गाजियाबाद: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के गाजियाबाद (Ghaziababd) के एसएसपी पवन कुमार (SSP Pawan Kumar) को शासन ने गुरुवार को सस्पेंड कर दिया। जिले में पहली बार पद पर रहते हुए कोई एसएसपी सस्पेंड हुआ है। उनके सस्पेंड होने के पीछे क्राइम कंट्रोल नहीं कर पाने के साथ ही पब्लिक से बेहतर को-ऑर्डिनेशन की कमी और बीजेपी नेताओं से उनकी टकराहट को कारण माना जा रहा है। 7 महीने के अपने कार्यकाल में एसएसपी पवन कुमार कई बार चर्चा में रहे। कई कारणों से उनकी चर्चा हुई।
जनप्रतिनिधियों के साथ पूर्व एसएसपी पवन कुमार का विवाद खुलकर सामने आया और सार्वजनिक स्तर पर लेटर तक जारी किए गए, जिससे तकरार साफ दिखी। दूसरी तरफ हाल के दिनों में जिले में कई वारदात हुईं। 28 मार्च को हुई 25 लाख की लूट और इस वारदात के दौरान खुलेआम पिस्टल ताने बदमाशों के वायरल फोटो ने प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े किए थे। इसके बाद शासन ने कदम उठाते हुए पवन कुमार को सस्पेंड कर दिया है। शासन ने नए कप्तान की तैनाती होने तक आईजी रेंज मेरठ प्रवीण कुमार को गाजियाबाद एसएसपी का चार्ज दिया है।
लूट मामले में सीएम को नहीं मिली थी ठोस कार्रवाई की रिपोर्ट
अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी के मुताबिक, एसएसपी गाजियाबाद पवन कुमार को कर्तव्य निर्वाहन में लापरवाही व अपराध नियंत्रण में नाकाम होने के चलते निलंबित किया गया है। दरअसल लगभग एक माह के दौरान गाजियाबाद में लूट व अन्य अपराध की ताबड़तोड़ वारदात होने और उनका खुलासा न होने से सीएम योगी आदित्यनाथ काफी नाराज थे। पेट्रोल पंपकर्मी से हुई 25 लाख की लूट के बाद नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव द्वारा किए गए ट्वीट के बाद मामले ने और तूल पकड़ लिया। बताया जा रहा है कि सीएम ने मेरठ रेंज व जोन के अफसरों से गाजियाबाद में हुई वारदात और उनमें हुई कार्रवाई को लेकर रिपोर्ट मांगी। रिपोर्ट में एसएसपी गाजियाबाद पवन कुमार के अपराध नियंत्रण में नाकाम होने की जानकारी मिलने के बाद उन्हें निलंबित करने का फैसला लिया गया।
आठ दिन में हुए थे चार ट्रांसफर
साफ छवि के अफसर के रूप में पहचाने जाने वाले पवन कुमार को सपा सरकार के कार्यकाल में आठ दिन के अंदर चार बार स्थानांतरित किया गया था। दरअसल पवन कुमार वर्ष 2016 में उन्नाव एसपी के पद पर तैनात थे। 1 फरवरी को उन्हें उन्नाव से हटाकर सीतापुर का एसपी बनाया गया। सीतापुर में वह 5 दिन तक ही रह पाए थे कि उनका तबादला रायबरेली के लिए कर दिया गया। वह सीतापुर का चार्ज छोड़कर रायबरेली चार्ज लेने जा रहे थे कि उन्हें रास्ते में ही मना कर दिया गया कि वह रायबरेली न जाएं। बाद में उनको डीजीपी मुख्यालय से अटैच करने का आदेश जारी किया गया।
सपा सरकार के कार्यकाल में ही पवन कुमार केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर नैशनल पुलिस अकादमी चले गए थे। अगस्त 2021 में वह केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटकर यूपी आए थे। कुछ दिन पुलिस मुख्यालय में तैनाती के बाद उन्हें सरकार ने मुरादाबाद का एसएसपी बनाया। वह मुरादाबाद में कुछ ही दिन रहे थे कि उन्हें 18 अगस्त को गाजियाबाद का एसएसपी बना दिया गया। करीब सात माह तक वह गाजियाबाद में एसएसपी रहे।
ये हैं तबादले के बड़े कारण
पहला- बढ़ता क्राइम : एसएसपी पवन कुमार के आने के बाद से ही जिले में क्राइम का ग्राफ लगातार बढ़ रहा था। उनके कार्यकाल में कई बड़ी वारदात हुईं। सबसे बड़ी वारदात 28 मार्च को हुई थी। उस दिन गोविंदपुरम रोड पर दोपहर में बाइक सवार बदमाशों ने पेट्रोल पंप कर्मचारियों की बाइक रुकवा कर उनसे करीब 25 लाख रुपये लूट लिए थे। इतना ही नहीं दहशत फैलाने के लिए तीन राउंड फायरिंग की और यू-टर्न लेकर फरार हो गए। यह वारदात मसूरी थाना क्षेत्र की थी।
