सार
कोर्ट में इस केस की सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने वाराणसी प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई आख्या कोर्ट के सामने प्रस्तुत की। लेकिन कोर्ट उस आख्या से संतुष्ट नहीं थी और सरकार से जवाब तलब किया है। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ कर रही थी।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी शहर से सटे राष्ट्रीय राजमार्ग-29 की जमीन पर निजी लोगों द्वारा निर्माण कर आवास के रूप में उपयोग करने के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका पर अपर मुख्य सचिव पीडब्ल्यूडी, जिलाधिकारी वाराणसी तथा एसडीएम सदर वाराणसी से जवाब मांगा है।
कोर्ट में इस केस की सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने वाराणसी प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई आख्या कोर्ट के सामने प्रस्तुत की। लेकिन कोर्ट उस आख्या से संतुष्ट नहीं थी और सरकार से जवाब तलब किया है। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ कर रही थी।
मामले में पूर्व ग्राम प्रधान कमलेश यादव की ओर से जनहित याचिका दाखिल की गई है। याची के अधिवक्ता देवेश मिश्र का कहना था कि विपक्षी निजी लोगों को राष्ट्रीय राजमार्ग की जमीन से अन्यत्र शिफ्ट करने के लिए नेशनल हाईवे अथॉरिटी ने उन्हें मुआवजा भी दे रखा है। याचिका में कहा गया है कि मुआवजा लेने के बाद भी विपक्षी राष्ट्रीय राजमार्ग-29 की जमीन पर काबिज बने हुए हैं और वह वहां के स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत से अवैध रूप से कब्जा किए हैं।
सरकार की तरफ से तहसीलदार सदर द्वारा उपलब्ध कराई गई आख्या से कोर्ट को अवगत कराया गया तथा कहा गया कि निजी विपक्षियों ने जमीन का मुआवजा ले लिया है और उन्हें अन्यत्र भूमि आवंटित कर दी गई है। कहा गया है कि यह जमीन पीडब्ल्यूडी की थी, जिसे बाद में नेशनल हाईवे को दे दी गई।
मुख्य न्यायमूर्ति की पीठ का कहना था कि जब जमीन राष्ट्रीय राजमार्ग के सड़क के रूप में दर्ज है तो मुआवजा कैसे दिया गया तथा मुआवजा लेने के बाद भी वे सड़क की जमीन पर कैसे काबिज हो सकते हैं। कोर्ट ने फिलहाल सरकारी वकील के अनुरोध पर इस मामले में विपक्षी अधिकारियों को जवाब लगाने को कहा है तथा याचिका पर 12 सितंबर 22 को सुनवाई करने का निर्देश दिया है।
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी शहर से सटे राष्ट्रीय राजमार्ग-29 की जमीन पर निजी लोगों द्वारा निर्माण कर आवास के रूप में उपयोग करने के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका पर अपर मुख्य सचिव पीडब्ल्यूडी, जिलाधिकारी वाराणसी तथा एसडीएम सदर वाराणसी से जवाब मांगा है।
कोर्ट में इस केस की सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने वाराणसी प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई आख्या कोर्ट के सामने प्रस्तुत की। लेकिन कोर्ट उस आख्या से संतुष्ट नहीं थी और सरकार से जवाब तलब किया है। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ कर रही थी।
मामले में पूर्व ग्राम प्रधान कमलेश यादव की ओर से जनहित याचिका दाखिल की गई है। याची के अधिवक्ता देवेश मिश्र का कहना था कि विपक्षी निजी लोगों को राष्ट्रीय राजमार्ग की जमीन से अन्यत्र शिफ्ट करने के लिए नेशनल हाईवे अथॉरिटी ने उन्हें मुआवजा भी दे रखा है। याचिका में कहा गया है कि मुआवजा लेने के बाद भी विपक्षी राष्ट्रीय राजमार्ग-29 की जमीन पर काबिज बने हुए हैं और वह वहां के स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत से अवैध रूप से कब्जा किए हैं।
सरकार की तरफ से तहसीलदार सदर द्वारा उपलब्ध कराई गई आख्या से कोर्ट को अवगत कराया गया तथा कहा गया कि निजी विपक्षियों ने जमीन का मुआवजा ले लिया है और उन्हें अन्यत्र भूमि आवंटित कर दी गई है। कहा गया है कि यह जमीन पीडब्ल्यूडी की थी, जिसे बाद में नेशनल हाईवे को दे दी गई।
मुख्य न्यायमूर्ति की पीठ का कहना था कि जब जमीन राष्ट्रीय राजमार्ग के सड़क के रूप में दर्ज है तो मुआवजा कैसे दिया गया तथा मुआवजा लेने के बाद भी वे सड़क की जमीन पर कैसे काबिज हो सकते हैं। कोर्ट ने फिलहाल सरकारी वकील के अनुरोध पर इस मामले में विपक्षी अधिकारियों को जवाब लगाने को कहा है तथा याचिका पर 12 सितंबर 22 को सुनवाई करने का निर्देश दिया है।
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