कानपुर: अस्सी और नब्बे के दशक में कानपुर में कई बड़े दंग हुए। इन दंगों से मिले सबक के आधार पर पुलिस ने दंगा नियंत्रण स्कीम बनाई थी। इस स्कीम का उद्देश्य गलियों से आने वाली भीड़ को रोकना होता था। अहम पॉइंट्स पर पुलिस होने से गलियों से भीड़ मुख्य सड़कों पर नहीं आती थी तो कोई भी प्रदर्शन हिंसक रूप नहीं ले पाता था। 2019 में सीएए-विरोधी हिंसा में 3-4 लाख लोगों के सड़कों पर आने की वजह इस स्कीम का पालन नहीं करना था। इस बार भी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की मौजूदगी के अलावा इंटेलिजेंस से अलर्ट के बावजूद पुलिस ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और शहर हिंसा में झुलस गया।
भीड़ को खदेड़ा नहीं
शुक्रवार को जब पेचबाग से भारी भीड़ परेड की तरफ आ गई तो पुलिस को इन्हें रोकने के लिए लाठीचार्ज, आंसू गैस और वॉटर कैनन का इस्तेमाल करना था। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, पुलिस ने ऐसा कुछ किया ही नहीं और उग्र युवक चंद्रेश्वर हाते की तरफ आए, जिसने आग में घी का काम कर दिया।
अधिकारी का आदेश नहीं माना
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, शुक्रवार शाम 4 बजे दादामियां चौराहे पर पुलिस भीड़ के आगे कमजोर पड़ रही थी। वहां मौजूद एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने जूनियर अधिकारी को आगे बढ़ने और भीड़ को खदेड़ने का आदेश दिया। लेकिन मध्यम स्तर के अधिकारी ने भीड़ बहुत होने की बात कह आगे जाने से इनकार कर दिया। भीड़ के दबाव के आगे कई मौकों पर सीनियर अधिकारी भी भागते दिखे।
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