विधायक के वोट का मूल्य 208 है। इस तरह देश की सबसे बड़ी विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश के 403 विधायकों के वोट का मूल्य 83,824 के करीब है। जिसमें भाजपा गठबंधन के पास सबसे ज्यादा 273 विधयाक होने के नाते 56,784 वैल्यू है। वहीं, समाजवादी पार्टी गठबंधन के पास 125 विधायक हैं। 125 विधायकों वाले सपा गठबंधन के मतों का मूल्य 26,000 है। इनमें सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के 6 विधायक और शिवपाल सिंह यादव का वोट वैल्यू भी इसमें शामिल है। कांग्रेस और जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के दो-दो विधायक हैं तो वहीं बसपा का सिर्फ एक विधायक है। ओपी राजभर ने अगर बगावती तेवर दिखाए तो 6 विधायकों के 1248 वैल्यू का इससे सीधे सपा गठबंधन और विपक्ष उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को झटका पहुंचेगा।
इनपुट- अभय सिंह
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