आगरा के बाह में चंबल नदी के पानी की लहरों संग अठखेलियां करते घड़ियाल, गहरे पानी में गोते लगाती डॉल्फिन, बीहड़ में घूमते तेंदुए, कुलांचे भरते हिरन। जलीय और वन्य जीवों की ये प्रजातियां दुनियां में लुप्त होने की कगार पर है, लेकिन चंबल क्षेत्र में इनका कुनबा साल दर साल बढ़ रहा है।
बढ़ रही संख्या
वर्ष 2020 और 2021 के आंकड़ों को ही देखिए। घड़ियालों की आबादी 1859 से बढ़कर 2176, मगरमच्छों की संख्या 710 से बढ़कर 882, डॉल्फिन की संख्या 74 से बढ़कर 82, तेंदुए की आबादी 24 से बढ़कर 30 और हिरनों की आबादी 600 से बढ़कर 800 हो गई है। अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की संकट ग्रस्त सूची में शामिल जीवों के लिए चंबल की वादियां मुफीद साबित हुई हैं।
इस तरह संभव हुई वंश वृद्धि
बाह के रेंजर आरके सिंह राठौड़ ने बताया कि वन विभाग की संरक्षण की मुहिम और नदी किनारे के गांवों के लोगों की जागरूकता से दुनिया में लुप्त हुए जीवों की यहां वंश वृद्धि संभव हुई है। वन विभाग इनके प्राकृतिक आवास से लेकर प्रजनन तक पर नजर रख रहा है। जिसके सुखद परिणाम सुकून देने वाले हैं।
चंबल के बीहड़ में बढ़ा तेंदुओं का कुनबा। फोटो : Agra Dehat
विलायती बबूल बने थे खतरा
1979 में चंबल सेंक्चुअरी अस्तित्व में आई थी। तब बीहड़ में गद्दीदार पैरों वाले तेंदुए बहुतायत में थे। 1980 में केंद्र सरकार ने हेलीकॉप्टर से चंबल सेंक्चुअरी में विलायती बबूल के बीजों का बुआई कराई थी। बबूल पनपने के साथ ही तेंदुए की आबादी संकट में पड़ गई थी। 40 साल बाद वर्ष 2020 आने तक बीहड़ में विलायती बबूल का दायरा सिमट गया। इसके साथ ही गद्दीदार पैर वाले वन्यजीव तेंदुए, लकड़बग्घे का विचरण फिर बढ़ा है।
60 वन समितियां की गईं गठित
चंबल में तेंदुए बढ़ने के साथ ही बीहड़ में आने वाली 49 ग्राम पंचायतों के चरवाहों पर हमले भी बढ़ गए हैं। जिसके लिए 60 वन समितियां गठित की गई हैं। जिससे वन्यजीवों का कुनबा भी बढे़ और उनके हमले का डर भी न रहे। बाह के रेंजर आरके सिंह राठौड़ ने बताया कि मानव-वन्यजीव संघर्ष न हो, तेंदुए के साथ काले और चितकबरे हिरनों की वंशवृद्धि जारी रहे, इसके लिए समिति बनाई गई है।
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