गाजियाबाद: दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे (Delhi Meerut Expressway) के जमीन अधिग्रहण मुआवजे में घोटाला के मामले ने एक बार फिर प्रशासनिक अधिकारियों के स्तर पर होने वाले खेल को उजागर किया गया है। आईएएस निधि केसरवानी (IAS Nidhi Kesarwani) के इस मामले में यूपी सरकार की ओर से निलंबन का आदेश जारी किए जाने के बाद से माहौल गरमा गया है। गाजियाबाद के पूर्व डीएम विमल शर्मा भी इस मामले में फंसते हुए दिख रहे हैं। इन तमाम मामलों ने एनसीआर में चलने वाले खेल को सामने ला दिया है। गाजियाबाद और नोएडा अथॉरिटी (Noida Authority) में जिस प्रकार से नए क्षेत्रों में शहरीकरण की रफ्तार बढ़ी, उसने प्रशासनिक पदाधिकारियों के सामने कमाई के रास्ते खोले। जमीन सबसे बड़ा कमाई का जरिया बना। गाजियाबाद (Ghaziabad) और नोएडा में जमीन अधिग्रहण और उसके आवंटन का खेल ऐसे खेला गया कि एनसीआर के इस इलाके को नोटों की फैक्ट्री माना जाने लगा। इस फैक्ट्री के लाभुकों की सूची लंबी होती जा रही है। निधि केसरवाली से लेकर यादव सिंह (Yadav Singh) तक मामला एक सूत्र में जुड़ता दिखता है।
निधि केसरवानी पर अधिक मुआवजा भुगतान का आरोप
निधि केसरवानी पर आरोप है कि उन्होंने दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे के तय किए गए अवॉर्ड राशि से छह गुना अधिक मुआवजा का भुगतान किया । जबकि तत्कालीन डीएम विमल कुमार शर्मा ने अवॉर्ड राशि से दस गुना तक अधिक मुआवजा दिया। भूमि अधिग्रहण में मुआवजे के भुगतान में अधिकारियों ने 20 करोड़ रुपये से अधिक का भ्रष्टाचार का खेल खेला गया। अधिकारियों का कहना है कि एक्सप्रेसवे के भूमि अधिग्रहण में नाहल, कुशलिया, डासना और रसूलपुर सिकरोड़ क्षेत्र की जमीन अधिग्रहण में भ्रष्टाचार का खेल हुआ था। वर्ष 2011-12 में 71.14 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया गया था। 2013 में यहां अवॉर्ड घोषित किया गया था।
2016 में क्षेत्र के 23 किसानों ने मंडलायुक्त से शिकायत की थी। उनका कहना था कि उनकी जमीन एक्सप्रेसवे में अधिग्रहित की गई है, लेकिन उन्हें मुआवजा नहीं मिला है। तत्कालीन मंडलायुक्त प्रभात कुमार ने अपने स्तर पर जांच कराई। जांच में इस खेल का पता चला। तत्कालीन मंडलायुक्त ने सितंबर 2017 में जांच रिपोर्ट शासन को भेज दी। रिपोर्ट में दो आईएएस अधिकारी और एक पीसीएस अधिकारी के शामिल होने की बात कही गई। अब उस पर कार्रवाई हुई है। जमीन अधिग्रहण में करोड़ों के खेल का मामला नया नहीं है।
जांच के बाद अड़ंगा लग जाने से दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे का करीब छह किलोमीटर का निर्माण अटक गया था। डासना, कुशलिया, नाहल और रसूलपुर सिकरोड गांव में करीब 19 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण मामला अटकने से प्रशासन को काफी फजीहत झेलनी पड़ी। इसमें से छह एकड़ जमीन दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे में जानी थी। प्रोजेक्ट में छह माह की देरी को अधिकारियों के स्तर पर किए गए भ्रष्टाचार से जोड़कर देखा गया।
एडीएम की पत्नी पर भी लगे हैं आरोप
दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे और ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे के भूमि अधिग्रहण मामले में दो पूर्व डीएम के साथ-साथ निचले स्तर के पदाधिकारियों पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। पूर्व एडीएम लैंड एक्विजिशन घनश्याम सिंह और अमीन संतोष कुमार के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई हो चुकी है। उन पर आरोप है कि धारा 3डी की अधिसूचना जारी होने के बाद एडीएम के बेटे और अमीन की पत्नी ने किसानों की जमीन की खरीद कराई। कुछ माह इस जमीन को चार से पांच गुना अधिक जाम पर बेचा गया। घनश्याम सिंह के बेटे शिवांग राठौर ने 30 सितंबर 2013 को 1582.18 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से नाहल और कुशलिया गांव में किसानों से जमीन खरीदी। इसी जमीन को उन्होंने गाजियाबाद के डीएम विमल कुमार शर्मा की मध्यस्थता में 5577 रुपये प्रति वर्गमीटर कर दी।
