मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान (कटरा केशव) के मालिकाना हक को लेकर विवाद बहुत पुराना है। 15.70 एकड़ जमीन को राजा पटनीमल्ल द्वारा 1815 में ब्रिटिश हुकूमत से नीलामी में खरीदे जाने के कुछ वर्षों बाद ही दोनों पक्षों में विवाद की शुरुआत हो गई थी। ईदगाह के खातिब अताउल्ला ने मस्जिद को बिक्री में शामिल किए जाने पर एतराज दर्ज कराया था। न्यायालय ने लंबी सुनवाई के बाद इसे खारिज करते हुए परिसर में मौजूदा मकान और मस्जिद सहित संपूर्ण भूमि की बिक्री की पुष्टि 29 अक्तूबर 1832 को कर दी थी।
बृहस्पतिवार को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव कपिल शर्मा और गोपेश्वरनाथ चतुर्वेदी ने इन तथ्यों से मीडिया को अवगत कराया। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश हुकूमत को वृंदावन रेलवे लाइन के लिए परिसर के पूर्वी भाग की भूमि की आवश्यकता पड़ने पर अधिग्रहण के प्रतिफल में बनारस के राजा पटनीमल्ल के वंशज राय नरसिंह दास व राय नारायण दास को 1775 रुपये 11 आना व 9 पैसे का भुगतान भूमिधर के रूप में किया गया था।
हिंदू पक्ष का ही माना जाता रहा स्वामित्व
उन्होंने बताया कि इस भूमि का विवरण 1285 फसली के राजस्व अभिलेखों में 15.70 एकड़ बंजर में एक दुकान व मस्जिद के रूप में राजा पटनीमल्ल के वंशज राय नारायण दास व अन्य के नाम अंकित है। उन्होंने कहा कि राजा पटनीमल्ल के वंशजों व उनके बाद श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट/संघ व मथुरा के मुसलमानों के मध्य वर्ष 1832, 1897, 1920, 1921, 1928, 1929, 1932, 1946, 1955, 1956, 1958, 1959, 1960, 1961, 1965 तक चले सभी मुकदमों, उनकी अपील व रिवीजन के निर्णयों में हमेशा हिंदू पक्ष को ही कटरा केशवदेव का स्वामी माना जाता रहा है।
कपिल शर्मा ने बताया कि जमीन पर मुसलमानों का अधिकार न होने पर भी केवल ईद के अवसर पर नमाज पढ़ने की सुविधा का उल्लेख होता रहा। जिसका उल्लंघन कर वर्ष 1986 के बाद ईदगाह परिसर में पांचों वक्त की नमाज का सिलसिला शुरू करने पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान द्वारा अपनी आपत्ति जिला प्रशासन के समक्ष प्रस्तुत की थी लेकिन मुस्लिम समाज द्वारा परंपरा के विरुद्ध आज भी हठधर्मिता की जा रही है।
ऐसे हुआ था इस जमीन का समझौता
बताया गया कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ (जो सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट अंतर्गत पंजीकृत सहयोगी संस्था थी) के तत्कालीन संयुक्त-सचिव ने एक मुकदमा नंबरी 43/1967 दीवानी न्यायालय में कटरा केशवदेव में खड़े मस्जिदनुमा ढांचे व अन्य घोसियों आदि के मकान हटाने को लेकर दायर किया था, जिस मुकदमे में संघ के ही उपमंत्री द्वारा एक द्विपक्षीय समझौता प्रस्तुत कर देने पर वर्ष 1974 में मुकदमा डिक्री हो गया। इसकी जानकारी होने पर ट्रस्ट ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ नाम को संस्थान में परिवर्तित करने का निर्णय लेकर समझौते में संलिप्त रहे संघ के पदाधिकारी को पद मुक्त भी कर दिया था।
गोपेश्वरनाथ चतुर्वेदी ने बताया कि दोषपूर्ण समझौते के आधार पर वर्ष 1993 में जनपद न्यायालय में दायर वाद पंडित मनोहरलाल शर्मा आदि बनाम स्वामी वामदेव आदि भी न्यायालय ने समझौते द्वारा भूमि हस्तांतरण में ट्रस्ट की भूमिका न पाए जाने के आधार पर निरस्त कर दिया। श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट गठित होने के बाद सभी राजकीय अभिलेख खसरा, खतौनी, जलकर-गृहकर मूल्यांकन, रजिस्टर आदि में पुरानी प्रविष्टियों में संशोधन के पश्चात भूमि स्वामी के रूप में श्रीकृष्ण-जन्मभूमि ट्रस्ट का नाम अंकित चला आ रहा है।
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