इसके अलावा कई वारदात चुनाव के दौरान भी हुई, लेकिन एसएसपी ने तब पुलिस फोर्स कम होने का बहाना बनाया था, लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद जब पुलिस फोर्स वापस आ गई तो उसके बाद भी लगातार वारदात हो रही थी। पुलिस कई बड़े मामलों में सही समय पर कार्रवाई नहीं कर सकी। सिर्फ मार्च की बात करें तो छोटी और बड़ी मिलाकर 40 से ज्यादा लूट की वारदात हुई थीं।
दूसरा- जनप्रतिनिधियों से टकराव : एसएसपी की गाजियाबाद के जनप्रतिनिधियों से लगातार टकराहट हो रही थी। नंद किशोर गुर्जर से उनकी कई बार टकराहट हुई। विवाद तब बढ़ा जब 10 मार्च को काउंटिंग के दौरान पुलिस की मेयर आशा शर्मा, राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल और बीजेपी के महानगर अध्यक्ष संजीव शर्मा के साथ झड़प हुई। बिना पास के मतगणना स्थल पर जाने को लेकर पुलिस से उनकी तीनों से नोकझोंक की काफी चर्चा हुई। इसके बाद नेताओं ने एक लेटर सार्वजनिक किया था, जिसमें एसएसपी की कार्यशैली पर सवाल उठाए गए थे।
इसके बाद एसएसपी पवन कुमार ने भी उनका आदेश होने की बात कहते हुए एक लेटर जारी किया था। जिसके बाद काफी विवाद हुआ था। इसके बाद जनप्रतिनिधियों की तरफ से लखनऊ में एसएसपी की शिकायत भी की गई थी। इससे पहले लोनी के विधायक नंदकिशोर गुर्जर से लोनी में हुए सात लोगों के एनकाउंटर के मामले में उनका विवाद हुआ था। विधायक ने एसएसपी और उनके अन्य अधिकारियों के खिलाफ ओपन लेटर लिखे थे।
तीसरा- जिले के कई वरिष्ठ अधिकारियों से भी तालमेल में गड़बड़ी : जनप्रतिनिधियों के साथ एसएसपी का जिले के कई अफसरों के साथ तालमेल कुछ खास नहीं था। जिले में एक मौके पर पुलिस प्रशासन के सामने खड़ी हो गई थी। मामला जिले के एक महंत पर गुंडा एक्ट लगाने का था। इस मामले में पुलिस की तरफ प्रशासन को फाइल भेजी गई थी। उसके पास नहीं होने पर दोनों एक दूसरे के सामने आ गए थे। हालांकि बाद में मामला किसी प्रकार से शांत किया था।
चौथा- संगठन के लोगों की भी नाराजगी : सात महीने के कार्यकाल में वह कई संगठनों के भी निशाने पर रहे थे। कई शिकायतों पर कार्रवाई नहीं होने और पैरवी करने पर सुनवाई नहीं होने पर उनकी शिकायत की गई थी। विजयनगर में हिंदू दल के आत्महत्या के प्रयास के बाद नंदग्राम में प्रतिबंधित पशु के कटान मामले में हिंदू युवा वाहिनी का हंगामा। उसका शोर लखनऊ तक पहुंचा। इंदिरापुरम के नीति खंड में पार्किंग को लेकर दो पक्षों के विवाद में पुलिस ने एक पक्ष पर 307 की धाराएं लगाई थीं, जिसके बाद उस धारा को हटा दिया गया था। इसको लेकर पीड़ित पक्ष ने लखनऊ स्तर पर शिकायत की थी। बताया जाता है कि पीड़ित पक्ष के लोग बीजेपी और आरएसएस से जुड़े थे, जिन्होंने इस मामले में एसएसपी पर सही तरीके से जांच न करने और आरोपित पक्ष को बचाने का आरोप लगाया था।
भ्रष्टाचार रोकथाम पर किया था काम
पवन कुमार ने जिले में 7 महीने में भ्रष्टाचार पर सबसे ज्यादा कार्रवाई की। उन्होंने इस दौरान 40 से ज्यादा पुलिसकर्मियों को सस्पेंड किया। पुलिसकर्मियों के खिलाफ आने वाली हर शिकायत को उन्होंने गंभीरता से लिया और उन पर कार्रवाई की। रिश्वत, गलत व्यवहार, रिपोर्ट दर्ज नहीं करने के कई मामलों में जांच के बाद पवन कुमार ने कार्रवाई की। विभाग के लोगों से बात करने पर उन्होंने नाम नहीं बताने की सूरत पर कहा कि एसएसपी किसी भी गलत सिफारिश को नहीं सुनते थे, जिस कारण उन पर कार्रवाई हुई है।
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