शिवांग ने 1.78 करोड़ का निवेश कर 9.36 करोड़ रुपये एनएचएआई से वसूले। अमीन की पत्नी लोकेश बेनीवाल के माध्यम से 3.54 करोड़ रुपये का निवेश किया और उस जमीन को 14.91 करोड़ रुपये में बेचा। इस पूरे खेल में अधिकारियों की शह होने से इंकार नहीं किया जा रहा है।
नोएडा अथॉरिटी में 58 हजार करोड़ का घोटाला
नोएडा अथॉरिटी को लेकर वर्ष 2021 में आई सीएजी रिपोर्ट में 58 हजार करोड़ रुपये के घोटाले का खुलासा हुआ। सीएजी ने यूपी विधानसभा में वर्ष 2005 से 2017 के बीच की रिपोर्ट कोर्ट में पेश की थी। इसमें साफ कहा गया कि नोएडा में जमीन आवंटन में बड़े स्तर पर गड़बड़ी की गई। रिपोर्ट के मुताबिक, 67 हाउसिंग ग्रुप के लिए नोएडा अथॉरिटी ने जमीन आवंटित की। इसमें 113 प्रोजेक्ट शामिल किए गए। सीएजी ने हैरानी जताई थी कि इसमें से 71 प्रोजेक्ट या तो अब तक अधूरे हैं या फिर बने ही नहीं।
प्रोजेक्ट के तहत 1.30 लाख फ्लैट का निर्माण होना है। इनमें 44 फीसदी फ्लैट के पजेशन पेपर ही नहीं हैं। इस कारण प्रोजेक्ट में हजारों परिवारों की जमा पूंजी फंसी हुई है। सीएजी रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि 2005 से 2017 के बीच नोएडा में आवंटित जमीन का 79.83 फीसदी केवल तीन कंपनियों को आवंटित किया गया है। वेव, थ्री सी और लॉजिक्स ग्रुप पर 14,958 करोड़ का बकाया होने के बाद भी नई जमीनों का आवंटन किया गया। इसमें नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों की संलिप्तता का पता चलता है।
सीएजी रिपोर्ट में बताया गया कि अधिकारियों ने बिल्डर को लाभ पहुंचाने के लिए राजस्व विभाग को करीब 13,000 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया है। बड़े बिल्डरों ने प्राधिकरण से भूखंड खरीद कर उसे छोटे बिल्डरों को बेचा और जमकर मुनाफा काटा। जमीन के आवंटन में आरक्षित मूल्य के विकास मानदंडों को नजर किया। इस कारण 13,967 करोड़ की वसूली लटक गई।
नीरा यादव को भी हो चुकी है सजा
यूपी की पूर्व मुख्य सचिव नीरा यादव और पूर्व आईएएस राजीव कुमार को भी नोएडा के बहुचर्चित भूमि आवंटन घोटाले में दोषी पाया गया था। 1995 के नोएडा प्लॉट आवंटन घोटाले के दौरान नीरा यादव नोएडा अथॉरिटी में सीईओ थीं। राजीव कुमार उस समय अथॉरिटी में डिप्टी सीईओ के पद पर तैनात थे। दोनों पर प्लॉट आवंटन में अनियमितता बरतने और खुद एवं परिजनों को लाभ पहुंचाने का आरोप लगा। 1971 बैच की आईएएस नीरा यादव को लगे आरोपों पर सीबीआई कोर्ट ने तीन साल की सजा सुनाई थी। राजीव कुमार को भी इतनी ही सजा मिली। तीन साल की कैद और एक लाख रुपये जुर्माना की सजा को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। उन दोनों की सजा घटाकर सुप्रीम कोर्ट ने दो साल कर दी थी।
अजनारा सोसाइटी के मामले ने माहौल गरमाया
नोएडा के सेक्टर 74 स्थित ग्रैंड अजनारा हेरिटेज सोसाइटी का मामला सामने आया है। वर्ष 2020 में बिल्डर की मनमानी की शिकायत लोगों ने की। इसके बाद भी नोएडा अथॉरिटी की ओर से कार्रवाई नहीं की गई। पूरे मामले से लोगों ने यूपी सरकार को अवगत कराया। इसके बाद डीएम सुहास एलवाई ने सरकार के आदेश के बाद नोएडा प्राधिकरण को पत्र भेजा। इस पर कार्रवाई शुरू हुई। अभी अजनारा बिल्डर को आवंटित 25 एकड़ जमीन के आवंटन रद्द करने का मामला गरमाया हुआ है। आवंटित जमीन के बदले जमीन या पैसे नहीं चुकाने के मामले में कार्रवाई हुई है। इस मामले में भी प्राधिकरण के पदाधिकारी दोषी माने जा रहे हैं।
यादव सिंह का मामला भी खासा रहा है चर्चित
