लखनऊ: वैसे तो राजनीतिक दलों में नेताओं का आना-जाना लगा ही रहता है। कोई किसी पार्टी में एंट्री करता है, किसी को बाहर का रास्ता दिखाया जाता है और कोई खुद ही एग्जिट कर लेता है। लेकिन पिछले दिनों बीएसपी चीफ मायावती (BSP Chief Mayawati) ने जब अपनी पार्टी के एक पूर्व मंत्री नकुल दुबे (Nakul Dubey) को बाहर का रास्ता दिखाया तो राजनीतिक गलियारों में खलबली मच गई। खलबली नकुल दुबे को निकाले जाने पर नहीं, बल्कि इसके संभावित असर को लेकर मची है। कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में बीएसपी से कोई तहलका मचा देने वाली खबर आ सकती है।
दरअसल नकुल दुबे सतीश मिश्र (Satish Mishra) कैंप के आदमी माने जाते हैं। वकालत के पेशे में वह उनके जूनियर भी रहे हैं। 2007 की सरकार में सतीश मिश्र के कहने पर ही उन्हें मायावती सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालयों का मंत्री बनाया गया था। नकुल दुबे को बाहर का रास्ता दिखाए जाने से यह कयास लगना शुरू हो गया है कि इसका मतलब अब पार्टी में सतीश मिश्र के साथ भी ‘बहन जी’ के समीकरण ठीक नहीं रह गए हैं, वर्ना नकुल दुबे को पार्टी से निकाले जाने का कोई सवाल ही नहीं था।
सतीश मिश्र का राज्यसभा कार्यकाल भी जुलाई महीने में खत्म हो रहा है। विधानसभा में मात्र एक विधायक होने के कारण मिश्र जी तो क्या, खुद मायावती का अगले पांच साल तक राज्यसभा जाना मुमकिन नहीं है। ऐसे में बीच-बीच में इस तरह की खबरें आती रही हैं कि जब मिश्र जी राज्यसभा में ही नहीं रह पाएंगे तो बीएसपी में उनके रहने का क्या फायदा? फिलहाल सतीश मिश्र ही बीएसपी में पुराने नेताओं में बचे हैं। तकरीबन सभी अन्य नेता या तो पार्टी छोड़ चुके हैं या पार्टी से निकाले जा चुके हैं। जो लोग भी निकले या निकाले गए, उन सबने पार्टी की दुर्गति के लिए सतीश मिश्र को ही जिम्मेदार ठहराया है।
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