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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस द्वारा हिरासत में ली जाने वाली गाजियाबाद की युवती की 10 लाख रुपये के मुआवजे की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा याचिका पोषणीय नहीं है। लिहाजा इसे खारिज किया जाता है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनील कुमार और न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने रुबीना व अन्य की याचिका को खारिज करते हुए दिया।
मामले में याची का आरोप है कि वह अपने कमरे में रात में सो रही थी। गाजियाबाद के कोतवाली स्टेशन की पुलिस उसके आवास पर पहुंची और उसे अपने साथ चलने को कहा। याची जब इसका कारण पूछने लगी तो पुलिस ने कुछ नहीं बताया। पुलिस उसे जबरदस्ती कोतवाली स्टेशन के साइबर सेल ले गई। याची ने उसे पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने को गैरकानूनी बताया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक यह सही नहीं है।
कोर्ट ने जब इस संबंध में पूछा कि क्या याची की ओर से कोई बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पहले दाखिल की गई है। इस पर सरकारी अधिवक्ता ने जवाब दिया कि ऐसी कोई राहत पाने के संबंध में याचिका दाखिल नहीं की गई है। कोर्ट ने कहा कि याची की ओर से दिए गए तर्क कि पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने पर उसके मूल अधिकारों खासकर अनुच्छेद 21 का हनन हुआ है, कहना सही नहीं है। कोर्ट में याचिका को खारिज कर दिया।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस द्वारा हिरासत में ली जाने वाली गाजियाबाद की युवती की 10 लाख रुपये के मुआवजे की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा याचिका पोषणीय नहीं है। लिहाजा इसे खारिज किया जाता है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनील कुमार और न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने रुबीना व अन्य की याचिका को खारिज करते हुए दिया।
मामले में याची का आरोप है कि वह अपने कमरे में रात में सो रही थी। गाजियाबाद के कोतवाली स्टेशन की पुलिस उसके आवास पर पहुंची और उसे अपने साथ चलने को कहा। याची जब इसका कारण पूछने लगी तो पुलिस ने कुछ नहीं बताया। पुलिस उसे जबरदस्ती कोतवाली स्टेशन के साइबर सेल ले गई। याची ने उसे पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने को गैरकानूनी बताया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक यह सही नहीं है।
कोर्ट ने जब इस संबंध में पूछा कि क्या याची की ओर से कोई बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पहले दाखिल की गई है। इस पर सरकारी अधिवक्ता ने जवाब दिया कि ऐसी कोई राहत पाने के संबंध में याचिका दाखिल नहीं की गई है। कोर्ट ने कहा कि याची की ओर से दिए गए तर्क कि पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने पर उसके मूल अधिकारों खासकर अनुच्छेद 21 का हनन हुआ है, कहना सही नहीं है। कोर्ट में याचिका को खारिज कर दिया।
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