नोएडा अथॉरिटी के चीफ इंजीनियर रहे यादव सिंह का मामला खासा चर्चित रहा है। यूपी में चाहे किसी की सत्ता रहे, यादव सिंह का सिक्का चलता था। लेकिन, यादव सिंह पर इनकम टैक्स का शिकंजा कसता गया। नोएडा अथॉरिटी और अखिलेश यादव सरकार ने उस समय कोई कदम नहीं उठाया था। बाद में जांच सीबीआई को सौंपी गई। सीबीआई ने उन्हें 3 फरवरी 2016 को गिरफ्तार किया तो पूरा मामला खुलकर सामने आया। यादव सिंह 900 करोड़ की संपत्ति के मालिक बताए गए थे। छापेमारी में 2 किलो सोना, 100 करोड़ के हीरे, 10 करोड़ रुपये नकद और अन्य दस्तावेज उनके यहां से बरामद किए गए थे। महज 12 लाख रुपये सालाना की सैलरी पाने वाले यादव सिंह और उनका परिवार 323 करोड़ की चल-अचल संपत्ति का मालिक कैसे बना, तो इसका सीधा जवाब था नोएडा अथॉरिटी के भ्रष्टाचार के खेल से।
नोएडा और यादव सिंह दोनों एक साथ आगे बढ़े थे। वर्ष 1976 में नोएडा अथॉरिटी का गठन हुआ और नया शहर बसाने के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई। डिप्लोमा धारी इंजीनियर यादव सिंह की यहां नौकरी लग गई। वर्ष 1995 तक यादव सिंह ने दो प्रमोशन हासिल किए। जूनियर इंजीनियर से असिस्टेंट इंजीनियर और फिर प्रोजेक्ट इंजीनियर बन गया। डिप्लोमा धारी को प्रोजेक्ट इंजीनियर बनाने का मामला कोर्ट पहुंच गया। वहां से उसे तीन साल में इंजीनियरिंग डिग्री हासिल करने की हिदायत मिली। राजनीतिक सरपरस्ती में यादव सिंह का बाल बांका नहीं हुआ।
आयकर विभाग ने यादव सिंह के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में गाजियाबाद और दिल्ली के 20 ठिकानों पर छापा मारे थे। आयकर विभाग ने खुलासा किया था कि यादव सिंह ने मायावती सरकार के दौरान अपनी पत्नी कुसुमलता, दोस्त राजेन्द्र मिनोचा और नम्रता मिनोचा को डायरेक्टर बनाकर करीब 40 कंपनी बना डाली। कोलकाता से बोगस शेयर बनाकर नोएडा अथॉरिर्टी से सैकडों बड़े भूखंड खरीदे। बाद में उन्हें दूसरी कंपनियों को फर्जी तरीके से बेच दियया। मायावती राज में यादव सिंह पर 954 करोड़ रुपये के जमीन घोटाले के आरोप लगे थे। फिर भी 60 कंपनियां बनाने वाले यादव सिंह का कुछ नहीं हुआ।
सुपरटेक का खेल, अब ट्विन टावर तोड़ने की तैयारी
नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों का खेल खूब चला। सुपरटेक ट्विन टॉवर इसका उदाहरण है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नोएडा विकास प्राधिकरण की दोनों एसीईओ की कमेटी ने सुपरटेक मामले में तीन बिंदुओं पर जांच की। पहले बिंदु के रूप में वर्ष 2009 में मानचित्र में बदलाव पर पूछताछ हुई। दूसरे बिंदु के रूप में वर्ष 2012 में मानचित्र में हुआ बदलाव और तीसरे बिंदु में इस परियोजना से जुड़ी जानकारी आरटीआई के जरिए न देने की जांच हुई। इन तीनों बिंदुओं पर प्राधिककरण जिन आठ अधिकारियों ने लापरवाही बरती, उनको प्रारंभिक जांच में दोषी माना गया। उनके खिलाफ कार्रवाई की गई। वहीं, ट्विन टॉवर को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत ढहाने की प्रक्रिया शुरू की गई है।
…और सस्पेंड कर दी गई थीं दुर्गा शक्ति नागपाल
दुर्गा शक्ति नागपाल को उनके करियर के शुरुआती दिनों से ही कड़क प्रशासनिक पदाधिकारी माना जाता था। पंजाब कैडर की 2009 बैच की आईएएस दुर्गा ने आईएएस अभिषेक सिंह के साथ शादी के बाद यूपी में ट्रांसफर ले लिया था। नोएडा के एसडीएम के पद पर तैनात की गईं दुर्गा ने यमुना नदी के खादर में रेत से भरी 300 ट्रॉलियों को अपने कब्जे में ले लिया था। खनन माफियाओं पर शिकंजा कसा तो हड़कंप मचा। उन्हें निलंबित कर दिया गया। इसके बाद यूपी में जमकर बवाल मचा। आईएएस एसोसिएशन दुर्गा के पक्ष में खड़ा हो गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 22 सितंबर 2013 को ही कुछ घंटे के भीतर उनका निलंबन आदेश वापस ले लिया था।
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