लखनऊ: वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में कथित तौर पर शिवलिंग मिलने के प्रकरण के बीच उत्तर प्रदेश सहित देश के तमाम हिस्सों में मस्जिद और दरगाहों के नीचे शिवलिंग होने के दावे शुरू हो गए हैं। बात अगर उत्तर प्रदेश की करें तो मथुरा में श्रीकृष्णजन्मभूमि स्थान से लेकर आगरा के विश्वप्रसिद्ध ताजमहल और लखनऊ में टीले वाली मस्जिद के नीचे भी शिवालय होने के सुर उठने लगे हैं। हर रोज सुर्खियों में आते नए मामलों के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने नसीहत दे डाली है।
आरएसएस चीफ भागवत ने संगठन के एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन समारोह को संबोधित करते हुए कहा, ‘ज्ञानवापी का मुद्दा चल रहा है। यह तो इतिहास है, जिसे हम बदल नहीं सकते। इसे ना तो आज के हिंदुओं ने बनाया है और ना ही आज के मुसलमानों ने। यह उस समय घटा। हमलावरों के जरिए इस्लाम बाहर से आया था। उन हमलों में भारत की आजादी चाहने वालों का मनोबल गिराने के लिए देवस्थानों को तोड़ा गया।’
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उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अयोध्या में राम जन्मभूमि के बाद RSS अब कोई आंदोलन नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि आगे से संगठन किसी आंदोलन का हिस्सा नहीं बनेगा। उन्होंने कहा, ‘हमने 9 नवंबर को कह दिया कि एक राम जन्मभूमि का आंदोलन था, जिसमें हम अपनी प्रकृति के विरुद्ध कुछ ऐतिहासिक कारणों से इसमें सम्मिलित हुए। वह कार्य पूरा हुआ, अब हमें कोई भी आंदोलन नहीं करना है।’
दरअसल काशी में ज्ञानवापी और मथुरा में श्रीकृष्णजन्मभूमि स्थान के बाद से ताजमहल, कुतुब मीनार और अजमेर शरीफ की दरगाह जैसी प्रमुख जगहों को लेकर हिंदू संगठनों की तरफ से स्वर तेज होने लगे हैं। उज्जैन की बगैर नींव वाली मस्जिद की खुदाई कराने की मांग भी उठने लगी। लखनऊ में हिंदू महासभा की तरफ से टीले वाली मस्जिद और हुसैनगंज के एक मस्जिद के शिवालय होने को लेकर भी प्रदर्शन तेज होने लगा है।
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मोहन भागवत ने साफ नसीहत देते हुए कहा, ‘हमें रोजाना एक नया मुद्दा नहीं लाना चाहिए। विवाद को क्यों बढ़ाना? ज्ञानवापी के प्रति हमारी भक्ति है और उसी के अनुसार कुछ करना ठीक है। लेकिन, हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश क्यों? देश में इस्लाम बाहर से आया। इसे लाने वाले हमलावर थे। उन हमलों में देवस्थानों को तोड़ा गया। लेकिन जिन्होंने इसे अपनाया है, वे मुसलमान बाहर से नहीं आए हैं।
भागवत बोले कि मन में कोई मुद्दे हों तो उठ जाते हैं। यह किसी के खिलाफ नहीं है। इसे ऐसा नहीं माना जाना चाहिए। मुसलमानों को ऐसा नहीं मानना चाहिए और हिंदुओं को भी ऐसा नहीं करना चाहिए। कुछ ऐसा है तो आपसी सहमति से रास्ता खोजें। लेकिन, हर बार रास्ता नहीं निकल सकता, जिसके कारण लोग अदालत जाते हैं। अगर ऐसा किया जाता है तो अदालत जो भी फैसला करे उसे स्वीकार करना चाहिए। हमें अपनी न्यायिक प्रणाली को पवित्र और सर्वोच्च मानते हुए फैसलों का पालन करना चाहिए। हमें इसके फैसलों पर सवाल नहीं उठाना चाहिए।
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