सार
आगरा में एक युवक को अपने पुत्र से मिलने के लिए अदालत में शरण लेनी पड़ी। अदालत ने उसे महीने में सिर्फ दो बार मिलने का आदेश दिया है। साथ ही वह चार बार वीडियो कॉल से बात कर सकेगा।
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आगरा में पारिवारिक विवाद के चलते अपनी मां के साथ रह रहे पांच साल तीन महीने के बच्चे से पिता महीने में दो बार मिल सकेगा। परिवार न्यायाधीश ने यह आदेश दिए हैं। इसके अलावा पिता जन्मदिन और त्योहार पर मिलने के साथ-साथ महीने में चार बार वीडियो कॉल पर भी बात कर सकेगा।
मामले के अनुसार, बच्चे के पिता ने पत्नी के खिलाफ प्रधान न्यायाधीश परिवार न्यायालय में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया था। इसमें कहा कि उसका पांच साल तीन महीने का बेटा है। वह मां (पत्नी) के साथ रहता है। उसे बेटे से मिलने की विधिक रूप से अनुमति प्रदान की जाए। उसकी शादी 12 फरवरी 2016 को हुई थी।
पिता पर लगे हैं ये आरोप
प्रार्थना पत्र पर विपक्षी ने आपत्ति प्रस्तुत की। इसमें कहा कि वह स्वयं अपने बच्चे से नहीं मिलना चाहता है। उसे बच्चे से कोई लगाव नहीं है। उसकी खैरखबर तक नहीं लेता है। पिता के कर्तव्य को भी पूरा नहीं करता है। अगर, उसकी अभिरक्षा में पुत्र दिया जाता है तो उसका भविष्य खराब हो जाएगा। उसके मन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उसके जीवन को भी खतरा हो सकता है।
परिवार न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश ने प्रार्थी पिता के अधिवक्ता के तर्क के आधार पर उसका प्रार्थना पत्र स्वीकृत कर लिया। उसे अपने बेटे से महीने में दो बार मिलने, जन्मदिन और त्योहार पर भी मिलने के साथ महीने में चार बार वीडियो कॉल पर भी बात करने की अनुमति दी। वादी की पैरवी अधिवक्ता शैलेंद्र पाल सिंह और शुभम पाल सिंह ने की।
विस्तार
आगरा में पारिवारिक विवाद के चलते अपनी मां के साथ रह रहे पांच साल तीन महीने के बच्चे से पिता महीने में दो बार मिल सकेगा। परिवार न्यायाधीश ने यह आदेश दिए हैं। इसके अलावा पिता जन्मदिन और त्योहार पर मिलने के साथ-साथ महीने में चार बार वीडियो कॉल पर भी बात कर सकेगा।
मामले के अनुसार, बच्चे के पिता ने पत्नी के खिलाफ प्रधान न्यायाधीश परिवार न्यायालय में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया था। इसमें कहा कि उसका पांच साल तीन महीने का बेटा है। वह मां (पत्नी) के साथ रहता है। उसे बेटे से मिलने की विधिक रूप से अनुमति प्रदान की जाए। उसकी शादी 12 फरवरी 2016 को हुई थी।
पिता पर लगे हैं ये आरोप
प्रार्थना पत्र पर विपक्षी ने आपत्ति प्रस्तुत की। इसमें कहा कि वह स्वयं अपने बच्चे से नहीं मिलना चाहता है। उसे बच्चे से कोई लगाव नहीं है। उसकी खैरखबर तक नहीं लेता है। पिता के कर्तव्य को भी पूरा नहीं करता है। अगर, उसकी अभिरक्षा में पुत्र दिया जाता है तो उसका भविष्य खराब हो जाएगा। उसके मन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उसके जीवन को भी खतरा हो सकता है।
परिवार न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश ने प्रार्थी पिता के अधिवक्ता के तर्क के आधार पर उसका प्रार्थना पत्र स्वीकृत कर लिया। उसे अपने बेटे से महीने में दो बार मिलने, जन्मदिन और त्योहार पर भी मिलने के साथ महीने में चार बार वीडियो कॉल पर भी बात करने की अनुमति दी। वादी की पैरवी अधिवक्ता शैलेंद्र पाल सिंह और शुभम पाल सिंह ने की।
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