लखनऊ: उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ और रामपुर दो लोकसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। चुनाव आयोग के ऐलान के साथ ही सभी दल अपनी तैयारियों में जुट गए हैं। आजमगढ़ में प्रत्याशियों की नामांकन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। इस बार के चुनाव में बसपा का रुख काफी दिलचस्प नजर आ रहा है। बसपा ने जहां रामपुर सीट से चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है, वहीं अखिलेश यादव के इस्तीफे से खाली हुई आजमगढ़ सीट पर अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। बसपा ने यहां दो बार के विधायक रहे कद्दावर नेता शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को मैदान में उतारा है। वैसे तो बसपा आजमगढ़ में दलित-मुस्लिम वोटबैंक को जोड़कर लोकसभा तक पहुंचने की कोशिश करती दिख रही है लेकिन क्या ये इतना आसान है? चलिए समझने की कोशिश करते हैं…
आजमगढ़ के चुनावी रण में बसपा को सपा के प्रत्याशी और अखिलेश यादव के भाई धर्मेंद्र यादव से मुकाबला करना है। यही नहीं भाजपा ने एक बार फिर से दिनेश लाल निरहुआ को टिकट देकर साफ कर दिया है कि वो भी जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाएगी। निरहुआ 2019 के लाेकसभा चुनाव में अखिलेश यादव से हारे थे। लेकिन वो साल दूसरा था। उस चुनाव में अखिलेश यादव सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी थे। चूंकि आजमगढ़ में परंपरागत तौर पर बसपा और सपा के बीच ही मुकाबला रहा करता था लिहाज इस गठबंधन का बड़ा लाभ अखिलेश यादव को मिला। मुलायम परिवार की छवि अलग से।
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लेकिन इस बार चीजें थोड़ बदली-बदली सी हैं। बसपा ने शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को मैदान में उतरकर साफ कर दिया है कि उसकी नजर दलितों के साथ मुस्लिम वोट बैंक पर है। गुड्डू जमाली के बारे में बात करें तो वह एक बार मुलायम सिंह यादव के खिलाफ भी चुनाव लड़ चुके हैं। 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में वह मुबारकपुर सीट से बसपा के टिकट पर जीते थे। लेकिन इस बार के 2022 विधानसभा चुनाव में उन्हें हार मिली। हालांकि हार के बाद भी गुड्डू जमाली ने असदुद्दीन ओवैसी की लाज जरूर बचा ली थी। चुनाव में चौथे नंबर पर रहते हुए अपनी जमानत बचाने में कामयाब रहे थे। ऐसा करने वाले वह एआईएमआईएम के अकेले उम्मीदवार थे। आजमगढ़ जिले में शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली की अपनी पकड़ मानी जाती है। हार के बाद उन्होंने अब फिर बसपा में वापसी कर ली है और वापसी के साथ ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने उन्हें आजमगढ़ फतेह का बड़ा टास्क दे दिया है।
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वैसे बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए ये लोकसभा उपचुनाव 2024 के राजनैतिक प्रयोग की तरह ही है। 2019 में बसपा ने भले ही 10 सीटें जीती थीं लेकिन उस चुनाव में सपा के साथ गठबंधन का उसे बड़ा लाभ मिला। ये बात 2022 के विधानसभा चुनावों में सच भी साबित हुई। इस चुनाव में बसपा का एक तरह से सूपड़ा ही साफ हो गया। आमतौर पर उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक सपा और बसपा में बंटता रहा है। लेकिन इस चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक एकतरफा सपा में चला गया। खुद मायावती ने इस बात को माना और उसके बाद से ही लगातार वह मुस्लिम वोट बैंक को पाले में लाने की कोशिश में लगी हुई हैं।
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सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान के खिलाफ दर्ज केसों के मामले में भी मायावती ने तरफदारी करके इस ओर इशारा दे दिया था। दरअसल आजम की नाराजगी को कहीं न कहीं अखिलेश के खिलाफ मुस्लिम वोट बैंक की नाराजगी से जोड़ने की कोशिशें लगातार जारी हैं। यही नहीं इस बार भी एक तरफ मायावती आजमगढ़ में तो प्रत्याशी उतार रही हैं लेकिन आजम खान के इस्तीफे से खाली हुई रामपुर लोकसभा सीट पर उन्होंने प्रत्याशी नहीं उतारने का फैसला किया है। माना जा रहा है कि आजमगढ़ का रिजल्ट बसपा की भविष्य की सियासत को दिशा देगा। 2024 के लोकसभा चुनाव में उसकी 10 सीटें दांव पर होंगी, जिन्हें बचाना ‘वर्तमान’ बसपा के लिए कठिन चुनौती है।
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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चूंकि सपा ने आजमगढ़ में विधानसभा चुनाव के दौरान अच्छा प्रदर्शन किया और जिले की सभी 10 सीटें अपने नाम कर लीं। और ये लोकसभा सीट अखिलेश यादव ने खाली की है, अखिलेश की अपनी छवि है, वह विपक्ष के सबसे बड़े नेता हैं। फिर मुलायम परिवार का रसूख। ऐसे में ये फैक्टर भी सपा के पक्ष में है। इसका कैलकुलेशन खुद अखिलेश यादव ने भी किया ही होगा, क्योंकि उन्होंने यहां से अपने चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा है। धर्मेंद्र यादव साफ-सुथरी छवि के नेता माने जाते हैं और सपा में उनका कद भी बड़ा है। लेकिन सवाल ये है कि क्या मुस्लिम मतदाता इस बार के लोकसभा उपचुनाव में एकजुट समर्थन सपा को देगा? क्योंकि बसपा भी इसमें सेंध लगाने की पुरजोर कोशिश में है। कहीं ऐसा न हो कि बसपा यहां सपा के लिए वोट कटवा बन जाए। ऐसी स्थिति में सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा।
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बता दें वर्षों से आजमगढ़ में मुख्य लड़ाई सपा और बसपा के बीच ही देखने को मिलती रही है। क्षेत्र में जीत का सबसे बड़ा समीकरण यादव-मुस्लिम और दलित-मुस्लिम रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में स्थितियां बदली हैं। भाजपा ने यहां अपनी उपस्थिति मजबूती से दर्ज करानी शुरू कर दी है। आजमगढ़ लोकसभा सीट पर मतदाताओं की कुल संख्या करीब साढ़े 19 लाख मानी जाती है। इसमें सबसे बड़ी 26 फीसदी आबादी आबादी यादव मतदाताओं की है। मुस्लिम मतदाता करीब 24 फीसदी हैं। वहीं दलित मतदाता भी 20 फीसदी के करीब हैं। भाजपा यहां सवर्ण, पिछड़ा वर्ग और दलित वोटबैंक के साथ निरहुआ की अगुवाई में यादव मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में है।
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