वाराणसी: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के वाराणसी (Varanasi) में ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा (Gyanvapi Masjid Case) इस समय काफी गरमाया हुआ है। ज्ञानवापी मस्जिद में हुए सर्वे (Gyanvapi Masjid Survey) की रिपोर्ट सामने आने के बाद सोमवार मामले की (Gyanvapi Masjid Case Hearing) वाराणसी की जिला जज की अदालत में सुनवाई (Gyanvapi Masjid Case Hearing) पूरी हो गई है। मंगलवार को फैसला आएगा।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मामले की सुनवाई जिला जज को सौंपी थी। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि वो सबसे पहले मस्जिद कमेटी की सिविल प्रोसीजर कोड के ऑर्डर 7 रूल नंबर 11 (Order VII Rule 11) के तहत दायर याचिका पर सुनवाई करेंगे। आइए हम आपको बताते हैं कि ये ऑर्डर 7 रूल 11 क्या है, जिस पर वाराणसी जिला न्यायालय में सुनवाई होगी..
क्या है ऑर्डर 7 रूल नंबर 11?
ऑर्डर 7 रूल नंबर 11 को यदि आसान भाषा में समझा जाए, तो इसके तहत कोर्ट किसी केस में तथ्यों की मेरिट पर विचार करने के बजाए सबसे पहले ये तय किया जाता है कि क्या याचिका सुनवाई करने लायक है भी या नहीं।
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…तो बिना ट्रायल के ही सुनने से इनकार कर देगा कोर्ट
इसके अलवा जो राहत की मांग याचिकाकर्ता की ओर से मांगी जा रही है, क्या उसे कोर्ट द्वारा दिया भी जा सकता है या नहीं। अगर कोर्ट को ये लगता है कि याचिका में मांगी गई राहत दी ही नहीं जा सकती , तो कोर्ट केस की मेरिट पर जाने के बजाए , बिना ट्रायल के ही याचिककर्ता को सुनने से इनकार कर देता है।
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रूल 7 के तहत मुकदमा खारिज होने का क्या है आधार
रूल 7 के तहत कई वजह है, जिनके आधार पर कोर्ट शुरुआत में ही याचिका को खारिज कर देता है। यदि याचिकाकर्ता ने याचिका को दाखिल करने की वजह स्पष्ट नहीं की हो या फिर उसने दावे का उचित मूल्यांकन न किया हो या उसके मुताबिक कोर्ट फीस न चुकाई गई हो. इसके अलावा जो एक महत्वपूर्ण आधार है वो है कि कोई कानून उस मुकदमे को दायर करने से रोकता हो।
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क्या कह रही है मस्जिद कमेटी?
अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमिटी के सचिव और मुफ्ती ए बनारस अब्दुल बातिन नोमानी का कहना है कि ज्ञानवापी में सिर्फ और सिर्फ फव्वारा है। मैंने तो कोई शिवलिंग नहीं देखा। उत्तर प्रदेश की पुरानी शाही मस्जिदों में फव्वारा देखने को मिल जाएंगे। बनारस की ही कुल तीन शाही मस्जिदों में फव्वारा लगा हुआ है। हिंदू पक्ष की ओर से दायर मुकदमा उपासना स्थल अधिनियिम 1991 के खिलाफ है।
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क्या कहता है प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991?
1991 में लागू किया गया यह प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। यदि कोई इस एक्ट का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है। यह कानून तत्कालीन कांग्रेस प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार 1991 में लेकर आई थी। यह कानून तब आया जब बाबरी मस्जिद और अयोध्या का मुद्दा बेहद गर्म था।
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